इन दिनों हर तरफ बांग्‍लादेश की चर्चा है. तख्‍तापलट के बाद शेख हसीना प्रधानमंत्री पद से इस्‍तीफा देकर भाग गई हैं.  अंतरिम सरकार चलाने की जिम्मेदारी मोहम्‍मद यूनुस पर है. मोहम्‍मद यूनुस कोई अनजान शख्‍स नहीं हैं. वे एक सोशल वर्कर, बैंकर और अर्थशास्त्री हैं और नोबेल पुरस्‍कार विजेता भी हैं. लेकिन क्‍या आपको पता है कि 17 साल पहले ऐसा ही मौका यूनुस को दिया गया था, लेकिन उन्‍होंने इस पद को लेने के लिए इनकार कर दिया था? आज वही यूनुस इस प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर चुके हैं. आइए आपको बताते हैं इनके बारे में-

2007 में सेना ने दिया था प्रस्‍ताव

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बात जनवरी 2007 की है, तब सेना ने बांग्लादेश की सत्ता पर कब्जा कर लिया था. उस समय पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और खालिदा जिया दोनों ही भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद थीं. उस वक्‍त देश की बागडोर को संभालने के लिए बांग्‍लादेश की सेना ने नोबेल प्राइज विनर मोहम्मद यूनुस को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनने का प्रस्‍ताव दिया था, लेकिन उस समय यूनुस इस पद को संभालने के लिए राजी नहीं हुए और उन्‍होंने इस प्रस्‍ताव को ठुकरा दिया. आज एक बार फिर से बांग्‍लादेश की राजनीति में भूचाल आया है. ऐसे में अंतरिम सरकार को चलाने की जिम्‍मेदारी एक बार फिर से मोहम्‍मद यूनुस को दी गई है. वे अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर होंगे. इसके बाद से पूरी दुनिया में मोहम्‍मद यूनुस की चर्चा हो रही है.

सालों तक पढ़ाया अर्थशास्‍त्र, फिर उसे ही बताया फिजूल

28 जून 1940 को गुलाम और अविभाजित भारत में जन्‍मे मोहम्‍मद यूनुस ढाका यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स की शुरुआती पढ़ाई के बाद अमेरिका चले गए. यहां पीएचडी की और उसके बाद अर्थशास्‍त्र पढ़ाना शुरू कर दिया.  बांग्लादेश की आजादी के बाद वे यहां चिटगांव यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स पढ़ाया. उस समय वो चिटगांव यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्‍स डिपार्टमेंट हेड का पद को संभाल रहे थे. लेकिन उस समय 1971 की जंग के बाद बांग्लादेश के हालात ठीक नहीं थे और वहां भुखमरी फैली थी. लाखों लोग 2 वक्त की रोटी को तरस रहे थे. लोगों को दो वक्‍त की रोटी के लिए भी मोहताज होता देख यूनुस का मन अर्थशास्‍त्र से हट गया और उन्‍हें ये विषय एकदम फिजूल लगने लगा. इसके बाद वे इधर-उधर के गांवों में जा-जाकर लोगों की मदद के नए मौके तलाश करने लगे.

गरीबी मिटाने के लिए दिया गया नोबेल पुरस्‍कार

मोहम्‍मद यूनुस ने गरीबों की बहुत मदद की और इस कारण ही उन्‍हें नोबेल पुरस्‍कार दिया गया. लोगों को गरीबी से निकालने की वजह से उन्‍हें 'गरीबों का दोस्त' और 'गरीबों का बैंकर' जैसे नामों से भी जाना जाता है.  नोबेल पुरस्‍कार प्राप्‍त करने के बाद वो राजनीति में आए और 18 फरवरी 2007 को यूनुस ने 'नागरिक शक्ति' नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई. उन्होंने कहा कि वे इस पार्टी में साफ-सुथरी छवि वाले लोगों को ही शामिल करेंगे. 

मोहम्मद यूनुस जो शेख हसीना के पिता के कट्टर समर्थक थे, खुद शेख हसीना भी जिनकी तारीफ के कसीदे गढ़ा करती थीं, राजनीति में आने के बाद वो यूनुस को राजनीति के लिए एक खतरा समझने लगीं. यही कारण है कि साल 2008 में सरकार बनाने के तुरंत बाद हसीना ने यूनुस के पीछे जांच एजेंसियों को लगा दिया. इसके बाद यूनुस पर 100 सेअधिक केस दर्ज हुए और उन पर सरकार विरोधी आरोप भी लगे. इसके बाद यूनुस और शेख हसीना की दुश्‍मनी आमने-सामने हो गई.