Last Chandra Grahan of 2022: साल 2022 का आखिरी चंद्र ग्रहण आज 8 नवंबर को लगने जा रहा है. इसके बाद कोई भी ग्रहण अब साल 2023 को ही पड़ेगा. ग्रहण के दौरान कई तरह के काम करने पर पाबन्‍दी लगा दी जाती है. पूजा-पाठ नहीं किया जाता, यहां तक कि मंदिरों के कपाट भी सूतक लगने से पहले ही बंद हो जाते हैं. ऐसे में कभी आपके दिमाग में ये सवाल आया है कि आखिर ग्रहण काल में पूजा करना क्‍यों मना होता है? आइए आपको बताते हैं.

जानिए क्‍यों ग्रहण काल में नहीं होती है पूजा

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इस मामले में पंडित देवी प्रसाद कहते हैं कि विज्ञान भले ही ग्रहण को खगोलीय प्रक्रिया मानता हो, लेकिन धार्मिक रूप से ग्रहण को अशुभ घटना माना जाता है. हिंदू धर्म में माना गया है कि जब सूर्य ग्रहण लगता है तो सूर्य देव पर संकट होता है और जब चंद्र ग्रहण लगता है तो चंद्र देव पर संकट होता है. दोनों अपने-अपने ग्रहण काल में संकट से जूझ रहे होते हैं. वहीं ग्रहण काल के समय हर जगह आसुरी शक्तियों का प्रभाव काफी बढ़ जाता है, हर जगह नकारात्‍मकता होती है और सकारात्‍मकता के की कमी होने से देवताओं की शक्ति कम होने लगती है.

 इस नकारात्‍मकता का असर ग्रहण काल शुरू होने से पहले ही महसूस होने लगता है, जिसे हम सूतक काल कहते हैं. यही वजह है कि सूतक लगने के साथ ही पूजा पाठ बंद कर दिया जाता है और ग्रहण काल तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. लेकिन इस बीच मानसिक जाप करना लाभकारी माना जाता है क्‍योंकि इससे देवताओं की शक्ति बढ़ती है. यही वजह है कि ग्रहण काल में किए गए किसी भी मानसिक जाप का महत्‍व कई गुणा ज्‍यादा माना गया है.

क्‍यों लगता है ग्रहण

ग्रहण लगने को लेकर धार्मिक रूप से एक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन के बाद अमृतपान को लेकर देवगण और दानवों के बीच जब ​विवाद शुरू हुआ तो भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके दानवों को मोहित कर लिया. इसके बाद सभी दैत्‍य मोहिनी की बात मानने लगे. मोहिनी ने दैत्‍यों और दानवों को अलग-अलग बैठाया और कहा कि पहले देवगण अमृत पान करेंगे, उसके बाद दैत्‍यों को कराया जाएगा. 

सभी असुर मोहिनी की बातों में आ गए. लेकिन स्वर्भानु नामक दानव मोहिनी की चाल को समझ गया और देवताओं के बीच चुपचाप जाकर बैठ गया. उसे बैठते हुए चंद्रमा और सूर्य ने देख लिया. मोहिनी स्वर्भानु को अमृतपान करवा ही रही थी, तभी सूर्यदेव और चंद्रदेव ने मोहिनी को स्‍वर्भानु के बारे में बता दिया. इससे मोहिनी को क्रोध आ गया और उन्‍होंने भगवान विष्‍णु वाला वास्‍तविक रूप धारण कर दिया. विष्‍णु भगवान ने सुदर्शन से उस दानव का गला काट दिया. लेकिन तब तक वो अमृतपान करके अमर हो चुका था. इसलिए चक्र से उसके शरीर के दो हिस्से हो गए. सिर का हिस्सा राहु और धड़ का हिस्सा केतु कहलाया. 

तब से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा से अपनी दुश्‍मनी मानते हैं. राहु सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने के प्रयास में लगा रहता है. जब भी वो सूर्य को अपना ग्रास बनाता है तो सूर्य ग्रहण लगता है और चंद्रमा को ग्रास बनाता है तो चंद्र ग्रहण लगता है. ग्रास बनने के बाद सूर्य और चंद्र, दोनों ही संकट में रहते हैं. चूंकि राहु का धड़ न होने के कारण कुछ समय बाद सूर्य हों या चंद्र उसके चंगुल से छूट जाते हैं और ग्रहण समाप्‍त हो जाता है. लेकिन ग्रास के समय हमारे देव कष्ट में होते हैं. इस कारण इस घटना को अशुभ माना जाता है और उनकी पूजा करने की बजाय मानसिक रूप से जाप करके उनकी शक्ति बढ़ाई जाती है, ताकि वो जल्‍द ही इस संकट से मुक्‍त हों.

वैज्ञानिक कारण भी जानें

दरअसल पृथ्‍वी सूर्य के चक्‍कर लगाती है और चंद्रमा पृथ्‍वी के चक्‍कर लगाता है. इस कड़ी एक क्षण ऐसा आता है जब पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है. तीनों के एक सीध में होने के कारण चंद्रमा तक सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच पाती और इस स्थिति को चंद्र ग्रहण ​कहा जाता है. वहीं जब चंद्रमा पृथ्‍वी और सूर्य के बीच आता है तो सूर्य की रोशनी पृथ्‍वी तक नहीं पहुंच पाती, ऐसे में सूर्य ग्रहण लगता है.