WHO की बेहद खौफनाक रिपोर्ट, असरदार हुए बैक्टीरिया, खून तक पहुंच रहा इंफेक्शन, तेजी से बेअसर हो रहीं एंटीबायोटिक दवाएं
रिपोर्ट में पाया गया है कि अस्पतालों में भर्ती गंभीर मरीजों में से 50 प्रतिशत को Klebsiella pneumonia (क्लैबसेला निमोनिया) और Acinetobacter (एसिनेटोबेक्टर) spp नाम के दो बैक्टीरिया अपना शिकार बना रहे हैं और इंफेक्शन खून तक भी पहुंच रहा है.
दुनिया के 127 देश अपने यहां का डाटा WHO के साथ शेयर करते हैं कि उनके देश में Anti microbial resistance यानी एंटीबायोटिक्स के बेअसर होने की स्पीड क्या है. इसी डाटा के आधार पर इस रिपोर्ट में ये आंकलन किया गया है कि फिलहाल दुनिया की स्थिति कैसी है? रिपोर्ट का नाम है- ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस एंड यूज सर्विलांस सिस्टम (GLASS). WHO हर साल सभी देशों से उनका डाटा लेकर एक कॉमन ग्लास रिपोर्ट जारी करता है. इस साल जारी हुए ग्लास रिपोर्ट को Glass Report 2022 कहा जा रहा है.
नतीजे चिंता बढ़ाने वाले हैं
पहली बार रिपोर्ट में पाया गया है कि अस्पतालों में भर्ती गंभीर मरीजों में से 50 प्रतिशत को Klebsiella pneumonia (क्लैबसेला निमोनिया) और Acinetobacter (एसिनेटोबेक्टर) spp नाम के दो बैक्टीरिया अपना शिकार बना रहे हैं और इंफेक्शन खून तक भी पहुंच रहा है. रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि 8% मरीजों पर (Carbapenem) कार्बापेनम ग्रुप की दवाएं यानी लेटेस्ट एंटीबायोटिक्स भी काम नहीं कर रही हैं और ऐसे में मरीज की मौत हो जाती है. कार्बापेनम एंटीबायोटिक दवाएं Broad Spectrum दवाएं होती हैं. ये वो लेटेस्ट जेनरेशन एंटीबायोटिक दवाएं हैं जो मोटे तौर पर कई सारे बैक्टीरियल इंफेक्शन्स पर एक साथ काम करती हैं.
दवाओं से बेअसर हो चुके हैं 60 फीसदी इंफेक्शन
कार्बापेनम ग्रुप में imipenem, meropenem, ertapenem, and doripenem जैसी स्ट्रांग और लेटेस्ट एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं. Neisseria gonorrhea के 60% इंफेक्शन दवाओं से बेअसर हो चुके हैं. ये एक STD यानी sexually transmitted disease है. E.coli बैक्टीरिया के 20% मामलों में बहुत-सी एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही. E coli (ई कोलाई) बैक्टीरिया Urinary Tract infections में सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस इंफेक्शन के इलाज में 1st और 2nd जेनरेशन की एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही हैं.
खून तक इंफेक्शन पहुंचने के मामलों में 15 पर्सेंट की बढ़ोतरी
रिपोर्ट में ये आंकलन किया गया कि 2017 से अब तक यानी 2022 तक कितने बदलाव हुए हैं. पहले के मुकाबले इंफेक्शन के खून तक पहुंचने के मामलों में 15% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. दो बैक्टीरिया के मामले में दवाओं के बेअसर होने का औसत 42% (E. Coli) और 35% (MRSA) से ज्यादा है. लेकिन रिसर्चरों का मानना है कि गरीब देशों और मिडिल इनकम देशों में ये दर ज्यादा है. दरअसल इस मामले में हर अस्पताल से डाटा शेयर करने के मामले में विकसित देशों का मामला बेहतर है. उनके पूरे डाटा का आंकलन करने के बाद समझ में आया कि अमीर देशों में इन्हीं बैक्टीरिया के बेअसर होने की दर 11% और 6.8% पाई गई. गरीब देशों के बहुत से अस्पताल डाटा शेयर नहीं करते. इसलिए मौजूद डाटा के आधार पर ये पता चला है कि विकासशील देशों में एंटीबायोटिक्स के बेअसर होने की दर बढ़ रही है.
एंटीबायोटिक दवाओं के काम न करने की वजह से गई 12.70 लाख लोगों की जान
एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने को दुनिया पर मंडरा रहे 10 बड़े खतरों में माना गया है. लैंसेट के मुताबिक 2019 में दुनिया भर में 12 लाख 70 हजार लोगों की जान एंटीबायोटिक दवाओं के काम ना करने की वजह से हो गई. यानी ये वो दौर है जिसमें मरीज अस्पताल में भर्ती होगा तो उसे अस्पताल से बैक्टीरिया वाले इंफेक्शन के संक्रमण का खतरा होगा. मरीज को दवाएं तो लिखी जाएंगी लेकिन दवाएं काम नहीं करेंगी और मरीज बेमौत मरने को मजबूर हो जाएगा.