भारतीयों का डायबटीज से हमेशा से गहरा रिश्ता रहा है. हमारे प्राचीन ग्रंथों में डायबटीज का सटीक वर्णन है. भारत वह स्थान था, जहां क्रिस्टलीय गन्ना चीनी का पहली बार उपयोग किया गया था. 327 ईसा पूर्व में, सिकंदर की सेना के एक जनरल, नियरकस ने लिखा था, भारत में एक ईख है, जो मधुमक्खियों की मदद के बिना शहद निकालती है, इससे नशीला पेय बनाया जाता है, हालांकि पौधे पर कोई फल नहीं लगता है. सिकंदर की सेना अन्य चीज़ों के अलावा, भारत से शार्करा (संस्कृत में बजरी) भी वापस ले गई. शर्करा और चीनी शब्द संस्कृत के शरकार से बने हैं.

भारत में 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को डायबटीज 

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आधुनिक भारत डायबटीज के कारण एक बड़े स्वास्थ्य खतरे का सामना कर रहा है, पिछले तीन दशकों में इसकी संख्या में भारी वृद्धि देखी गई है, जो लगभग हमारी आर्थिक वृद्धि के समानांतर है. अंतिम गणना के अनुसार भारत में 101 मिलियन लोग डायबटीज से पीड़ित हैं, अन्य 136 मिलियन लोगों को प्री-डायबिटिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है. दिल्ली और चेन्नई जैसे महानगरों में, यह अनुमान लगाया गया है कि 60 वर्ष की आयु तक दो तिहाई आबादी को या तो डायबटीज है या प्री-डायबटीज है. डायबटीज सिर्फ रक्त शर्करा नहीं है, समय के साथ यह हृदय, गुर्दे, यकृत आंखें, पैर और शरीर के कई अन्य हिस्से प्रभावित कर सकता है.

डायबटीज पर रोकथाम की जरूरत

इन जटिलताओं का प्रबंधन व्यक्ति, परिवार, समाज और देश पर भारी पड़ सकता है. इसलिए, भारत का ध्यान डायबटीज और इसकी जटिलताओं की रोकथाम पर होना चाहिए. हाल ही में संपन्न ICMR-इंडआईएबी अध्ययन भारत के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयोजित किया गया था और इसमें 113,000 से अधिक विषय शामिल थे. भारत में डायबटीज के प्रसार में महत्वपूर्ण शहरी, ग्रामीण और क्षेत्रीय अंतर हैं. हमारे महानगरों में छोटे शहरों की तुलना में अधिक प्रसार है, जो बदले में गांवों की तुलना में अधिक गंभीर रूप से प्रभावित हैं.

हालांकि, हाल ही में, ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से वृद्धि हुई है, जो खाने की आदतों में बदलाव से जुड़ा है. देश के मध्य और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों की तुलना में इसका प्रसार कम है, इसमें गोवा में इसका प्रसार सबसे अधिक है.

भारत डायबटीज में इस वृद्धि का सामना क्यों कर रहा है?

1. जेनेटिक प्रोग्रामिंग

हमारे जीन नहीं बदले हैं, इसलिए मुख्य कारण के रूप में जेनेटिक प्रवृत्ति को दोष देना तर्कसंगत नहीं है. हालांकि, सदियों से चला आ रहा कुपोषण हमारे शरीर को ऊर्जा से भरपूर भोजन के संपर्क में आते ही ऊर्जा को वसा के रूप में संग्रहीत करने के लिए प्रोग्राम करता है. पेट और आंत के आसपास वसा जमा होने से चयापचय संबंधी परिणाम होते हैं और पश्चिमी काकेशियनों की तुलना में भारतीयों में शरीर का वजन बहुत कम होने पर डायबटीज और हृदय रोग विकसित हो जाते हैं. भारतीयों में इंसुलिन प्रतिरोध अधिक होता है, साथ ही इंसुलिन की कमी भी अधिक होती है. कुल मिलाकर गर्भवती महिलाओं का बेहतर पोषण और बेहतर स्वास्थ्य डायबटीज से निपटने की हमारी रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक होना चाहिए.

2. खान-पान में बदलाव

बढ़ते शहरीकरण और संपन्नता के कारण हमारी खान-पान की आदतों में बड़े बदलाव आए हैं. डायबटीज में वृद्धि के लिए जिम्मेदार सबसे महत्वपूर्ण कारक कार्बोहाइड्रेट सेवन में वृद्धि है. हमारे दैनिक अनाज और मुख्य भोजन मैदा/चमकदार सफेद चावल हैं, इनमें से सभी भूसी या चोकर से रहित होते हैं और इसलिए उनमें बहुत कम फाइबर होता है. भारत हमेशा से कार्बोहाइड्रेट का उपभोग करने वाला देश रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में हमारे कार्बोहाइड्रेट की गुणवत्ता में बदलाव आया है.

जंक फूड का सेवन

इसके अलावा, अधिकांश युवा फास्ट फूड ऑर्डर करते हैं, जो अक्सर सफेद ब्रेड या चावल जैसे रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट से भरा होता है. संतृप्त (saturated) वसा के सेवन में वृद्धि मोटापा और हृदय रोग बढ़ने का एक और कारण है. इन आहार परिवर्तनों के परिणामस्वरूप, भारत में मोटापा बढ़ गया है (और लगातार बढ़ रहा है). वास्तव में डायबटीज और गैर-संचारी रोग में वृद्धि मोटापे में वृद्धि के कारण हुई है. आहार का एक पहलू, जिसे अक्सर पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता, वह है प्रोटीन. आमतौर पर भारतीय आहार में पर्याप्त प्रोटीन की कमी होती है, जो खराब चयापचय स्वास्थ्य का एक कारक है.

3. गतिहीन जीवन शैली 

शहरों में जाने से हमेशा शारीरिक गतिविधि में गिरावट आती है. अधिकांश शिक्षित भारतीय ऐसी नौकरियों में हैं, जिनमें अधिक शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता नहीं होती है. मोटापा, डायबटीज और हृदय रोग के प्रसार में वृद्धि का एक प्रमुख कारण व्यायाम की कमी है.

4. वायु प्रदूषण 

दुर्भाग्य से भारत दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों का घर है. वायु प्रदूषण को डायबटीज के विकास से जोड़ा गया है. पीएम 2.5 हमारे रक्त प्रवाह में पहुंचता है और सूजन को उत्तेजित करता है, इससे इंसुलिन स्राव के साथ-साथ इंसुलिन प्रतिरोध में भी कमी आती है.

5. तनाव और नींद की कमी 

तनावपूर्ण लाइफस्टाइल डायबटीज, हाई बल्ड प्रेशर और हृदय रोग में वृद्धि का कारण है. नींद की कमी (न्यूनतम 7 घंटे) डायबटीज के बढ़ते प्रसार का एक और महत्वपूर्ण कारण है. अंततः बढ़ते शहरीकरण और आर्थिक विकास के कारण जीवनशैली में बदलाव आ रहा है, जो भारत में डायबटीज की महामारी को बढ़ावा दे रहा है. अधिक शहरीकरण और बढ़ी हुई दीर्घायु के साथ, हम भविष्‍य में डायबटीज के प्रसार में और भी अधिक वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं. 2024 के आगमन के साथ ही आइए इस बीमारी पर रोक लगाने का संकल्‍प लें.