Chhath Puja: बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्‍तर प्रदेश समेत देश के तमाम हिस्‍सों में की जाने वाली छठ पूजा का पर्व शुरू हो चुका है. चार दिन मनाया जाने वाला ये त्‍योहार लोक आस्‍था से जुड़ा है. इसमें पारिवारिक सुख समृद्धि और बच्‍चों की सुरक्षा के लिए 36 घंटे का व्रत रखा जाता है. छठी मइया और सूर्यदेव की पूजा की जाती है. छठ पूजा में महिलाएं पति व बच्‍चों की लंबी आयु की कामना करती हैं और नाक से लेकर मांग तक सिंदूर भरती हैं. इसके अलावा छठ के पर्व में डूबते हुए सूरज की भी पूजा की जाती है. आइए जानते हैं इन परंपराओं के पीछे की मान्‍यताएं.

नाक से मांग तक के सिंदूर की वजह

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इस मामले में ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि मांग भरने का संबन्‍ध पति की लंबी आयु से माना गया है. माना जाता है कि महिलाएं जितना लंबा सिंदूर भरती हैं, पति का आयु भी उतनी ही लंबी होती है. छठ ही पूजा में महिलाएं पति की लंबी आयु और बच्‍चों की सलामती के लिए व्रत और पूजन करती हैं. ऐसे में पति की दीर्घायु की कामना के साथ नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर भरती हैं. इसे काफी शुभ माना जाता है.

क्‍यों की जाती है डूबते सूरज की पूजा

हिंदू धर्म में जागृत सूर्य की पूजा का विधान है, लेकिन छठ का पर्व ऐसा है जिसमें डूबते सूरज की भी पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाम के समय भगवान सूर्य अपनी पत्‍नी प्रत्‍युषा के साथ होते हैं. ऐसे में  शाम के समय डूबते सूरज की पूजा करके सूर्य देव के साथ प्रत्‍युषा की भी पूजा की जाती है. मान्यता है कि इससे जीवन में सुख, सौभाग्‍य और समृद्धि प्राप्‍त होती है और जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती.

 

आखिरी दिन होती है उगते सूरज की पूजा

छठ के तीसरे दिन डूबते सूरज को अर्घ्‍य देने के बाद चौथे यानी आखिरी‍ दिन उगते सूरज की भी पूजा की जाती है. इसे ऊषा अर्घ्‍य कहा जाता है. इसमें सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. माना जाता है कि इस समय पर सूर्य देव अपनी पत्‍नी ऊषा के साथ होते हैं. ये अर्घ्‍य सूर्यदेव के साथ ऊषा को भी दिया जाता है. माना जाता है कि इससे हर मनोकामना पूरी होती है.