Heart Attack: देश में आए दिन हार्ट अटैक से हुई मौत की खबरें सामने आती हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में 63% लोग लाइफ स्टाइल में खराबी की वजह से मारे जा रहे हैं. कुल मिलाकर देश में इंफेक्शन से छूआछूत से या डिलीवरी के दौरान जच्चा बच्चा की इतनी मौतें नहीं होती, जितनी कि केवल खराब लाइफ स्टाइल (Bad Lifestyle) से हो रही हैं. भारत में 63% मौतें खराब जीवनशैली का नतीजा हैं. इनमें से 55% लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे हैं. सबसे ज्यादा दिल की बीमारी से 27% लोग मारे जा रहे हैं.

इस ऐज ग्रुप को ज्यादा हो रहे हैं हार्ट अटैक

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दुनिया भर में 4 करोड़ से ज्यादा लोग खराब लाइफ स्टाइल से मर रहे हैं. इनमें से 1 करोड़ 70 लाख लोग 30 से 70 साल के बीच के हैं. डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां, स्ट्रोक, कैंसर, सांस से जुड़ी बीमारियां ये सब खराब लाइफ स्टाइल की देन हैं. गलत खान-पान, कसरत ना करना, तनाव या कम नींद और खराब पर्यावरण – ये सब खराब लाइफ स्टाइल के ही संकेत हैं.

तस्वीर बदलने की तैयारी में सरकार

लिहाज़ा अब सरकार ने तय किया है कि भारत में पॉलिसी का फोकस शिफ्ट करने का समय आ चुका है. पहले इंफेक्शन से फैलने वाली बीमारियों और सेफ प्रजनन यानी डिलीवरी पर फोकस रहता था अब ऐसे मरीजों पर फोकस होगा जो लाइफ स्टाइल के शिकार होकर मरने के खतरे पर हैं. इस काम को करने के लिए देश में मौजूद 40 हजार प्राइमरी हेल्थ केयर वर्करों को तैयार किया जाएगा. जिसके लिए सरकार ने सशक्त नाम से एक पोर्टल भी तैयार किया है.

भारत में डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के शिकार 7.5 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जाएगी और उनका बेसिक इलाज भी सरकार के ज़रिए किया जाएगा. ये काम अगले डेढ साल में यानी कि 2025 तक पूरा किया जाने का लक्ष्य है. सरकार ने इस काम के लिए राज्यों की मशीनरी का सहयोग मांगा है. डेढ लाख आयुष्मान भारत वेलनेस सेंटरों से इस काम को किया जाएगा. प्राइवेट सेक्टर से सहयोग करने की उम्मीद भी की जा रही है. मकसद ये है कि कम से कम 80 प्रतिशत लोगों को इलाज के दायरे में लाया जा सके. WHO के मुताबिक ये दुनिया में कहीं भी अब तक का सबसे बड़ा प्रोग्राम साबित होगा और बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट होगा.

लाइफस्टाइल वाली बीमारियों की स्क्रीनिंग और इलाज पर होगा काम

भारत में 2016 में 30 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए सरकारी प्राथमिक स्वास्थय केंद्रो पर डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, मुंह के कैंसर, ब्रेस्ट और बच्चेदानी के कैंसर की शुरुआती जांच की जा रही है. अब इसी क्रम में लाइफस्टाइल वाली बीमारियों की स्क्रीनिंग और इलाज पर काम किया जाएगा.

हालांकि भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो की खस्ता हालत, पुराने उपकरण, स्टाफ की कमी किसी से छिपी नहीं है. इसके अलावा स्वास्थय राज्य सरकारों का विषय है. केंद्र और राज्य के तालमेल के बीच राजनीति आ जाती है. प्राइवेट सेक्टर पहले ही सरकारी योजनाओं के पैसे मिलने की आस में कई सालों तक सरकार की ओर तकते रहते हैं और इसलिए ऐसे किसी काम में खास दिलचस्पी नहीं दिखाते. ऐसे में डेढ साल में ये सब कैसे होगा – कहना बहुत मुश्किल है.

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