लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) भारत के दूसरे प्रधानमंत्री (Second Prime Minister of India) थे. नेहरू युग का अंत होने के बाद उन्‍होंने जब प्रधानमंत्री पद को संभाला तो उस समय देश कई तरह के बदलावों से गुजर रहा था. उन्‍होंने करीब 18 महीने तक देश का नेतृत्व बतौर प्रधानमंत्री किया. गांधीवादी विचारों वाले और सीधा-साधा जीवन जीने वाले लाल बहादुर शास्‍त्री को देखकर पाकिस्‍तान ने उन्‍हें कमजोर समझने की गलती कर दी और भारत पर हमला कर दिया. लेकिन शास्त्री जी ने इसके उलट पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया जिसकी दुनिया में किसी को उम्मीद नहीं थी. पाकिस्‍तान को इस युद्ध में करारी शिकस्‍त मिली. 

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इतना ही नहीं, लाल बहादुर शास्‍त्री के कार्यकाल में ही देश को अनाज का संकट भी झेलना पड़ा. उस समय देश के स्‍वाभिमान के लिए लाल बहादुर शास्‍त्री ने 'अनाज-यज्ञ' चलाया और पूरे देश से हफ्ते में एक दिन एक समय का भोजन छोड़ देने का आवाह्न किया और पूरा देश इस यज्ञ का हिस्‍सा बना. आज देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री की पुण्‍य तिथि है. इस मौके पर आइए एक नजर डालते हैं इतिहास की इस घटना पर-

देश के स्‍वाभिमान के लिए अमेरिका का प्रस्‍ताव ठुकराया

दरअसल जब लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने, उसी समय देश को अनाज का संकट झेलना पड़ा. भारत में अनाज की जरूरतों को देखते हुए अमेरिका ने स्थिति का फायदा उठाना चाहा और कुछ शर्तों के साथ भारत को अनाज देने की पेशकश की. लेकिन शास्‍त्री जी को पता था कि अगर उन्‍होंने अमेरिका के इस प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर लिया तो देश के स्‍वाभिमान को चोट पहुंचेगी. इसलिए उन्‍होंने इस प्रस्‍ताव को अस्‍वीकार कर दिया और एक दिन अपने परिवार को उपवास करने के लिए कहा. शास्त्री जी सहित पत्नी, बच्चों ने पूरे दिन कुछ नहीं खाया. इससे शास्त्री जी को अहसास हुआ कि अगर एक दिन भोजन न भी किया जाए तो भूख को बर्दाश्‍त किया जा सकता है. 

जनता से किया ये आवाह्न

खुद आश्‍वस्‍त होने के बाद उन्‍होंने देशभर में अनाज यज्ञ चलाया और देशवासियों से इसमें आहुति देने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि हमें भारत का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए देश के पास उपलब्ध अनाज से ही काम चलाना होगा. हम किसी भी देश के आगे हाथ नहीं फैला सकते. यदि हमने किसी देश द्वारा अनाज देने की पेशकश स्वीकार की तो यह देश के स्वाभिमान पर गहरी चोट होगी. तत्‍कालीन प्रधानमंत्री ने देश की जनता से कहा कि पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो.

बिना शिकायत देश ने दी इस 'यज्ञ' में आहुति

लाल बहादुर शास्‍त्री के आह्वान का देशवासियों पर गहरा असर पड़ा. लोगों ने देश के स्‍वाभिमान के लिए सप्ताह में एक दिन एक वक्त का खाना छोड़ दिया. शहरों से लेकर गांवों-कस्बों तक में महिलाएं, बच्चे, पुरुष, बुजुर्ग सब भूखे रहते और देश के मान के लिए हो रहे इस  'अनाज-यज्ञ' में खुशी-खुशी आहुति देते. आखिरकार ये त्‍याग रंग लाया और देश अगली फसल आने तक स्वाभिमान से जिया और किसी अन्य देश से अनाज लेने की नौबत नहीं आई.

रहस्‍यमयी हालात में मौत

18 महीने के कार्यकाल में लाल बहादुर शास्‍त्री ने देश के लिए काफी कुछ किया. लेकिन इसके बाद उनका निधन हो गया. उनके निधन का रहस्‍य आज भी उलझा हुआ है. दरअसल साल 1965 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में पाकिस्‍तान को करारी शिकस्‍त मिली. इसके बाद ताशकंद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अयूब खान और लाल बहादुर शास्त्री ने युद्ध खत्म करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए. 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर के कुछ घंटे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में लाल बहादुर शास्त्री जी की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई.