Karpoori Thakur: कर्पूरी ठाकुर के शासन में पहली बार बिहार में हुई थी शराबबंदी, जननायक के नाम से थे मशहूर, जानें रोचक बातें
Karpoori Thakur 100th Birth Anniversary: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जयंती है. जयंती से एक दिन पहले भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की है. भारत रत्न देश का सर्वोच्च सम्मान है. जानिए उनके जीवन से जुड़ी खास बातें.
Karpoori Thakur Birth Centenary: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जयंती है. जयंती से एक दिन पहले भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की है. भारत रत्न देश का सर्वोच्च सम्मान है. इस सम्मान के लिए कर्पूरी ठाकुर के नाम का ऐलान होने के बाद तमाम लोग होंगे जो उनके बारे में काफी कुछ जानना चाहते होंगे. जननायक के तौर पर मशहूर कर्पूरी ठाकुर की पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ के रूप में रही है. आज उनकी जयंती के मौके पर जानते हैं कर्पूरी ठाकुर के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य.
14 साल की उम्र में नवयुवक संघ की स्थापना
कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के पितौंझिया में 24 जनवरी, 1924 को हुआ था. अब इस जगह को कर्पूरीग्राम के नाम से जाना जाता है. इस गांव में उन्होंने महज 14 साल की उम्र में नवयुवक संघ की स्थापना कर दी थी. इसके बाद गांव में होम विलेज लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन बने. 1942 में पटना विश्वविद्यालय पहुंचने के बाद वे स्वतंत्रता आंदोलन और बाद में समाजवादी पार्टी और आंदोलन के प्रमुख नेता बने.
दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री
कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाला नेता माना जाता है. बिहार के साधारण से परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक पद पर जीतते रहे, केवल 1984 का लोकसभा चुनाव हारे. वे एक बार उप मुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे हैं.
पहली बार शराबबंदी लागू करने वाले सीएम
बिहार में पहली बार शराबबंदी कर्पूरी ठाकुर ने ही की थी. उन्होंने 1977 में मुख्यमंत्री के रूप में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू की थी. उनके शासनकाल में राज्य के पिछड़े इलाकों में उनके नाम पर कई स्कूल-कॉलेज खोले गए. कहा जाता है कि एक बार उनके घर को बनवाने के लिए 50 हजार ईंटें भेजी गईं, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने उन ईंटों से घर बनवाने की बजाय, उससे एक स्कूल बनवा दिया. ऐसे तमाम किस्से हैं, जिन्होंने उनकी छवि को एक जननायक के तौर पर स्थापित किया.
दिखावे में नहीं रखते थे यकीन
कर्पूरी ठाकुर दिखावे में यकीन नहीं रखते थे. दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे हमेशा जमीन से जुड़े रहे. कहा जाता है कि तीन दशक से अधिक वक्त तक लगातार चुनाव जीतने के बाद भी कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से चला करते थे. उनका एक और किस्सा भी मशहूर है. कहा जाता है कि 1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे. उन्हीं दिनों उनका ऑस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में चयन हुआ था. उनके पास कोट नहीं था. उस समय उन्होंने अपने दोस्त से पहनने के लिए कोट मांगा, लेकिन वो कोट भी फट गया था. कर्पूरी ठाकुर किसी की परवाह किए बगैर वही कोट पहनकर विदेश चले गए.
जेपी-लोहिया के राजनीतिक गुरु
कर्पूरी ठाकुर का विजन हमेशा गरीब-वंचित वर्ग के कल्याण का रहा. वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे. ये भी कहा जाता है कि जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे.