Kanwar Yatra 2023: श्रावण (सावन) का पावन महीना 04 जुलाई से शुरू हो रहा है, जो इस साल 31 अगस्त, 2023 तक चलेगा. इस पवित्र महीने में भगवान शंकर को मनाने के लिए भक्त तरह-तरह के जतन करते हैं. इस दौरान भक्तों द्वारा कठिन कांवर यात्रा भी की जाती है. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर सावन में कांवर यात्रा क्यों निकाली जाती है और इसका क्या महत्व है? क्या आप जानते हैं कि पहली बार कांवर यात्रा कब निकाली गई थी? आइए सावन के त्योहार के इस बड़े परंपरा के बारे में विस्तार से जानते हैं. इसे बता रहे हैं श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रसिद्ध (ज्योतिषाचार्य) गुरूदेव पंडित ह्रदय रंजन शर्मा.

कठिन होती है कांवर यात्रा

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कांवर शिव की आराधना का ही एक रूप है. इस यात्रा के जरिए जो शिव की आराधना कर लेता है, वह धन्य हो जाता है. कांवर का अर्थ है परात्पर शिव के साथ विहार. अर्थात ब्रह्म यानी परात्पर शिव, जो उनमें रमन करे वह कांवरिया  कहलाता है. कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ यात्रा, शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंग (जो विभिन्न राज्यों में स्थित हैं) कांवर यात्रा आदि बहुत महंगी होने के कारण तथा अति दुष्कर होने के कारण सबकी सामथ्र्य में नहीं होती. अमरनाथ यात्रा भी दूरस्थ होने के कारण इतनी सरल नहीं है, परन्तु कांवर यात्रा की बढ़ती लोकप्रियता ने सभी रिकार्ड्स तोड़ दिए हैं. इलाहबाद, वाराणसी, बिहार नीलकंठ (हरिद्वार), पुरा महादेव (पश्चिमी उत्तरप्रदेश) हरियाणा, राजस्थान के देवालय आदि में सैकड़ों-हजारों से होता हुआ कांवडिया जलाभिषेक लाखों-करोड़ों तक जा पहुंचा है.

क्या है कांवर यात्रा का महत्व

वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक भारतवर्ष के सारे शिव मंदिरों में होता है. लेकिन श्रावण मास में कांवर के माध्यम से जल-अर्पण करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. वेद-पुराणों सहित भगवान भोलेनाथ में भरोसा रखने वालों को विश्वास है कि कांवर यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की ही धारा होती है. 

कांवर के माध्यम से जल चढ़ाने से मन्नत के साथ-साथ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है. तभी तो सावन शुरु होते ही इस आस्था और अटूट विश्वास की अनोखी कांवड यात्रा से पूरा का पूरा इलाका केशरिया रंग से सराबोर हो जाता है. पूरा माहौल शिवमय हो जाता है. अगर कुछ सुनाई देता है तो वो है हर-हर महादेव की गूंज, बोलबम का नारा. कुंवारी लड़किओं से लेकर बुजुर्ग तक सब सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने में लीन दिखाई देते हैं. कोई सम्पूर्ण माह व्रत रखता है तो कोई सोमवार को, परन्तु सबसे महत्पूर्ण आयोजन है ये कठिन यात्राएं जिनका गंतव्य शिव से सम्बन्धित देवालय होते हैं, जहां जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करतें हैं.

भगवान भोलेनाथ का ध्यान जब हम करते हैं तो श्रावण का महीना, रूद्राभिषेक और कांवर का उत्सव आंखों के सामने होता है. शिव भूतनाथ, पशुपतिनाथ, अमरनाथ आदि सब रूपों में कहीं न कहीं जल, मिट्टी, रेत, शिला, फल, पेड़ के रूप में पूजनीय हैं. जल साक्षात् शिव है, तो जल के ही जमे रूप में अमरनाथ हैं. बेल शिववृक्ष है तो मिट्टी में पार्थिव लिंग है

सालों से चल रही है पवित्र कांवर यात्रा

ऐसा नहीं है कि कांवर यात्रा कोई नयी बात है यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है. फर्क बस इतना है कि पहले इक्का-दुक्का शिव भक्त ही कांवर में जल लाने की हिम्मत जुटा पाते थे, लेकिन पिछले दस सालों से शिव भक्तों कि संख्या में लगातार वृद्धि होती चली जा रही है. मतलब इक्का-दुक्का से सैंकड़ों फिर हजारों और अब लाखों-करोड़ों कांवरियां जलाभिषेक अपने आराध्य देव भगवान भोलेनाथ को कर रहे है. 

पूरे साल भक्त करते हैं इंतजार

कांवर लाने के लिए शिव के भक्त पूरे साल इंतजार करतें हैं कि कब वो हरिद्वार या झारखंड के सुल्तानगंज के लिए प्रस्थान करेंगे. कठिन यात्रा को पैदल पार करके भगवान भोलेनाथ पर चढायेंगे. कुछ लोग तो गंगोत्री तक से भी जल लेकर धाम में चढ़ाते हैं. हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवर लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं.

श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है. कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं. कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है. पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु-पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोड़ों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है और किसी न किसी रुप में इन्हें भी जल मिल जाता है.

भगवान परशुराम ने शुरू की कांवर यात्रा

 

हरिद्वार में कांवर यात्रा के बाबत कहा जाता है सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवर लाकर पुरा महादेव, जो यूपी के बागपत में है, भगवान भोलेनाथ की नियमित पूजा करते थे. श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को गढ़मुक्तेश्वर से कांवर में गंगा जल लाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक किया करते थे. आज भी उसी परंपरा का अनुपालन करते हुए श्रावण मास में गढ़मुक्तेश्वर, जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है, से जल लाकर लाखों लोग श्रावण मास में भगवान शिव पर चढ़ाकर अपनी कामनाओं की पूर्ति करते हैं. कहते है भगवान शिव को श्रावण का सोमवार विशेष रूप से प्रिय है. 

श्रावण में भगवान भोलेनाथ का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है. भगवान शिव की हरियाली से पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है. कांवर लाने वाले लोगों की संख्या हाइवे पर बढ़ने के साथ ही उनकी सेवा करने वालों की संख्या बढ़ गई है. कांवर लेकर आने वाले लोगो के पैरों में पैदल चलते-चलते छाले पड़ने लगे है. भक्तों को पैरों में छाले एवं बदन दर्द परेशान कर रहा है, लेकिन वह इसे भोले बाबा का प्रसाद मानकर अपनी यात्रा पूरी करने में जुटे हैं.

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