International Albinism Awareness Day 2023: छूआछूत का रोग नहीं है एल्बिनिज्म, जानें इसमें क्यों सफेद हो जाता है स्किन का रंग
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What is Albinism Disease: एल्बिनिज्म एक ऐसा रोग है जिसमें स्किन का रंग सफेद पड़ जाता है. इसे रंगहीनता और धवलता का रोग भी कहा जाता है. हमारे समाज में ज्यादातर लोग एल्बिनिज्म को छुआछूत की बीमारी मानते हैं, जबकि ये सिर्फ एक मिथक है. एल्बिनिज्म से ग्रसित लोगों को समाज में भेदभाव और पक्षपात का सामना करना पड़ता है. इस बीमारी से जुड़े मिथक को तोड़ने और लोगों के बीच इस रोग के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 13 जून को International Albinism Awareness Day मनाया जाता है. आइए आज इस मौके पर आपको बताते हैं वो बातें जो हर किसी के लिए जानना जरूरी हैं.
स्किन सफेद होने की वजह
इस मामले में नेचुरोपैथी विशेषज्ञ डॉ. रमाकान्त शर्मा बताते हैं कि मेलेनिन हमारे शरीर में पाया जाने वाला ऐसा तत्व है, जिसकी वजह से त्वचा, बाल और आंखों का रंग निर्धारित होता है. शरीर में मेलेनिन जितना अधिक होगा, आंखों, बालों और त्वचा का रंग उतना ही गहरा होगा. इसकी कमी होने से आंखों, बाल या त्वचा का रंग सफेद, भूरा या हल्का लाल भी हो सकता है. एल्बिनिज्म के मरीजों के शरीर में मेलेनिन ठीक से बन नहीं पाता है, इसलिए उनकी त्वचा का रंग सफेद हो जाता है.
छुआछूत का रोग नहीं
एल्बिनिज्म को लोग छूआछूत का रोग मानते हैं. लोगों को लगता है कि अगर उन्होंने इससे ग्रसित किसी व्यक्ति को छू लिया तो उनको भी ये रोग हो जाएगा और त्वचा सफेद पड़ने लग जाएगी. लेकिन ये धारणा गलत है् एल्बिनिज्म कोई संक्रामक रोग नहीं है, ये सिर्फ एक जेनेटिक कंडीशन है. ये रोग ज्यादातर मामलों में बच्चों को माता-पिता से मिलता है. इसके अलावा किसी अन्य कारण से शरीर में मेलेनिन का उत्पादन कम हो जाए, तो भी ये रोग हो सकता है.
एल्बिनिज्म के लक्षण
- त्वचा का सफेद या भूरा होना
- आईब्रो, आईलैशेज का रंग पीला या गोल्डन होना
- स्किन पर झाइयां होना या बड़े धब्बे होना
- बालों का रंग भूरा होना
- बिना पिग्मेंट या पिग्मेंट के साथ तिल या मोल्स होना
- सूरज की रोशनी के प्रति अतिसंवेदनशील होना आदि
अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज्म अवेयरनेस डे का मकसद
भारत समेत दुनियाभर में एल्बिनिज्म के तमाम रोगी हैं. समाज में खासतौर पर भारत में इस रोग को लेकर फैली गलत धारणा के कारण इन रोगियों को भेदभाव और पक्षपातपूर्ण व्यवहार सहना पड़ता है. इसके कारण इनका जीवन काफी तनावपूर्ण हो जाता है और रोगी कई बार समाज में अलग-थलग पड़ जाते हैं. इस रोग से जुड़े तमाम मिथकों को तोड़ने और लोगों को अवेयर करने के लिए हर साल अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज्म डे मनाया जाता है, ताकि इस रोग से पीड़ित लोगों को भी समाज में सामान्य जीवन जीने लायक बनाया जा सके.