होली 2023 (Holi 2023) का त्‍योहार आने वाला है. हर साल फाल्‍गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन (Holika Dahan on Purnima) किया जाता है, इसके बाद अगले दिन प्रतिपदा तिथि पर रंगों की होली खेली जाती है. 6 मार्च को चतुर्दशी तिथि शाम 6 बजकर 17 मिनट तक रहेगी, इसके बाद पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी और 7 मार्च 2023 मंगलवार 06:09 मिनट तक रहेगी. वहीं 6 मार्च को सोमवार को ही शाम 4:18 मिनट से भद्रा शुरू हो जाएगी. 6 मार्च की शाम को पूर्णिमा तिथि लगने के कारण कुछ लोग 6 मार्च को होलिका दहन करने की बात कह रहे हैं. लेकिन ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र की मानें तो भद्राकाल को शास्‍त्रों में अशुभ माना गया है. अगर भद्राकाल (Bhadrakal) में होली जलायी जाए तो इसके अशुभ परिणाम झेलने पड़ते हैं. यहां जानिए भद्रा से जुड़ी तमाम बातें और क्‍यों अशुभ माना जाता है भद्राकाल.

पूर्णिमा होने के बावजूद इसलिए 6 मार्च को नहीं जलेगी होली

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ज्‍योतिषाचार्य की मानें तो अगर मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशियों में चंद्रमा हो तो भद्रावास स्वर्ग में  होता है,  कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में चंद्रमा होने पर भद्रावास पाताल लोक में होता है और कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि में चन्द्रमा होने पर भद्रावास मृत्युलोक यानी पृथ्‍वीलोक में होता है. भद्रा जहां रहती है, वहीं के लोगों को उसके परिणाम झेलने होते हैं. मूहर्त चिंतामणि ग्रंथ में भद्रा में मुख्य रूप से रक्षा बंधन, होलिका दहन वर्जित बताया गया है. इस बार होली पर चतुर्दशी को सिंह राशि में चन्द्रमा होने के कारण  6 मार्च सोमवार में शाम 4:18 मिनट से भद्रा शुरू हो जाएगी और उसका वास पृथ्वीलोक में होगा. इस कारण 6 मार्च को होली नहीं जलायी जानी चाहिए. निर्णय सिंधु ग्रंथ में लिखा है कि भद्रा में अगर होली जलायी जाए तो देश को बड़ी हानि हो सकती है और देशवासियों को बड़े भयानक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है.

होलिका दहन का शुभ समय

ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि होलिका दहन के लिए शुभ समय 7 मार्च 2023 को शाम 6:24 मिनट से रात 8:51 मिनट तक है. होलिका दहन के अगले दिन यानी 8 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी. स्मृतिसार नामक शास्त्र के मुताबिक जिस वर्ष फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि दो दिन के प्रदोष को स्पर्श करे, तब दूसरी पूर्णिमा यानी अगले दिन में होली जलाना चाहिए. इस बार भी पूर्णिमा तिथि 6 मार्च को शुरू होने के बाद 7 मार्च को शाम 06:09 मिनट पर समाप्‍त होगी. इस तरह पूर्णिमा तिथि 6 और 7 मार्च दोनों दिनों के प्रदोष काल को स्‍पर्श करेगी. इसलिए भी 7 मार्च को ही होलिका दहन शास्‍त्र सम्‍मत है. 

क्‍यों अशुभ है भद्रा

पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा सूर्यदेव व उनकी पत्नी छाया की पुत्री हैं और शनिदेव की सगी बहन हैं. भद्रा का स्वभाव भी कड़क है और वे काफी कुरूप हैं. मान्यता है कि भद्रा जन्‍म से ही बेहद काले रंग की थीं. जन्म लेने के बाद वे ऋषि मुनियों के यज्ञ आदि में विघ्न डालने लगीं, तब सूर्य देव को उसकी चिंता होने लगी और उन्होंने ब्रह्मा जी से परामर्श मांगा.

भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दे दिया. साथ ही कहा कि भद्रा अब तुम बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में निवास करो. जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करें, तो तुम उनके कामों में विघ्न डाल देना. जो तुम्हारा सम्मान न करे, उनके काम तुम बिगाड़ देना. ये कहकर ब्रह्मा जी अपने लोक को चले गए. इसके बाद से भद्रा सभी लोकों में भ्रमण करने लगीं. भद्रायुक्त समय को भद्राकाल कहा जाता है. भद्राकाल के समय में किसी भी तरह के शुभ काम करना वर्जित होता है.

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