होली पर भांग की ठंडाई (Bhang Thandai on Holi) पीने का चलन काफी पुराना है. भांग लेने के तुरंत बाद इसका नशा नहीं चढ़ता, करीब आधा घंटे बाद इसका असर पड़ना शुरू होता है और धीरे-धीरे ये नशा व्‍यक्ति के दिमाग पर असर करने लगता है. उसके नर्वस सिस्‍टम को प्रभावित करता है, जिससे व्‍यक्ति का खुद की गतिविधियों पर से काबू खत्‍म होने लगता है. ऐसे में व्‍यक्ति हंसता है तो हंसता ही जाता है, रोता है तो रोता ही रहता है और खाता है तो खाता ही जाता है. यानी जिस काम को शुरू कर दे, उसे ही लगातार करता रहता है.

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जिन लोगों ने भांग कभी न पी हो और उन्‍हें भांग वाली ठंडाई पिला दी जाए तो उनका हाल और भी खराब हो जाता है. इसलिए भांग लेने के बाद कुछ गलतियां करने से बचना चाहिए. अगर व्‍यक्ति होश में नहीं है, तो उसके  शुभचिंतक इस बात का खयाल रखें, वरना लेने के देने पड़ सकते हैं.

इन गलतियों को करने से बचें

1. खाली पेट भांग लेने की गलती न करें और न ही इसे सीधे तौर पर खाएं. इसका सेवन दूध के साथ या ठंडाई के रूप में ही करें, ताकि इसे पीने के बाद भी आप अपने नियंत्रण में रहें.

2. अगर भांग ली है तो मजे-मजे में अल्कोहल लेने की गलती न करें, वरना इसका तगड़ा नुकसान आपको उठाना पड़ जाएगा.

3. भांग लेने के बाद ड्राइविंग न करें क्योंकि भांग के नशे में व्यक्ति को अपना होश नहीं होता. ऐसे में दुर्घटना का रिस्‍क काफी बढ़ जाता है.

4. भांग पीने के बाद मीठा न खाएं, इससे भांग का नशा बढ़ जाता है. ऐसे में आपकी परेशानी और बढ़ सकती है.

5. ठंडाई पीने के बाद किसी तरह की दवा का सेवन न करें वरना रिएक्शन हो सकता है. ऐसे में आपको सिरदर्द, उल्टी या पेट में गड़बड़ी की दिक्कत हो सकती है.

नशा ज्‍यादा हो जाए तो

  • अगर भांग का नशा ज्‍यादा हो जाए तो इसे उतारने के लिए खट्टे फल जैसे मौसमी, अंगूर और संतरे खाएं. केवल नींबू का रस लें. इमली का पानी लें. इससे नशा काफी कम हो जाता है.
  • गुनगुने पानी को सिर पर डालकर नहाएं. इससे व्यक्ति का हाइपर एनालिसिस कम हो जाएगा और वो बेहतर महसूस करेगा.
  • अरहर की दाल का पानी पिलाने से भी भांग के नशे में कमी आती है. इसके अलावा नारियल पानी भी भांग के नशे को कम करने में मददगार है.

कैसे शुरू हुआ होली पर भांग का चलन

होली पर भांग पीने के पीछे एक पौराणिक कथा है जो भगवान विष्‍णुऔर शिव जी से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि होली से पहले के आठ दिनों में हिरण्‍यकश्‍यप नामक राक्षस ने अपने पुत्र प्रहलाद को बहुत सताया था. प्रहलाद भगवान विष्‍णु का बड़ा भक्‍त था. फाल्‍गुन मास की पूर्णिमा के दिन हिरण्‍यकश्‍यप की बहन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी थी क्‍योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्‍त था. लेकिन प्रहलाद की भक्ति जीत गई और होलिका जलकर भस्‍म हो गई और प्रहलाद की जान बच गई. इसके बाद भी  हिरण्‍यकश्‍यप नहीं माना और प्रहलाद को मारने का प्रयास किया. प्रहलाद की जान बचाने के लिए भगवान विष्‍णु ने नरसिंह रूप धारण किया और हिरण्‍यकश्‍यप का वध कर दिया.

लेकिन हिरण्‍यकश्‍यप का वध करने के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था. तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए शिव जी ने शरभ अवतार लिया जिसका स्‍वरूप आधे शेर और आधे पक्षी का था. अपने शरभ अवतार से शिव जी ने विष्‍णु भगवान के नरसिंह अवतार को परास्‍त कर दिया. तब जाकर नरसिंह भगवान का क्रोध शांत हुआ और नरसिंह भगवान ने अपना छाल शिव जी को आसन के तौर पर अर्पित कर दिया. इसके बाद कैलाश में शिवगणों ने उत्‍सव मनाया और इस आनंद उत्‍सव में भांग पीकर मतवाले होकर नृत्‍य किया. तब से होली के समय पर भांग पीने का चलन शुरू हो गया. आज भी लोग भांग की ठंडाई पीकर गानों की धुन पर नृत्‍य करते हैं और जमकर होली खेलते हैं.