Harivansh Rai Bachchan: हरिवंश राय बच्चन की पुण्यतिथि पर पढ़िए वो महान रचनाएं, जिसने लोगों को दी जीवन की नई राह
Harivansh Rai Bachchan: हरिवंश राय बच्चन की कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध कविताओं में से एक है मधुशाला. उन्होंने और भी बहुत कविताएं लिखी हैं जैसे कि तेरा हार, मधुबाला, हलाहल, मधुकलश, एकांक-संगीत, प्रणय-पत्रिका, सूत की माला.
Harivansh Rai Bachchan: डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन का नाम सुनते ही उनकी रचनाएं याद आने लग जाती हैं. साहित्य के महाकवि डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. वे उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. हरिवंश राय ने 1983 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में एमए किया था. वे 1941 से 1952 तक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता भी रहें थे. इसके बाद हरिवंश राय बच्चन पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उन्होंने इंग्लिश लिटरेचर पर रिसर्च की थी.
हरिवंश राय बच्चन की अद्भुत रचनाएं
उन्होंने कई ऐसी अद्भुत और उम्दा कविताएं लिखी हैं, जो कोई आज भी पढ़े तो दिल को छू जाएं. वो हिंदी साहित्य के रचनाकार थे. हर किसी को उनकी लिखी हुई कविताएं पसंद आती थी. उनकी कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध कविताओं में से एक है मधुशाला. उन्होंने और भी बहुत कविताएं लिखी हैं जैसे कि तेरा हार, मधुबाला, हलाहल, मधुकलश, एकांक-संगीत, प्रणय-पत्रिका, सूत की माला, निशा निमंत्रण, दो चट्टानें, मिलन यामिनी, बहुत दिन बीते आदि. दो चट्टानें कविता के लिए उन्हें वर्ष 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था. आज हरिवंश राय बच्चन की पुण्यतिथि पर पढ़े, उनकी कुछ शानदार और चुनिंदा कविताएं.
कविता मधुशाला की कुछ पंक्तियां
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।
कविता-अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
कविता-बाढ़
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
वह सब नीचे बैठ गया है
जो था गरू-भरू,
भारी-भरकम,
लोह-ठोस
टन-मन
वज़नदार!
और ऊपर-ऊपर उतरा रहे हैं
किरासिन की खालीद टिन,
डालडा के डिब्बे,
पोलवाले ढोल,
डाल-डलिए-सूप,
काठ-कबाड़-कतवार!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
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