एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर हो जाने की समस्या से हर कोई परेशान है. दुनिया भर के वैज्ञानिक–डॉक्टर्स और पॉलिसी बनाने वाले इस समस्या का हल ढूंढने में लगे हैं. इस समस्या के हल के लिए सरकार ने देश भर के डॉक्टर्स, केमिस्ट और मेडिकल एसोसिएशन्स को अलग अलग एडवाइजरी जारी की. एडवाइजरी में कहा गया है कि किसी भी मरीज को एंटीबायोटिक दवा लिखते समय प्रिस्क्रिप्शन पर ये लिखना अनिवार्य होगा कि ये दवा मरीज को क्यों लिखी जा रही है.

IMA को इन बातों पर है एतराज, रेगुलेशन ने लाने के लिए की अपील

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सरकार की इस चिट्ठी पर देश में डॉक्टरों की सबसे बड़ी मेडिकल संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए ने आपत्ति जताई है. सरकार के DGHS की चिट्ठी एक अपील के तौर पर जारी की गई है, लेकिन उसमें अनिवार्यता लागू की गई है. जिस पर आईएमए को ऐतराज है.IMA ने डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसिज को चिट्ठी लिखकर कहा है , 'किसी दवा को लिखने के लिए डॉक्टर से स्पष्टीकरण लेना सही तरीका नहीं है. मरीजों की भीड़ को देखने के साथ साथ डॉक्टर पर ये एक और बोझ होगा. इसके लिए रेगुलेशन ना लाया जाए तो बेहतर है.'

पढ़े-लिखे डॉक्टर्स मिस-यूज के लिए नहीं है जिम्मेदार, झोला छाप डॉक्टर्स पर रख रही है नजर

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसीडेंट डॉ आर वी असोकन की चिट्ठी के मुताबिक, 'पढ़े-लिखे डॉक्टर्स एंटीबायोटिक दवाओं के मिस-यूज के लिए जिम्मेदार नहीं हैं. हमें विश्वास है कि सरकार झोलाछाप लोगों, मेडिकल स्टोर वालों के बिना डॉ के पर्चे के सीधे मरीज को एंटीबायोटिक दवा दे देने और पोल्ट्री के जरिए लोगों तक पहुंच रहे एंटीबायोटिक पर भी नजर रख रही है.” IMA ने डीजीएचएस से इस बारे में बात करने के लिए समय भी मांगा है.

IMA की आपत्तियों पर जारी किया गया है सर्वे, 72 फीसदी मरीजों को लिखी गई एंटीबायोटिक दवाएं 

आईएमए की आपत्ति के जवाब में ये सर्वे हाजिर है, जो देश के पढ़े लिखे डॉक्टरों पर किया गया. जिन्होंने, जी भर कर एंटीबायोटिक दवाएं लिखी हैं और ये सिलसिला जारी है. इसी महीने सरकार की संस्था NCDC (National Centre for Disease  Control) ने एक सर्वे के नतीजे जारी किए हैं. सर्वे के मुताबिक 72 प्रतिशत मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं लिखी गई. 53% मरीजों को एक से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं दी जा रही थी. 4% ऐसे भी थे जिन्हें 4 से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं एक साथ दे दी गई.

68 फीसदी बच्चों को दी गई है एंटीबायोटिक दवाई, 20 अस्पतालों को किया गया था शामिल

सर्वे के मुताबिक 68 प्रतिशत बच्चों को एंटीबायोटिक दवाएं दी गई. कुल मरीजों में से आधे मरीज वो थे जिन्हें केवल बचाव के लिए यानी एहतियात के तौर पर एंटीबायोटिक दवा खिलाई जा रही थी. ये सर्वे नवंबर 2021 से अप्रैल 2022 तक किया गया. सर्वे में देश के 20 अस्पतालों को शामिल किया गया. 9652 मरीजों को लिखे गए डॉक्टरों के 12342 पर्चे यानी प्रिस्क्रिप्शन को शामिल किया गया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक57 प्रतिशत वो दवाएं लिखी गई जिनके जल्दी ही बेअसर होने का खतरा है. 

इन दवाओं को WHO ने वॉच ग्रुप में रखा है, हो सकते हैं गंभीर साइड इफेक्ट्स

38 प्रतिशत दवाएं वो थी जो ज्यादा इस्तेमाल की जा सकती हैं. इन्हें Access ग्रुप में रखा गया है. लेकिन तीन प्रतिशत दवाएं वो थी जिनके इस्तेमाल की मनाही है. WHO ने इन्हें not recommended की कैटेगरी में रखा है क्योंकि इन दवाओं के गंभीर साइड इफेक्टस हो सकते हैं. दो प्रतिशत वो दवाएं भी लिखी गई जो रिजर्व कैटेगरी में आती हैं जिन्हें बेहद गंभीर और चुनिंदा हालात में ही दिया जा सकता है.

रेगुलेशन से डाला जा रहा है बोझ, कौन चेक करेगा डॉक्टर के लिखे पर्चे  

काश्वी अस्पताल के डॉ आशीष जायसवाल ने कहा अपनी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को आपत्ति है कि डॉक्टरों पर रेगुलेशन की तलवार लटका कर उन पर बोझ डाला जा रहा है कि वो दवा के पीछे का कारण बताओ नोटिस ही समझाते रहें तो वो मरीज कब देखें. हालांकि, भारत में भी एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर कई नियम कानून हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि डॉक्टरों के लिखे पर्चों को चेक कौन करेगा. क्योंकि ये काम आज तक तो किसी ने किया नहीं.इसीलिए डॉक्टरों की बहानेबाजी के साथ साथ सवाल सरकार की कार्यशैली पर भी उठते हैं.

शेड्यूल H कैटेगरी में आती है एंटीबायोटिक दवाएं, बिना प्रिस्क्रिप्शन नहीं बिक सकती दवाएं

भारत में एंटीबायोटिक दवाएं शेड्यूल H कैटेगरी में आती हैं. ये दवाएं बिना प्रिस्क्रिप्शन नहीं बिक सकती. लेकिन आज तक इस पर कोई लगाम नहीं लगाई जा सकी. केमिस्ट को किसी भी मरीज को एंटीबायोटिक दवा देते समय डॉक्टर का पर्चा रिकॉर्ड में रखना जरुरी होता है। लेकिन इसे भी आमतौर पर चेक नहीं किया जाता. 

लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में भारतीयों ने 5 अरब से ज्यादा एंटीबायोटिक गोलियां खाई. ये आंकड़ा पिछले पांच साल में बढ़ ही रहा है. एंटीबायोटिक दवा बीमारी के बैक्टीरिया को मारने के लिए दी जाती है लेकिन बार बार दवा देने से बैक्टीरिया पर दवा कमजोर पड़ने लगती है और बैक्टीरिया ताकतवर हो जाता है.