Diwali 2023: श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी में मनाई जाती है दिवाली, फिर क्यों इस दिन होती है लक्ष्मी पूजा?
कहा जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही प्रभु श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके और रावण का वध करने के बाद अयोध्या वापस लौटकर आए थे. उस समय लोगों ने श्रीराम के लौटने की खुशी में घरों को दीयों से रौशन किया था. तब से ये त्योहार रौशनी का पर्व बन गया.
Diwali Festival 2023: देशभर में रौशनी के त्योहार दिवाली की धूम है. कहा जाता है कि इसी दिन प्रभु श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके और रावण का वध करने के बाद अयोध्या वापस लौटकर आए थे. उस समय लोगों ने श्रीराम के लौटने की खुशी में घरों को दीयों से रौशन किया था. तब से ये त्योहार रौशनी का पर्व बन गया. हर साल दीपावली के मौके पर लोग घरों को दीयों, मोमबत्ती और लाइट्स से रौशन करते हैं. लेकिन कभी आपने ये सोचा है कि जब श्रीराम के लौटने की खुशी के तौर पर ये पर्व मनाया जाता है, तो इस दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन क्यों किया जाता है? आइए आपको बताते हैं-
इसलिए होती है मां लक्ष्मी की पूजा
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को माता लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस माना जाता है. इसके पीछे एक कथा बताई जाती है कि एक बार माता लक्ष्मी अपने महालक्ष्मी स्वरूप में इंद्रलोक में वास करने पहुंची. माता की शक्ति से देवताओं की भी शक्ति बढ़ गई. इससे देवताओं को अभिमान हो गया कि अब उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता. एक बार इंद्र अपने ऐरावत हाथी पर सवार होकर जा रहे थे, उसी मार्ग से ऋषि दुर्वासा भी माला पहनकर गुजर रहे थे. प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने अपनी माला फेंककर इंद्र के गले में डाली, लेकिन इंद्र उसे संभाल नहीं पाए और वो माला ऐरावत हाथी के गले में पड़ गई.
हाथी ने सिर को हिला दिया और वो माला जमीन पर गिर गई. इससे ऋषि दुर्वासा नाराज हो गए और उन्होंने श्राप दे दिया कि जिसके कारण तुम इतना अहंकार कर रहे हो, वो पाताल लोक में चली जाए. इस श्राप के कारण माता लक्ष्मी पाताल लोक चली गईं. लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए और दानव मजबूत हो गए. तब जगत के पालनहार नारायण ने महालक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन करवाया. देवताओं और राक्षसों के प्रयास से समुद्र मंथन हुआ तो इसमें कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि निकले. इसलिए इस दिन धनतेरस मनाई जाती है और अमावस्या के दिन लक्ष्मी बाहर आईं. इसलिए हर साल कार्तिक मास की अमावस्या पर माता लक्ष्मी की पूजा होती है.
लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा क्यों ?
दिवाली का त्योहार चातुर्मास के दौरान आता है. इस बीच श्रीहरि योग निद्रा में होते हैं. उनकी निद्रा भंग न हो, इसलिए दिवाली के दिन लक्ष्मी माता के साथ उनका आवाह्न नहीं किया जाता. ऐसे में माता महालक्ष्मी अपने दत्तक पुत्र भगवान गणेश के साथ घरों में पधारती हैं. इसके अलावा एक वजह ये है कि माता लक्ष्मी को धन और ऐश्वर्य की देवी हैं. अगर धन और ऐश्वर्य किसी के पास ज्यादा आ जाए तो उसे अहंकार हो जाता है. मति भ्रष्ट हो जाती है. ऐसा व्यक्ति अहंकार के चलते धन को संभाल नहीं पाता.
धन और वैभव को सद्बुद्धि के साथ ही साधा जा सकता है. गणपति बुद्धि के देवता हैं. जहां गणपति का वास होता है, वहां के संकट टल जाते हैं और सब कुछ शुभ ही शुभ होता है. जब लोग गणपति के साथ माता लक्ष्मी का पूजन करते हैं तो उनमें धन का सद्उपयोग करने की क्षमता विकसित होती है. इसलिए दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी पूजन किया जाता है, ताकि घर में लक्ष्मी का वास हो और शुभता व समृद्धि बनी रहे.