क्या है IIT कानपुर की क्लाउड सीडिंग तकनीक, जिससे होती है नकली बारिश, कैसे मिलेगा पॉल्यूशन से छुटकारा
Artificial Rain by Cloud Seeding:वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इस महीने 'क्लाउड सीडिंग' के जरिए कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रही है.
Artificial Rain by Cloud Seeding: दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय (Gopal Rai) ने बुधवार को कहा कि दिल्ली सरकार राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इस महीने 'क्लाउड सीडिंग' के जरिए कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रही है. राय ने IIT Kanpur के वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक की, जिन्होंने बताया कि ‘क्लाउड सीडिंग’ की कोशिश तभी की जा सकती है जब वातावरण में बादल हों या नमी हो. विशेषज्ञों का अनुमान है कि 20-21 नवंबर के आसपास ऐसे हालात बन सकते हैं. इसके लिए वैज्ञानिकों से गुरुवार तक एक प्रस्ताव तैयार करने को कहा है जिसे सुप्रीम कोर्ट को सौंपा जाएगा.
राय ने इस बात पर जोर दिया कि इस तकनीक के इस्तेमाल के लिए केंद्र और राज्य सरकारों दोनों से मंजूरी प्राप्त करना समय के हिसाब से संवेदनशील मामला है. कृत्रिम बारिश पर शोध करने वाले आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिकों ने 12 सितंबर को मंत्री के सामने एक प्रस्तुति दी थी.
कृतिम बारिश के लिए जरूरी है हवा में नमी
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि कृत्रिम बारिश कराने का प्रयास केवल तभी किया जा सकता है जब बादल हों या नमी उपलब्ध हो. उन्होंने कहा कि इस संबंध में भारत में कुछ कोशिशें की गई हैं जो तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में की गई थी. वैश्विक स्तर पर कृत्रिम बारिश पर शोध किया जा रहा है... मूल आवश्यकता बादल या नमी की होती है. भारत में कृत्रिम बारिश पर शोध किया जा रहा है लेकिन अभी तक इसमें कोई खास प्रगति नहीं हुई है.
कैसे होती है क्लाउड सीडिंग से कृतिम बारिश
‘क्लाउड सीडिंग’ में संघनन को बढ़ावा देने के लिए पदार्थों को हवा में फैलाया जाता है जिसके नतीजतन बारिश होती है. ‘क्लाउड सीडिंग’ के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे आम पदार्थों में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) शामिल हैं. इस तकनीक का उपयोग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में किया गया है, मुख्य रूप से वहां जहां पानी की कमी या सूखे की स्थिति होती है.
अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ‘क्लाउड सीडिंग’ तकनीक का इस्तेमाल करने वाले देशों में शामिल हैं. ‘क्लाउड सीडिंग’ की प्रभावशीलता और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर शोध और चर्चा जारी है. प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियों के साथ-साथ वाहनों से निकलने वाला धुआं, पराली जलाने, आतिशबाजी और अन्य स्थानीय प्रदूषण स्रोतों की वजह से हर साल सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर में पहुंच जाती है.
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के विश्लेषण के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में एक से 15 नवंबर तक प्रदूषण चरम पर होता है और इसी समय पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले बढ़ते हैं.