धनतेरस के साथ ही दिवाली का पांच दिनों का त्‍योहार शुरू हो चुका है. धनतेरस के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी का पर्व होता है. इस दिन शाम के समय यमराज की पूजा की जाती है और शाम के समय चौमुखी दीपक जलाया जाता है. मान्‍यता है कि इस दीपक को जलाने से अकाल मृत्‍यु का खतरा टलता है. ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र की मानें तो अगर ये दीपक परिवार का सबसे बड़ा सदस्‍य जलाए तो पूरे परिवार के ऊपर से अकाल मृत्‍यु का खतरा टल जाता है. यहां जानिए इस दीपक को जलाते समय किन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए.

इस तरह से जलाना चाहिए दीपक

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यम दीप को परिवार के सबसे बड़े सदस्‍य को जलाते समय दीपक में दो बत्तियां क्रॉस करके लगानी चाहिए. बत्तियां इस तरह से लगाई जानी चाहिए कि उनके मुख चारों दिशाओं में रहें. दीपक को एक तरफ से जलाया जाता है और इसे मुख्‍य द्वार की चौखट पर इस तरह से रखा जाता है. जलती हुई बाती दक्षिण दिशा की ओर रहनी चाहिए. दक्षिण दिशा में यमराज और सभी पूर्वजों का निवास माना गया है. दीपक रखने के बाद इसका रोली अक्षत वगैरह से पूजन करें. किसी चलनी या लैंप के शीशे से इसे कवर कर दें, ताकि हवा से ये बुझने न पाए. दीपक जलाने के बाद यमराज से परिवार के लोगों की दीर्घायु और उनके जीवन की समस्‍याओं का अंत करने की प्रार्थना करें. 

एक दीप और जलाएं

यम दीप के अलावा भी एक चौमुखी दीपक घर के बुजुर्ग को इस दिन और जलाना चाहिए और इसे जलाने के बाद घर के हर कोने में घुमाना चाहिए. इसके बाद प्रभु से परिवार की हर बला हर संकट टालने की प्रार्थना करते हुए और इस दीपक को घर से कहीं दूर स्‍थान पर जाकर रख आएं या फिर कहीं मंदिर वगैरह में रख दें. ये महाउपाय भी परिवार को तमाम संकटों से बचाता है. 

यम दीप जलाने की शुरुआत कैसे हुई

नरक चतुर्दशी के दिन यम दीप जलाने की शुरुआत कैसे हुई, ये जानने के लिए आपको एक पौराणिक कहानी जाननी चाहिए. ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि कथा के अनुसार एक बार यमराज ने अपने यमदूतों से पूछा कि क्‍या कभी किसी के प्राण हरते हुए तुम्‍हें दया आयी है? मुझे सच-सच बताना. इस पर यमदूतों ने कहा कि राजा हिमा के पुत्र के लिए ज्‍योतिषियों ने भविष्‍यवाणी की थी कि वो अपनी शादी के चौथे दिन ही मर जाएगा. पुत्र की सुरक्षा के लिए राजा ने उसे यमुना के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रहने के लिए भेज दिया ताकि कोई स्‍त्री उसके आसपास भी न भटक सके. लेकिन एक बार एक दिन राजा हंस की युवा पुत्री यमुना के तट पर पहुंच गई. राजा हिमा का पुत्र उस पर मोहित हो गया और उससे गंधर्भ विवाह कर दिया. 

लेकिन जब चौथे दिन उसकी मौत हुई, तो राजकुमार की पत्‍नी का विलाप देखकर हम भी कांप गए थे. इतनी सुंदर जोड़ी हमने आज तक नहीं देखी थी. तब यमदूतों ने यमराज से कहा कि महाराज क्‍या ऐसा कोई उपाय है कि लोग खुद को अकाल मृत्‍यु से बचा सकें. इस पर यमराज ने कहा कि कार्तिक मास की कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को जो भी हमारा विधिवत पूजन करेगा और घर के मुख्‍यद्वार पर दीपक जलाएगा, उसके घर में सभी सदस्‍य अकाल मृत्‍यु से सुरक्षित रहेंगे. तब से हर साल नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के नाम से यम दीप दरवाजे के बाहर जलाया जाता है.