चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. ये दिन माता शीतला को समर्पित होता है. शीतला अष्‍टमी के दिन से होली का पर्व समाप्‍त हो जाता है, साथ ही ठंडक का असर भी खत्‍म हो जाता है. शीतला अष्‍टमी के दिन माता शीतला की विशेष पूजा की जाती है और उनको बासे भोजन का भोग लगाया जाता है. इस कारण शीतला अष्‍टमी को बासौड़ा, बसौड़ा और बसौड़ा अष्‍टमी जैसे नामों से भी जाना जाता है. इस बार शीतला अष्‍टमी 15 मार्च बुधवार को है. आइए इस मौके पर आपको बताते हैं कौन हैं माता शीतला और इन्‍हें क्‍यों लगाया जाता है बासे भोजन का भोग.

कौन हैं माता शी‍तला

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ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि शीतला माता, मां पार्वती का ही एक स्‍वरूप हैं. उन्‍हें आरोग्‍य और स्‍वच्‍छता की देवी माना जाता है. स्‍कंदपुराण में माता शीतला के स्‍वरूप और उनकी कथा का जिक्र किया गया है. शीतला देवी का वाहन गर्दभ है. ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण धारण करती हैं. माता शीतला का श्रद्धापूर्वक पूजन करने से घर में धन धान्य आदि की कमी नहीं रहती. परिवार और बच्चे निरोगी रहते हैं.  बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग आदि समस्याएं परिवार के लोगों को नहीं होतीं.

इसलिए लगाया जाता है ठंडे भोजन का भोग

ज्‍योतिषाचार्य बताते हैं कि स्‍कंद पुराण में मां शीतला की कथा मिलती है. कथा के अनुसार देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं. लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया. इस पर माता नाराज हो गईं और उनके क्रोध की ज्‍वाला से इतनी गर्मी पैदा हो गई कि उस राज्‍य में रहने वाले लोगों के को तेज ज्‍वर हो गया और शरीर में लाल दाने निकल आएं. 

इसके बाद राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने माता से माफी मांगी और उन्‍हें कच्‍चे दूध और ठंडी लस्‍सी का भोग लगाया. इसके बाद माता का गुस्‍सा शांत हुआ. तब से माता शीतला को शीतल यानी ठंडी चीजों का भोग लगाया जाने लगा. माता शीतला को प्रसन्‍न करने के लिए लोग रात में ही माता के भोग को तैयार कर लेते हैं, ताकि सुबह तक वो पूरी तरह से ठंडा हो जाए. अष्‍टमी के दिन खुद भी उसी भोजन को प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं. इस दिन घरों में चूल्हा जलाना भी वर्जित होता है. 

वैज्ञानिक कारण जानें

वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो शीतला अष्टमी के बाद ग्रीष्म काल अपना जोर लगाना शुरू कर देता है. इस दिन को शीत काल के आखिरी दिन के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. इस दिन के बाद से भोजन जल्‍दी खराब होना शुरू हो जाता है. गर्मी का प्रकोप बढ़ने से शरीर में ठंडी चीजों की जरूरत बढ़ जाती है. ऐसे में शीतला अष्टमी के दिन मातारानी को बासे भोजन का भोग लगाकर ये संदेश दिया जाता है कि आज के बाद पूरे ग्रीष्म काल में अब ताजे भोजन को ही ग्रहण करना है.

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