तकनीक का कमाल : Train एक्सीडेंट में गंवा दिया था पैर, इस 'चमत्कार' से फिर लगे चलने-फिरने
बिहार के पंडित बैजनाथ का एक ट्रेन दुर्घटना में पैर बुरी तरह कुचल गया था. वह उम्मीद छोड़ चुके थे कि दोबारा अपने पैरों पर चल पाएंगे. लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें दोबारा अपने पैरों पर खड़ा कर दिया है.
बिहार के औरंगाबाद के 57 वर्षीय बैजनाथ मेडिकल साइंस की तरक्की का जीता जागता उदाहरण हैं. ट्रेन दुर्घटना में उनका पैर बुरी तरह कुचल गया था. वह उम्मीद छोड़ चुके थे कि दोबारा अपने पैरों पर चल पाएंगे. डॉक्टरों ने उनसे कहा था कि पैर काटना पड़ेगा, लेकिन, लखनऊ के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की टीम ने अत्याधुनिक व दुर्लभ ऑपरेशन के जरिए उनका पैरा ठीक कर दिया. अब वह पहले की तरह अपने चल-फिर सकते हैं. खास बात यह रही कि इस ऑपरेशन का खर्च भी काफी कम आया.
पंडित बैजनाथ के साथ दुर्घटना ट्रेन में चढ़ते वक्त हुई थी. उनका बांया पैर ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच फंस गया था. इससे वह बुरी तरह कुचल गया और बाद में इसमें संक्रमण भी हो गया. घरवाले उन्हें लेकर वाराणसी के 1 बड़े सरकारी अस्पताल भागे. वहां डॉक्टरों ने बताया कि पैर काटना पड़ेगा. लखनऊ में भी 1 बड़े सरकारी अस्पताल गए, वहां भी डॉक्टरों ने यही सलाह दी.
इसके बाद पंडित बैजनाथ लखनऊ में सीनियर प्लास्टिक सर्जन डॉ. अमित अग्रवाल के संपर्क में आए. डॉ. अग्रवाल ने कहा कि उनका पैर बच जाएगा. इसके लिए ऑपरेशन करना होगा. ऑपरेशन का नाम सुनकर बैजनाथ थोड़ा घबराए. उन्हें लगा कि इसमें लाखों रुपए का खर्च आएगा. डॉ. अग्रवाल ने उन्हें बताया कि वह कम से कम खर्च में उन्हें उनके पैरों पर खड़ा कर देंगे. बैजनाथ ऑपरेशन के लिए राजी हो गए.
डॉ. अग्रवाल और उनकी टीम ने माइक्रोवैस्कुलर सर्जरी (Microvascular Surgery) तकनीक से बैजनाथ को ठीक किया. इस सर्जरी के जरिए डॉक्टरों ने उनके पैर में ब्लड सर्कुलेशन का रास्ता बनाया. कुछ दिन बाद फिर माइक्रोवैस्कुलर फ्री फ्लैप (पैर के दूसरे स्थान से मांस लेना) के जरिए पैर के शेष भाग को उससे जोड़ा. इसके 3 माह बाद वह फिर चलने-फिरने लगे हैं. उनके पैर की नसें फिर से काम करने लगी हैं. इस ऑपरेशन में डॉ. अमित के साथ डॉ. शोमिख बनर्जी, डॉ. चंद्रकेश, डॉ. मनीष और डॉक्टर राजेश शामिल थे.
क्या होती है माइक्रोवैस्कुलर सर्जरी?
डॉ. अग्रवाल के मुताबिक आम तौर पर शरीर का ऊपरी हिस्सा अगर दुर्घटना में डैमेज होता है तो डॉक्टर उसे सर्जरी के जरिए रिस्टोर करते हैं. लेकिन मेडिकल साइंस में दुर्घटना में डैमेज लोवर लिम्ब को सर्जरी के जरिए रिस्टोर करने का चलन कम है. ऐसे मामलों में अगर मरीज की सही समय पर सर्जरी हो जाए तो उसके लोवर लिम्ब को बचाया जा सकता है. बैजनाथ की सर्जरी में अत्याधुनिक माइक्रोस्कोप की मदद से जो वैसेल या नर्व कट गई थीं पहले उन्हें जोड़ा गया. इसके बाद जांघ के पास से मांस लेकर उससे कटे पैर को जोड़ा गया.
कितना आता है खर्च
डॉ. अग्रवाल के मुताबिक आम तौर पर यह ऑपरेशन काफी जटिल होता है. इस तरह की सर्जरी पर 3 से 4 लाख रुपए का खर्च आता है. लेकिन बैजनाथ की सर्जरी पर डेढ़ लाख रुपए ही खर्च आया. बैजनाथ का कहना है कि उन्हें दूसरा जीवनदान मिला है. डॉक्टरों ने उन्हें कम खर्च में फिर से खड़ा कर दिया.