फर्जी लोन ऐप्स का धंधा अब बंद! ज़ी बिज़नेस की मुहिम Operation Hafta Vasooli को मिली बड़ी जीत
Operation Hafta Vasooli: याद कीजिए करीब दो साल पहले हमने एक मुहिम शुरू की थी. ये मुहिम थी फर्जी लोन ऐप्स के चंगुल से आम लोगों को मुक्ति दिलाने की मुहिम. इसके लिए हमने चलाया था ऑपरेशन हफ्ता वसूली (Operation Hafta Vasooli).
Operation Hafta Vasooli: 11 मई की तारीख फिनटेक इतिहास में क्रान्ति के तौर पर दर्ज हो गई है. गूगल ने अपने प्लेस्टोर (Google playstore) पर लोन देने वाली फिनटेक कंपनियों के लिए डेवलपर पॉलिसी में बड़े और कड़े बदलाव किए हैं. नए नियमों के तहत अब किसी भी पर्सनल लोन लेंडिंग ऐप (loan lending apps) को वेरिफिकेशन की अतिरिक्त शर्तों को मानना होगा. ऐप को खुद से जुड़े NBFC या बैंक की डीटेल और लोन देने लिए उनसे हुए करार की प्रमाणित कॉपी जमा करनी होगी. गूगल के सत्यापन के बिना ऐसी ऐप्स को प्ले स्टोर पर नहीं आने दिया जाएगा.
क्या थी ज़ी बिज़नेस की मुहिम?
ये सब मुमकिन हुआ है ज़ी बिज़नेस की मुहिम के बाद. याद कीजिए करीब दो साल पहले हमने एक मुहिम शुरू की थी. ये मुहिम थी फर्जी लोन ऐप्स के चंगुल से आम लोगों को मुक्ति दिलाने की मुहिम. इसके लिए हमने चलाया था ऑपरेशन हफ्ता वसूली (Operation Hafta Vasooli). हमारी टीम ने बाकायदा अपने स्टिंग के जरिए इंस्टेंट लोन के नाम पर लोगों को टॉर्चर करने वाले गिरोहों का पर्दाफाश किया. हमारी मुहिम का बड़ा असर हुआ. तीन बार मामला संसद में गूंजा, RBI ने ड्राफ्ट गाइडलाइन जारी की, देश में जगह जगह छापेमारियां हुईं और कई गिरफ्तारियां भी. इसके बावजूद हम चुप नहीं बैठे.
मुहिम को मिला नया मिशन: जुड़ा FACE
अपनी मुहिम को हमने नए मिशन में तब्दील किया और अब हमारा मिशन ऐसे प्लेस्टोर्स पर सवाल उठाना था जहां ऐप्स आसानी से पनाह पा लेते हैं. देश में ऐसे दो प्लेस्टोर सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं पहला गूगल प्ले स्टोर और दूसरा एप्पल ऐप स्टोर. हमने तहकीकात की, अपने तमाम शोज़ में सवाल उठाए, स्टिंग ऑपरेशंस करते रहे और इन्वेस्टिगेटिव पत्रकारिता को जारी रखा. इस बीच हमारी मुहिम से आम जनता के साथ साथ फिनटेक कंपनियों का सबसे बड़ा एसोसिएशन यानी FACE भी जुड़ा. FACE ने ऐलान किया उससे जुड़ी तमाम फिनटेक कंपनियां खुद से ऐसी फर्जी ऐप्स की पहचान का काम शुरू करेंगी और RBI, सरकार के साथ साथ गूगल जैसे प्लैटफॉर्म्स तक पहुंचाएंगी.
एक और जीत: गूगल बदलेगा डेवलपर पॉलिसी
नतीजा ये हुआ कि ज़ी बिज़नेस की मुहिम से शुरू होने के बाद से करीब 600 ऐसी संदिग्ध ऐप्स को प्ले स्टोर से हटा दिया गया है. ये हमारे लिए आम जनता के हक में बड़ी कामयाबी थी लेकिन हम चुप नहीं बैठे. हम और तह तक गए और अब मुहिम को एक सवाल की शक्ल दे दी. ये सवाल था कि आखिर आम लोगों को लूटने की मंशा से बनने वाले ऐसे वसूली ऐप्स प्ले स्टोर्स में जगह कैसे पा जाते हैं? हमने पूछा कि डिजिटल डकैतों पर अटैक आखिर कब होगा. हमारी ये सवालनुमा मुहिम फिर अब रंग लाई. फिनेटक एसोसिएशन के डाटा को एक-दूसरे को शेयर कर नकली ऐप्स की पहचान करने के ऐलान के बाद गूगल ने पर्सनल लोन देने वाले ऐप्स को लेकर अपनी डेवलपर पॉलिसी में बड़े बदलाव का ऐलान किया.
प्ले स्टोर पर नहीं मिलेगी ऐसे ऐप्स को जगह
अब लोन देने वाले ऐप्स को गूगल प्ले स्टोर पर बने रहने के लिए गूगल को पूरी डिक्लेरेशन देनी होगी. यही नहीं ऐप चलाने के लिए सभी जरूरी डॉक्यूमेंट्स भी जमा कराने होंगे. पर्सनल लोन देने वाले उन्हीं ऐप को गूगल प्ले स्टोर पर जगह दी जाएगी, जिनके पास किसी बैंक या NBFC से जुड़ा होने का करार हो. यही नहीं ऐप्स की डिस्क्रिप्शन में बाकायदा इन बैंक्स या NBFC का नाम भी होगा. इस तरह के किसी भी करार का गूगल की टीम बाकायदा इन्वेस्टिगेशन करेगी. मतलब गूगल अब बिना RBI लाइसेंस के पर्सनल लोन ऐप्स को गूगल प्ले स्टोर में नहीं उतरने देगा. गूगल का मानना है कि नियमों में बदलाव के बाद ऐप्स की मनमानी और धोखाधड़ी पर लगाम लगेगी.
अब तक कैसे गूगल प्ले स्टोर पर आते थे ऐप्स?
सवाल ये है कि आखिर ये ऐप्स अब तक कैसे गूगल प्ले स्टोर पर कैसे आ जाते थे. इसकी कहानी बड़ी आसान और दिलचस्प दोनों है. पहले इनकी पहुंच की कहानी जानिए, मान लीजिए किसी कंपनी ने कोई ऐप बनाया और वो उसे प्ले स्टोर पर डालना चाहती है. दरअसल, इसके लिए नियम बहुत आसान हैं. एक ऑनलाइन फॉर्म, उसमें बुनियादी जानकारी और काम खत्म. Google Play Developer Console पर जाइए, Mail ID और Password डालकर Log In कीजिए, कुछ पैसे और ऐप का डिस्क्रिप्शन डालकर आप अपनी ऐप पब्लिश कर सकते हैं. सबसे बड़ी बात ये कि कंपनी का नाम, पता और उसके मालिकों के बारे में कोई खास जांच पड़ताल गूगल या एप्पल नहीं करता. एप्पल में जांच के नियम थोड़ा सख्त जरूर हुए लेकिन गूगल प्लेस्टोर पर ऐप पब्लिश करना बेहद आसान रहा है. यही वजह है कि कोई भी फर्जी या गलत मंशा से लाया गया ऐप आपको गूगल प्ले स्टोर पर आसानी से मिल जाता है.
इंस्टेंट लोन की आड़ में टॉर्चर का खेल
यहीं से शुरु होता है वसूली और टॉर्चर का खेल और इसमें भी इंस्टेंट लोन ऐप का टॉर्चर सबसे गंभीर है. छोटी छोटी रकम मसलन 5-10 हजार रुपए के लिए लोग नाते रिश्तेदार या घर परिवार से पैसे मांगने की बजाए ऐसे ऐप्स से लोन लेना पंसद करते हैं. यानी ये ऐप जरूरतमंदों तक नहीं बल्कि लोग खुद ऐसे ऐप्स तक अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए पहुंचते हैं. लेकिन, उन्हें नहीं पता होता कि दो चार क्लिक से मिली इंस्टैंट लोन की सहूलियत उनकी जिंदगी तबाह कर सकती है. और एक बार अगर आपने लोन ले लिया तो अनाप-शनाप ब्याज दरें और धमकी देकर उगाही इन ऐप्स का धंधा बन जाता है. आपको याद होगा ऐसे ही ऐप्स से तंग आकर 2021 में द्वारका के एक युवक ने आत्महत्या कर ली थी. उस घटना को एक साल भी नहीं हुआ कि 2022 की शुरूआत में ही पुणे, बेंगलुरु और केरल में 3 युवकों की आत्महत्या की खबर आई. लेकिन, हाल ही में मुंबई से फिर आत्महत्या की खबर ने सबसे झकझोर दिया.
ज़ी बिज़नेस ने उठाया जनता के लिए बड़ा कदम
2020-21 जब इंस्टेंट लोन से जुड़ा ये पूरा मामला सुर्खियों में आया था तब से ही जी बिजनेस ने ऑपरेशन हफ्ता वसूली शुरू कर दिया था. उस वक्त कई NBFC के भी इस धंधे में शामिल होने की बात सामने आई थी, लेकिन ज़ी बिज़नेस की लगातार कवरेज और RBI की सख्ती से घबराकर ज्यादातर NBFC ने इस वसूली धंधे से निकलना ही मुनासिब समझा. अब करीब करीब हर फ्रॉड इंस्टेंट लोन ऐप्स बिना किसी रजिस्ट्रेशन के प्ले स्टोर से अपना धंधा चला रहे हैं. अपराध की दुनिया से जुड़े लोगों के हाथ में ही इनका पूरा कारोबार है. चिंता ये है कि इन सब तक पुलिस की पहुंच तो सीमित है ही साथ ही ये सब RBI के दायरे से भी बाहर हैं. सस्ते दामों पर चीन में बने एंड्रॉयड लोन ऐप लाकर गूगल प्ले स्टोर पर होस्ट कर देना इनके धंधे का हिस्सा है और अपनी हर जानकारी बिल्कुल गलत देना धंधे का सिद्धांत. ज़ी बिज़नेस की पड़ताल में कई ऐप्स तो ऐसे मिले जिनका पता, फोन नंबर, मालिकों का नाम वगैरह कुछ भी नहीं होने के बाद भी वो प्ले स्टोर पर बने हुए हैं.
आपको कॉल्स किन नंबरों से और कहां से आते हैं?
देश में हुई कई पड़तालों में इस बात का खुलासा हुआ है कि इन वसूली ऐप्स के बाकायदा कॉल सेंटर होते हैं जो पुलिस की पकड़ से भी बाहर होते हैं. पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और हरियाणा से ये ज्यादातर ऑपरेट हो रहे हैं. ऐसे गिरोहों का काम फर्जी तरीके से हासिल की गई लोगों की ID Proof का इस्तेमाल करके सिम कार्ड जुटाना और लोगों को वसूली के कॉल करना है. पकड़े जाने पर ये नंबर डीएक्टिवेट कर देते हैं और फिर WiFi से सिम कार्ड पर वॉट्सऐप मैसेज और कॉलिंग एक्टिवेट कर देते हैं. इन्हें चूंकी इनकमिंग कॉल नहीं आती लिहाजा पुलिस भी आसानी से इन्हें ट्रैक नहीं कर पाती. यही वजह थी कि ज़ी बिज़नेस ने अपनी इस मुहिम में गूगल और ऐप्पल पर ये कहते हुए सवाल किए थे कि आखिर कैसे बिना किसी जांच के ऐसे फर्जी और क्रिमिनल माइंडसेट के ऐप्स प्लेस्टोर पर मौजूद रह सकते हैं. उम्मीद है गूगल के इस ऐलान के बाद फर्जी लोन ऐप्स के मकड़जाल से आम आदमी को राहत मिल पाएगी. ज़ी बिज़नेस आम आदमी को लूटने और धमकाने वाले ऐसे फर्जी लोन ऐप्स की संपूर्ण सफाई तक अपनी ये मुहिम जारी रखेगा.
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