ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का पोल्यूशन कनेक्शन! जानिए कैसे होता है ये साइड इफेक्ट
कोरोना की वजह से हुआ लॉकडाउन (Lockdown) और लॉकडाउन की वजह से हमारी हर चीज ऑनलाइन निर्भरता जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है.
एक घंटे की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या एक घंटा वीडियो देखने से 100-150 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड हवा में पहुंचती है.
एक घंटे की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या एक घंटा वीडियो देखने से 100-150 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड हवा में पहुंचती है.
कोरोना की वजह से हुआ लॉकडाउन (Lockdown) और लॉकडाउन की वजह से हमारी हर चीज ऑनलाइन निर्भरता जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है. ऑफिस की कभी न खत्म होने वाली मीटिंग या बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस, सब कुछ ऑलाइन हो गया है. लेकिन, इन सब के बीच एक बात जिससे सभी लोग अनजान है वो ये हम ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (Online Video Conferencing) के दौरान हम जितनी देर अपना कैमरा (Camera) को ऑन रखते हैं उतना ज्यादा हमारे Planet के लिए हमारे खुद के लिए मुश्किलें बढ़ती जाती हैं.
अमेरीका की Purdue University के रिसर्चर्स के मुताबिक, एक घंटे की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या एक घंटा वीडियो देखने से 100-150 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड हवा में पहुंचती है. ये तो आप जानते ही हैं की ज्यादा अमाउंट में Carbon-di-oxide हवा में होने से इंसान और जानवरों और हमारे Planet के लिए नुकसानदायक होता है. पहले से ही हमारे Environment में पॉल्यूशन काफी ज्यादा है.
अब इसमें वीडियो कॉल्स और इंटरनेट यूसेज ने भी इजाफा कर दिया है. हां लेकिन, ये बात आपको पता होनी चाहिए की आप कोई वीडियो देखते समय HD की जगह SD पर देखते हैं तो कार्बन फूटप्रिंट में 66 फिसदी की कमी होती है. कार्बन फुटप्रिंट का मतलब है किसी चीज के इस्तेमाल के दौरान कितना कार्बन यूज हुआ. आपको जानकर हैरानी होगी के 1 घंटे की वीडियो स्ट्रिमींग में 12 लीटर पानी खर्च होता है. अब आप सोच रहे होंगे इसमें पानी कहां से आया.
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लेकिन, ये सच है. पानी के इस्तेमाल में पानी और जमीन के खर्चे का हिसाब-किताब भी होता है. जिस तरह कार्बन फूटप्रिंट होता है इसी तरह वाटर फूटप्रिंट होता है जो बताता है एक सामान को बनाने में कितना पानी खर्च हुआ. दुनिया की हर चीज को बनाने में पानी खर्च होता है चाहे वो आपका मोबाइल हो या आपकी जीनस. इंटरनेट इंफ्रास्टक्चर के लिए भी पानी और जमीन का इस्तेमाल होता है जिसका हिसाब हम लगा नहीं पाते. लेकिन, इस तरह की रिसर्च हमें इस फुटप्रिंट के बारे में बताती है जो हमे दिखता नहीं है.
स्टडी के मुताबिक, हर giga byte डेटा के इस्तेमाल से कितना काबर्न पानी और जमीन का हिस्सा जुड़ा है. यानि अब जितना इंटरनेट का इस्तेमाल करेंगे उतना ज्यादा पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा साथ ही उसमें आपका भी योगदान बढ़ेगा. जितना वीडियो देखेंगे उतना ही कार्बन फूटप्रिंट बढ़ेगा. बैंक भले ही पेपरलैस ट्रांजेक्शन करते हों लेकिन आपको ये पता होना चाहिए की कैमरा ऑफ करने या स्ट्रीमींग क्वालिटी को कम करने से भी पर्यावरण को फायदा पहुंचता है. ये बात अलग है टेक कंपनिया कार्बन फूटप्रिंट को अपने यूजर्स को सतर्क नहीं करती है.
रिसर्च नें पाया आप कौन से देश से है कौन सा वेब पोर्टल यूज कर रहे हैं इस पर निर्भर करता है की आप कितने कार्बन एमिशन के लिए जिम्मेदार हैं. कितना पानी खर्च कर रहे हैं. उम्मीद की जा रही है की इस तरह की Study कोरोना के बाद बढ़ते इंटरनेट की यूसेज को लेकर लोगो को सजक करेगी और हम याद रखेंगे की जिस वक्त हम किसी से वीडियो कॉल पर बात कर रहे हैं, उस वक्त हम कितने कार्बन एमिशन की वजह बन रहे हैं.
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09:04 PM IST