"अमेरिका के जुकाम पर हमें छींक भी नहीं आती"- इस साल बाजार ने कैसे बदला रूप, कैसे फेल हो गई पुरानी पढ़ाई? समझें
Stock Markets in 2022: "2022 की पाठशाला" में Zee Business के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी बता रहे हैं कि इस साल को तीन पाठ में बांट सकते हैं- क्या पुरानी सीख है जो अब काम नहीं आई? क्या नई चीज सीखी? क्या दोबारा सीखनी होगी?
Year Ender Special: साल 2022 बाजार के लिहाज से बहुत अलग साल रहा. दुनिया भर में इतने बड़े ट्रिगर्स दिखे. दुनिया ने लगभग 30 सालों बाद बड़ा युद्ध देखा, 14 सालों बाद फिर मंदी के बादल घिरे, विकसित देशों में महंगाई ने रिकॉर्ड तोड़ा, कच्चे तेल ने ऐतिहासिक उछाल देखा, लेकिन इन सबके बावजूद बाजार और इकॉनमिक ग्रोथ ने पुराने अप्रोच को धता बता दिया. "2022 की पाठशाला" में Zee Business के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी बता रहे हैं कि इस साल को तीन पाठ में बांट सकते हैं- क्या पुरानी सीख है जो अब काम नहीं आई? क्या नई चीज सीखी? क्या दोबारा सीखनी होगी?
ऐसी कौन सी सीख है जो इस साल गलत साबित हुई?
- अनिल सिंघवी ने कहा कि इस साल मंदी की परिभाषा बदल गई. मंदी का जितना हौव्वा रहा है, उसका उतना असर नहीं दिखा. नौकरियां गईं, लेकिन मंदी का वैसा असर नहीं दिखा, जैसी आशंका होती है. जैसे कि ब्याज दरें 15 सालों की ऊंचाई पर हैं, लेकिन बाजार उसके समानांतर कई सालों के निचले स्तर पर नहीं है, बल्कि मजबूत ही है.
- ऐसा माना जाता रहा है कि ब्याज दरें ऊंची हैं तो इक्विटी नीचे आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
- डॉलर को लेकर भी ऐसी धारणा थी कि डॉलर ऊपर जाएगा तो कमोडिटी, इक्विटी सब पिट जाएंगे, लेकिन वो भी नहीं हुआ.
- एक और चीज देखी गई, वो कच्चा तेल की रिकॉर्ड ऊंचाई. कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड उछाल के बावजूद प्राइस मैनेजमेंट ठीक रहा है. पैसा ज्यादा जाता है जेब से, लेकिन फॉरेक्स रिजर्व पर असर नहीं पड़ा और अर्थव्यवस्था ने पहली बार कच्चे तेल के झटके को सहन कर लिया.
"अमेरिका को जुकाम, लेकिन हमें इस बार कुछ नहीं हुआ"
- इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि अमेरिका को जुकाम हुआ है और हमें छींक भी नहीं आई. पहले माना जाता था कि जैसे अमेरिका को जुकाम होगा तो हमें बुखार हो जाएगा, निमोनिया हो जाएगा. लेकिन अब अमेरिका में डाओ टॉप से 25% और नैस्डेक भी 35% नीचे है लेकिन उसके मुकाबले हमारे बाजार 3-4% ही नीचे हैं.
- विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली के बीच भी बाजार मजबूत रहा. अब रिटेल इन्वेस्टर्स का रुतबा तेजी से बढ़ा है. माना जाता था कि रिटेल बेचे तो बाजार बॉटम में और खरीदे तो टॉप में जाता है, लेकिन अब यह FIIs के साथ हो गया है, चीजें उलट गई हैं.
- एक ये भी ट्रेंड रहता था कि ग्लोबल मार्केट में हाई बनेगा, तो हम उसके पीछे-पीछे चलेंगे. लेकिन इस बार यह नया ट्रेंड देखने को मिला कि हम ग्लोबल बाजार से इतर अपने हाई बनाते रहे.
इस साल नया क्या सीखा?
- लिक्विडिटी इलाज है. मार्केट की सारी चिंताओं का इलाज है पैसा. हमने बहुत से झटके इसलिए झेल गए क्योंकि हमारे पास लिक्विडिटी थी, रिटेल का पैसा था. साथ ही तीसरी महाशक्ति बड़ी ताकत है, यह भी तय हो गया. हम टेकऑफ कर चुके हैं.
- यह भी देखने को मिला कि हर डीमर्जर से वैल्यू अनलॉकिंग होगी, पैसा बनेगा, यह जरूरी नहीं है.
- साथ ही मैनेजमेंट में बदलाव से शेयर भागे यह जरूरी नहीं है. बहुत सी कंपनियों में प्रमोटर्स और मैनेजमेंट बदला, लेकिन इस बार कंपनी की रेटिंग नहीं बदली, न ही शेयर भागे.
कुछ पुरानी सीख, जो हमें फिर से याद आईं
यह याद रखना चाहिए परिवर्तन ही संसार का नियम है. तेजी-तेजी है तो मंदी भी आएगी. मंदी-मंदी देख रहे हैं तो तेजी भी आएगी. आप निराश होकर मत बैठिए. मौके बाजार आपको देगा और देता रहा है. चीजें कभी भी बदल सकती हैं, अच्छे के लिए भी और बुरी चीज के लिए भी. बाजार में कॉमन सेंस बड़ी चीज है. कई बार कुछ नहीं करने से पैसे बनते हैं, बजाय की बहुत कुछ करने पर. अगर आप मार्केट में पैसा लगाकर बैठे हैं, आपके पास अच्छी स्कीम है, अच्छे फंड्स हैं, तो आपका पैसा बन जाएगा.
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