हाल ही में मार्केट रेगुलेटरे SEBI की तरफ से एक निवेशक पर इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading) के लिए 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है. यह मामला HAL में इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़ा है. शेयर बाजार (Share Market) में आपने अक्सर इनसाइडर ट्रेडिंग के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आप समझते हैं कि यह क्या होती है (What is Insider Trading) और कैसे की जाती है? आइए आज Market Class सीरीज के तहत इसाइडर ट्रेडिंग को समझते हैं.

पहले समझिए इनसाइडर का मतलब

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सेबी अधिनियम 1992 के सेक्शन 30 में इनसाइडर ट्रेडिंग के सारी जानकारी दी गई है. किसी कंपनी में इनसाइडर उस शख्स को कहा जाता है जो उस कंपनी में काम करता है या फिर उस कंपनी से जुड़ा हुआ होता है. इनसाइडर किसी कंपनी के अंदर की जानकारी रखने वाली व्यक्ति को कहा जाता है. यह शख्स कंपनी का डायरेक्टर, प्रेसिडेंट, निवेशक या सीनियर एग्जिक्युटिव हो सकता है. कुछ मामलों में यह कंपनी का कर्मचारी भी हो सकता है, बशर्ते उसके पास मैनेजमेंट से जुड़ी सेंसिटिव जानकारियों तक पहुंच हो.

क्या होती है इनसाइडर ट्रेडिंग?

जब किसी कंपनी का इनसाइडर कंपनी के अंदर की किसी खबर के आधार पर ट्रेडिंग करता है तो उसे इनसाइडर ट्रेडिंग कहा जाता है. ये वह खबर या फैसला होता है, जो अभी तक पब्लिक नहीं किया गया है और उससे पहले ही इनसाइडर उस कंपनी के शेयर खरीद ले और बाद में कीमत बढ़ने पर बेच दे. कानूनन तो कोई भी इनसाइर इस तरह की कोई एक्टिविटी किसी दोस्त या रिश्तेदार से भी नहीं करा सकता है, लेकिन ऐसे मामलों में जांच कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है.

इनसाइडर ट्रेडिंग करने पर क्या होगा?

सेबी ने इनसाइडर ट्रेडिंग को रोकने के लिए SEBI Regulations 2015 एक्ट बनाया है. इसके तहत इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़े नियम-कायदे तय किए गए हैं. अगर कोई शख्स इनमें से किसी भी नियम का उल्लंघन करता है तो उस पर तगड़े जुर्माने का प्रावधान है. इतना ही नहीं, बड़े मामलों में तो जेल तक हो सकती है.

कब ऐसा करने पर भी सेबी नहीं लेता एक्शन!

ऐसे मामलों में सेबी कंपनी से जुड़े उन लोगों के खिलाफ एक्शन नहीं लेता है, जिनके पास सेंसिटिव जानकारी नहीं होती है. यानी भले ही किसी कर्मचारी ने किसी बड़ी डील या बड़े फैसले के अनुमान के आधार पर शेयर ले लिए हों और फायदा कमाया हो, लेकिन अगर वह यह साबित करता है कि सेंसिटिव जानकारी तक उस कर्मचारी की पहुंच नहीं है तो उस पर कार्रवाई नहीं की जाती है. दरअसल, ऐसा होने पर वह इनसाइडर की परिभाषा में ही नहीं आएगा यानी वह इनसाइडर कहलाएगा ही नहीं.