Stock market: शेयर मार्केट से हुई इनकम पर कब कितना देना पड़ता है टैक्स, जानिए सबकुछ
Stock market tax rule: शेयर मार्केट में इनकम टैक्स रूल शेयर ट्रांजैक्शन पर किस तरह इनकम हुई है, उसके मुताबिक लागू होता है.
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(Representational)
Tax rule on stock market transections: शेयर बाजार में इन्वेस्टमेंट से आप एक झटके में मोटी कमाई कर सकते हैं. इसमें सबसे बड़ा फैक्टर काम करता है कि आपके पास रिस्क लेने की क्षमता कितनी है. बहरहाल, यहां एक जरूरी बात यह जानना जरूरी है कि शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-बिक्री और उससे होने वाली इनकम भी टैक्स के दायरे में आती है. शेयरों की बिक्री से होने वाली इनकम या लॉस ‘कैपिटल गेन्स’ के दायरे में आता है.
ब्रोकरेज फर्म एंजल ब्रोकिंग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, शेयर मार्केट में इनकम टैक्स रूल शेयर ट्रांजैक्शन पर किस तरह इनकम हुई है, उसके मुताबिक लागू होता है. बाजार से दो तरह की इनकम, शॉर्ट टर्म कैनिटल गेन्स और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स, होती है.
शॉर्ट टर्म कैपिटेल गेन्स टैक्स ( Short term Capital gains tax)
शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स उसे कहते हैं, जब शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को खरीदने के 12 महीनों के अंदर बेच दिया जाता है. इससे होने वाली इनकम पर 15 फीसदी की दर से शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना होता है. इसमें चाहे आप किसी भी टैक्स स्लैब में आते हो. अगर आपको शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस होता है, तो आप इसे अगले 8 साल तक कैरी फॉर्वर्ड कर सकते हैं.
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (Long term Capital gains tax)
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शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को खरीदने से 12 महीने के बाद बेचने पर लाभ होता है, तो यह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के दायरे में आता है. इस हालत में शेयरों की बिक्री करने वाले को इस कमाई पर उसे टैक्स देना पड़ता है. इसमें 10 फीसदी की दर से इनकम टैक्स देना पड़ता है. इसका मतलब कि अगर आप एक साल के बाद शेयर बेचते हैं और उस पर इनकम होती है तो 10 फीसदी की दर से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा. अगर आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस होता है तो आप नुकसान को अगले 8 साल कैरी फॉर्वर्ड कर सकते हैं.
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT)
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT) को 2004 में इनकम टैक्स रूल में शामिल किया गया था. स्टॉक एक्सचेंज में बेचे और खरीदे जाने वाले शेयरों पर सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स यानी STT लगता है. जब भी शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-बिक्री की जाती है, इस पर यह टैक्स देना पड़ता है. दिसंबर 2017 से इक्विटी ट्रांजैक्शन (खरीद या ब्रिकी) पर 0.1 फीसदी की दर से एसटीटी देना होता है. इंट्राडे में शेयरों की बिक्री पर सेलर को 0.025 फीसदी टैक्स देना पड़ता है. हालांकि, इंट्राडे में में सिक्युरिटीज की खरीद पर कोई टैक्स नहीं देना होता है.
डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स (DDT)
बजट 2020 से पहले जो कंपनियां शेयरधारकों को डिविडेंट एलान करती थीं, उन्हें डीडीटी देना होता था. नियमों के मुताबिक 31 मार्च 2020 तक डीडीटी का रेट 20.56 फीसदी था. बजट 2020 में किए गए प्रस्ताव के मुताबिक, डिविडेंड हासिल करने वाले निवेशक को अपने टैक्स ब्रैकेट के मुताबिक टैक्स रेट से डीडीटी का भुगतान करना होता है. इसमें डिविडेंड से चाहे आपको कितनी भी रकम हासिल हुई हो. पहले, टैक्सपेयर को अगर 10 लाख रुपये से ज्यादा डिविडेंड मिलता था, तो उसे डिविडेंड पर 10 फीसदी की दर से टैक्स देना पड़ता था.
ITR-2 किसे भरना है?
इनकम टैक्स रिटर्न-2 या ITR-2 फार्म उसे भरने की जरूरत पड़ती है, अगर इंडिविजिुअल का इन्वेस्टमेंट कैश सेगमेंट में के दायरे में आता है.
ITR-3 कब भरना है?
इनकम टैक्स रिटर्न - 3 या ITR-3 फार्म उस टैक्सपेयर्स को फाइल करना है, जिसका इन्वेस्टमेंट डेरिवेटिव सेगमेंट के दायरे में आता है. एग्रेसिव इंट्राडे ट्रेडर्स इस कैटेगरी में आते हैं.
01:30 PM IST