Share Market: खरीदने जाएं तो सस्ते शेयर मिलें और बेचने जाएं तो बढ़िया ऊंचा भाव मिले. हर निवेशक की यही ख्वाहिश रहती है. लेकिन सौदे जब ब्रोकर के जरिए एक्सचेंज पर जाते हैं तो हमेशा ऐसा नहीं हो पाता. लेकिन अब ऐसा करने की तैयारी हो रही है. ज़ी बिजनेस को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सेबी (SEBI) का एक वर्किंग ग्रुप इस मामले पर काम कर रहा है. जहां मौटे तौर पर इस बात पर सहमति बन रही है कि एक्सचेंज को जाने वाले ऑर्डर बुक को मर्ज कर दिया जाए. ताकि निवेशक अगर खरीद रहा है तो उसकी ऑर्डर बुक में  से पहले जिस एक्सचेंज में शेयर सस्ते में मिल रहा हो वो मिल जाए. उसके बाद बाकी का ऑर्डर दूसरे एक्सचेंज में जाए. 

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मोटे तौर पर इस पर सहमति बन चुकी

ज़ी बिजनेस को एक सूत्र ने बताया कि इसके लिए 30 जून की डेडलाइन तय की गई थी जब तक फैसला लेना था और मोटे तौर पर इस पर सहमति बन चुकी है. उसके बाद इस पर आखिरी नियम बन जाएंगे.हालांकि बाजार के एक और जानकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि रेगुलेटर का आइडिया तो अच्छा है लेकिन ब्रोकर्स के लिए ये खर्चीला होगा क्योंकि सॉफ्टवेयर आदि में बड़ा बदलाव करना होगा.

सौदा जल्दी पूरा करना ज्यादा अहम होगा

बाजार के एक कुछ और एक्सपर्ट की राय है कि ये शायद कुछ लोगों के लिए ठीक हो. लेकिन कई बार जिन्होंने शेयर में वैल्यू दिखती है उन्हें छोटे प्राइस डिफरेंस से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. इसी तरह अगर किसी को शेयर (share) बेचकर जल्दी पैसे की जरूरत है तो शायद उसके लिए सौदा जल्दी पूरा करना ज्यादा अहम होगा न कि उसे बेस्ट प्राइस मिलना.कई बार एक एक्सचेंज पर ज्यादा मात्रा में शेयर मिल जाते हैं लेकिन बेस्ट प्राइस नहीं मिलता.जबकि ऐसा भी होता है कि शेयर दूसरे एक्सचेंज से सस्ते तो मिल जाते हैं पर जितनी मात्रा में शेयर चाहिए वो नहीं मिल पाते. 

शेयर का बेहतर भाव मिले

हालांकि रेगुलेटर (SEBI) की हमेशा से यही मंशा यही है कि अगर किसी निवेशक को उसके शेयर का बेहतर भाव मिल सकता है तो जरूर मिलना चाहिए.और ब्रोकर्स को बेस्ट प्राइस और ऑपरच्यूनिटी देना चाहिए.सेबी बेस्ट प्राइस एक्सिक्यूशन की मौजूदा व्यवस्था की समीक्षा के लिए कई साल से काम कर रही है. लेकिन अब तक इस पर बात आगे नहीं बढ़ पाई थी. अब वर्किग ग्रुप की तय समय सीमा में सिफारिशें आने के बाद जल्द अंतिम नियम आने की उम्मीद है. 

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सैद्धांतिक तौर पर बेस्ट प्राइस एक्सिक्यूशन में शेयर की कीमत (Share Market), शेयर खरीद की लागत, सौदों की स्पीड, सेटलमेंट के साइज और सौदा पूरा हो पाने के कितने आसार हैं इस पर फोकस किया जाता है. लेकिन कई बार व्यवहारिक दिक्कतों की वजह से बेस्ट प्राइस एक्सिक्यूशन का उतना फायदा नहीं मिल पाता जितना फायदा मिलने की गुंजाइश होती है. 

कैसे समझें बेस्ट प्राइस एक्सिक्यूशन का फायदा

उदाहरण के तौर पर 10,000 शेयर खरीदे

एक्सचेंज A पर भाव ₹112.25

एक्सचेंज B पर भाव ₹112.50

एक्सचेंज A पर लागत ₹11,22,500

एक्सचेंज B पर लागत ₹11,25,000

बचत ₹2500

करीब 22 शेयर और मिल जाएंगे @112.25.