Share Market Crash: क्या होता है Upper Circuit और Lower Circuit, जानिए कब लगता है और कैसे हटता है
सर्किट तमाम कंपनियों के शेयरों पर तो लगता ही है, साथ ही निफ्टी-सेंसेक्स (Nifty-Sensex) जैसे इंडेक्स पर भी लगता है. इसकी शुरुआत इसलिए की गई थी, ताकि कोई शेयर अचानक से बहुत ज्यादा ना चढ़े या अचानक बहुत ज्यादा ना गिरे.
अभी दुनिया भर के शेयर बाजार (Share Market) लाल निशान में कारोबार कर रहे हैं. भारतीय शेयर बाजार का हाल भी बहुत ही बुरा है. बहुत सारे शेयरों में तो लोअर सर्किट (Lower Circuit) तक लग चुका है. दुनिया के कुछ शेयर बाजारों में भी सर्किट लगने के आसार नजर आ रहे हैं. शेयर बाजार में हमें बार-बार सर्किट शब्द सुनने को मिलता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये क्या होता है? आइए समझते हैं.
सर्किट तमाम कंपनियों के शेयरों पर तो लगता ही है, साथ ही निफ्टी-सेंसेक्स (Nifty-Sensex) जैसे इंडेक्स पर भी लगता है. इसकी शुरुआत इसलिए की गई थी, ताकि कोई शेयर अचानक से बहुत ज्यादा ना चढ़े या अचानक बहुत ज्यादा ना गिरे. कई बार अफवाहों की वजह से भी कोई शेयर गिरने या चढ़ने लगता है, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ता है और उन्हें नुकसान हो सकता है. ये सर्किट भी आपने कभी 5 फीसदी पर लगते देखा होगा तो कभी 10, 15 या 20 फीसदी पर. कुछ में तो दो-ढाई फीसदी पर भी सर्किट लगता है. वहीं हर स्टॉक में सर्किट लगता भी नहीं है. अब सवाल ये है कि आखिर सर्किट को लेकर क्या नियम हैं.
पहले समझिए अपर और लोअर सर्किट
किसी भी शेयर या फिर इंडेक्स में दो तरह के सर्किट लगते हैं. पहला होता है अपर सर्किट और दूसरा होता है लोअर सर्किट. जब कोई शेयर या इंडेक्स सर्किट एक तय सीमा तक चढ़ जाता है तो उसमें अपर सर्किट लग जाता है. वहीं अगर तय सर्किट लिमिट तक गिरावट आ जाती है तो उसमें लोअर सर्किट लग जाता है. अपर सर्किट लगे या लोअर सर्किट लगे, दोनों ही सूरतों में उस शेयर या इंडेक्स में कारोबार रोक दिया जाता है. कुछ सूरतों में ये कारोबार दोबारा शुरू हो जाता है, वहीं कई सूरतों में ये कारोबार पूरे दिन बंद रहता है.
निफ्टी-सेंसेक्स में सर्किट लगने के क्या हैं नियम?
अगर निफ्टी-सेंसेक्स की बात करें तो इसमें सर्किट लगने के नियम बिल्कुल अलग हैं. नियम के तहत अगर 1 बजे से पहले बाजार में 10 फीसदी बढ़त या गिरावट आती है तो उस पर सर्किट लग जाता है. सर्किट लगते ही बाजार 45 मिनट के लिए बंद हो जाता है और फिर 15 मिनट का प्री-ओपनिंग सेशन होता है, जिसके बाद दोबारा ट्रेडिंग शुरू होती है. वहीं अगर 10 फीसदी का ये सर्किट 1 बजे से लेकर 2.30 बजे के बीच लगता है तो बाजार 15 मिनट के लिए बंद रहता है और फिर 15 मिनट के प्री-ओपनिंग सेशन के बाद कारोबार दोबारा शुरू होता है. वहीं अगर 10 फीसदी का सर्किट 2.30 बजे के बाद लगता है तो मार्केट चलता रहता है.
नियम के मुताबिक अगर 1 बजे से पहले 15 फीसदी बढ़त या गिरावट आती है तो सर्किट लग जाता है और बाजार 1 घंटे 45 मिनट के लिए बंद कर दिया जाता है. उसके बाद 15 मिनट का प्री-ओपनिंग सेशन होता है और बाजार फिर से शुरू हो जाता है. अगर ये सर्किट 1-2 बजे के बीच लगता है तो बाजार 45 मिनट के लिए बंद हो जाता है और फिर 15 मिनट का प्री-ओपनिंग सेशन होता है, जिसके बाद बाजार खुल जाता है. वहीं अगर 2 बजे के बाद सर्किट लगा तो मार्केट पूरे दिन के लिए बंद हो जाता है. इसके अलावा नियम के मुताबिक अगर बाजार में किसी भी वक्त 20 फीसदी का सर्किट लग जाता है तो बाजार को उसी वक्त पूरे दिन के लिए बंद कर दिया जाता है.
कैश मार्केट के लिए क्या हैं नियम?
अगर बात कैश मार्केट की करें तो इसमें 5%, 10%, 15% और 20% के सर्किट लगते हैं. कुछ बहुत छोटे शेयरों में 2-2.5 फीसदी पर भी सर्किट लगते हैं. अपर सर्किट लगने के बाद उस शेयर में सर्किट की सीमा के ऊपर खरीदारी रोक दी जाती है, जबकि आप चाहे तो उसे बेच सकते हैं. वहीं दूसरी ओर लोअर सर्किट लगने के बाद आप उस शेयर को सर्किट लिमिट तक खरीद सकते हैं, लेकिन बेच नहीं सकते.
फ्यूचर एंड ऑप्शन के लिए क्या हैं नियम?
अगर फ्यूचर एंड ऑप्शन मार्केट के शेयर पर सर्किट लगने के नियम की बात करें तो इसका नियम सबसे अलग है. इन शेयरों में अपर और लोअर दोनों ही तरह के सर्किट दिन में कई बार लग सकते हैं. अलग-अलग लेवल पर इनमें पहले से तय सीमा के मुताबिक सर्किट लगता है और फिर 15 मिनट बाद कारोबार फिर शुरू हो जाता है. जीरोधा के अनुसार 10 फीसदी की बढ़त या गिरावट पर सर्किट हिट हो जाता है. शेयर बाजार में इस 15 मिनट के समय को कूलिंग पीरियड कहा जाता है. फ्यूचर एंड ऑप्शन में गिरावट हो या तेजी, उसके बढ़ने की कोई सीमा नहीं होती है. यही वजह है कि फ्यूचर एंड ऑप्शन में पैसे लगाना सबसे ज्यादा रिस्की माना जाता है. यह एक जुएं जैसा है, जिसमें कमाई हुई तो तगड़ी होगी, वरना सारा पैसा डूब भी सकता है.
क्यों लगाया जाता है सर्किट?
शेयर बाजार में या किसी स्टॉक में अपर-लोअर सर्किट लगाने का मकसद सिर्फ इतना होता है कि बाजार में आने वाली भारी गिरावट को रोका जा सके. अक्सर कंपनियों को लेकर किसी बड़ी खबर से तेज गिरावट या तेजी आती है. कई बार सिर्फ अफवाहों की वजह से भी ऐसा हो जाता है. ऐसे में अगर शेयर की गिरावट या तेजी पर लगाम नहीं रहेगी तो मुमकिन है कि निवेशकों को तगड़ी गिरावट से नुकसान भी हो जाए. भारत में अपर और लोअर सर्किट का नियम मार्केट रेगुलेटर सेबी ने 28 जून 2001 में बनाया था. नई व्यवस्था लागू होने के बाद पहली बार उस नियम का इस्तेमाल 17 मई 2004 को किया गया था.