FPI issues on T+1: शेयरों की ट्रेडिंग के अगले दिन ही सेटलमेंट की व्यवस्था में आ रही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की दिक्कतों को अगले 4-5 महीने में दूर कर लिया जाएगा. ज़ी बिजनेस को सेबी (SEBI) के टॉप सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सितंबर-अक्टूबर तक विदेशी निवेशकों की दिक्कतें दूर कर दी जाएंगी. इस दिशा में इसी महीने विदेशी निवेशकों, क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस और विदेशी निवेशकों के कस्टोडियन बैंकों और बाकी पक्षों के साथ बैठक हुई थी. 

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सेबी ने आंकड़े मांगे

सूत्रों के मुताबिक सेबी ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के सौदों से जुड़े आंकड़े मांगे हैं. खासकर वॉल्यूम, आखिरी घंटे में ट्रेडिंग का पैटर्न और आखिरी घंटे में कितनी लिक्विडिटी रहती है जैसे आंकड़े मांगे गए हैं. इन्हीं आंकड़ों के आधार पर विदेशी निवेशकों की दिक्कतों का आकलन किया जाएगा और फिर देखा जाएगा कि क्या क्या रियायतें संभव हैं. इस बारे में विदेशी निवेशकों को पूरा भरोसा दिया गया है कि उनकी परेशानियों पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है. आंकड़ों के आधार पर फिर से विदेशी निवेशकों, कस्टोडियन बैंकों और क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस की बैठक बुलाई जाएगी.  

कई कंपनियां T+1 सेटलमेंट सिस्टम में जा रहीं हैं

दरअसल विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी वाली कई कंपनियां अगले महीने से T+1 सेटलमेंट सिस्टम (FPI issues on T+1) में जा रही हैं. जबकि सितंबर-अक्टूबर तक ऐसी कंपनियों की संख्या बढ़ जाएगी. इसीलिए सेबी (SEBI) ने अक्टूबर तक समस्या का हल निकालने की टाइमलाइन तय की है. वहीं अगले साल जनवरी-फरवरी तक विदेशी निवेशकों की होल्डिंग वाली टॉप 250 कंपनियां भी T+1 के दायरे में आ जाएंगी. हालांकि कुछ जानकारों का सुझाव यह भी है कि ये भी देखा जाए कि क्या विदेशी निवेशक गांधीनगर स्थित इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर में फंड रखकर कामकाज कर सकते हैं क्या. क्योंकि वहां करीब 22 घंटे तक कामकाज की सुविधा रहती है. एक नजरिया ये भी है कि अगर भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों (FPI) को लाभ कमाना है तो थोड़ा जोखिम भी लेना चाहिए.  

विदेशी निवेशकों की दो अहम चिंताएं

दरअसल सौदों के निपटारे की T+1 व्यवस्था पर विदेशी निवेशकों की दो अहम चिंताएं हैं. पहली ये है कि वो अलग अलग टाइम जोन में काम करते हैं. ऐसे में सौदे वाले दिन ही भारतीय समय के हिसाब से शाम 7:30 बजे तक ट्रेड कन्फर्मेशन के नियम का पालन करना मुश्किल होगा. क्योंकि विदेशी मुद्रा लाने में कठिनाई होगी. और अगर पहले से लाकर रखते हैं तो करेंसी में उतार चढ़ाव का जोखिम उठाना पड़ेगा. ऐसे में विदेशी निवेशकों (FPI) की मांग है कि सौदों के अगले दिन सुबह 9 बजे तक का समय उन्हें ट्रेड कन्फर्मेशन के लिए दिया जाए. लेकिन इसमें एक दिक्कत ब्रोकर्स को भी आ सकती है. क्योंकि शेयरों को कस्टोडियन बैंकों के हवाले करने से पहले अगर शेयरों के सौदों में मिसमैच हुआ तो उसकी लागत ब्रोकर की होगी. जबकि हाल में एक्सिस बैंक पर 93 लाख रुपये की रिजर्व बैंक की पेनाल्टी लगने के बाद बैंकों ने इंट्राडे मार्जिन के नियमों को सख्त कर दिया है. अब रिजर्व बैंक के नियमों पर पूरा अमल करते हुए इंट्राडे फंडिंग पर 50 फीसदी मार्जिन मांगा जा रहा है. अगर सौदों में मिस मैच हुआ तो इसकी लागत ब्रोकर पर आएगी.   

T+2 व्यवस्था 1 अप्रैल 2003 से है लागू

दरअसल T+2 यानि सौदा होने के दो दिन बाद की मौजूदा व्यवस्था 1 अप्रैल 2003 से लागू है. तब बैंकों का पेमेंट सिस्टम इतना तेज नहीं था. लेकिन 24 घंटे फंड ट्रांसफर और खासकर UPI जैसी व्यवस्था आने के बाद सेबी ने इस सिस्टम में बदलाव पर विचार किया. जिसके बाद 25 फरवरी 2022 से इस व्यवस्था को चरणों में लागू करना शुरू किया गया. शुरुआत सबसे कम मार्केट कैपिटल वाले 500 शेयरों के साथ हुई. अब हर महीने मार्केट कैप के बढ़ते 500 शेयरों के क्रम वाले शेयर इस लिस्ट में जुड़ रहे हैं. सितंबर-अक्टूबर तक मुख्य विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी वाले शेयर आना शुरू होंगे. जबकि अगले साल जनवरी-फरवरी तक सारी बड़ी कंपनियों के शेयर इस दायरे में आ जाएंगे.  

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दूसरे पक्षों के लिए भी फायदेमेंद होगी

T+1 की व्यवस्था निवेशकों (FPI) के साथ साथ मार्केट के दूसरे पक्षों के लिए भी फायदेमेंद होगी. क्योंकि निवेशक जिस दिन शेयर खरीदेंगे उसके अगले दिन डीमैट में शेयर आ जाएंगे. जबकि अभी आने में ट्रेडिंग के बाद 2 दिन और लगते हैं. इसी तरह अगर किसी को शेयर बेचकर पैसे चाहिए तो ट्रेडिंग के बाद अगले दिन ही बैंक खाते में शेयर बिक्री के पैसे आ जाएंगे. अहम फायदा ये भी होगा कि सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम कम होगा क्योंकि निपटारे में जितना ज्यादा वक्त लगता है सिस्टम में जोखिम भी बढ़ने की आशंका रहती है. बड़ा लाभ मार्जिन की व्यवस्था को लेकर भी होगा क्योंकि मार्जिन में लगा पैसा कम समय के लिए ब्लॉक रहेगा इसलिए जो रकम फ्री होगा वो किसी और शेयर या सिक्योरिटी में निवेश के काम आएगी. जानकारों का मानना है कि T+1 की व्यवस्था आने पर मार्जिन लागत में करीब 30 फीसदी की कमी आएगी.