पूंजी बाजार नियामक सेबी ने म्‍युचुअल फंड खर्च में पारदर्शिता लाने तथा गलत जानकारी देकर बिक्री पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाया है. सेबी ने सोमवार को संपत्ति प्रबंधन कंपनियों से कहा कि वे मासिक कमीशन का भुगतान किये बिना सभी योजनाओं में सालाना कमीशन का मॉडल (ट्रेल मॉडल) अपनाएं.

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सालाना कमीशन म्‍युचुअल फंड डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स को तबतक दिया जाता है जबतक संबंधित निवेश बना रहता है. वहीं पहले से कमीशन के तहत निवेश वाले महीने में ही डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स को कमीशन दिया जाता है. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने एक सर्कुलर में हालांकि कहा कि हर महीने निश्चित राशि जमा करने की योजना (SIP-सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान) के जरिये प्रवाह के मामले में ही सालाना शुल्क का उसी महीने भुगतान की अनुमति होगी.

इसके अलावा नियामक ने म्‍युचुअल फंड योजनाओं के लिए कुल व्यय अनुपात (टीईआर) में पारदर्शिता, बी-30 शहरों के लिए खुदरा निवेशकों से पूंजी निवेश के आधार पर अतिरिक्त प्रोत्साहन को सीमित करने तथा म्‍युचुअल फंड योजनाओं के प्रदर्शन का खुलासा को लेकर मसौदा जारी किया है.    

सेबी ने कहा कि वितरकों को कमीशन भुगतान समेत योजना से जुड़े सभी खर्च केवल संबंधित योजना से भुगतान किए जाएंगे. इसका भुगतान एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी), उनके एसोसिएट प्रायोजक, ट्रस्‍टी या अन्य इकाई द्वारा किसी अन्य मार्ग से नहीं किया जाएगा.    

नियामक ने कहा कि म्‍युचुअल फंड कंपनियां सभी योजनाओं में सालाना कमीशन का मॉडल अपनाएंगी और किसी भी माध्यम से पहले से कोई कमीशन का भुगतान नहीं करेंगी. सालाना शुल्क मॉडल का लाभ उस समय डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स को होता है जब उनके ग्राहक लंबे समय तक निवेश में बने रहते हैं. फिलहाल म्‍युचुअल फंड डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स को पहले ही दो प्रतिशत तक कमीशन देते हैं जबकि एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के संगठन एएमएफआई ने 1% की सिफारिश की है.