Crude Price: रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से कच्चे तेल की कीमतों में आग लगी हुई है. पिछले एक सप्ताह में तेल की कीमतें 18 डॉलर बढ़ गए हैं. 3 मार्च को क्रूड की कीमतें 118 डॉलर प्रति बैरल रही. 

क्रूड की कीमतों में लगी आग

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बुधवार को रूस ने यूक्रेन पर अपने आक्रमण को और तेज कर दिया, जिसके चलते क्रूड की कीमतों में और तेजी आ गई. इसी के साथ ओपेक प्लस ने क्रूड उत्पादन को बढ़ाने से इंकार कर दिया. इसका सीधा असर क्रूड कीमतों पर पड़ा. क्रूड की कीमतों में पिछले दस साल में सबसे ज्यादा तेजी देखी गई. 

 

कैसे बढ़े क्रूड के दाम

WTI पर क्रूड की कीमतें 114 डॉलर पर रही और MCX पर भी कच्चे तेल की कीमतें 8,600 के पार पहुंच गईं. पिछली बार तेल की कीमतें 30 नवंबर को हुई तब क्रूड की कीमतें 70 डॉलर के करीब थी. इसके बाद 11 फरवरी को यह 95 डॉलर प्रति बैरल और 2 मार्च को यह 111 डॉलर प्रति बैरल रही थी.

क्यों बढ़े रहे क्रूड के दाम

रूस और यूक्रेन के युद्ध (Russia-Ukraine War) का असर क्रूड की कीमतों पर लगातार देखा जा रहा है. ऐसे में बुधवार को यूक्रेन पर हमलें तेज होने से अचानक से क्रूड की कीमतों में तेजी देखने को मिली. वहीं बुधवार को ओपेक प्लस ने अपनी बैठक में कच्चे तेल के उत्पादन को ज्यादा बढ़ाने से इनकार कर दिया है. ओपेक प्लस ने कहा कि अप्रैल में भी क्रूड का उत्पादन 4 लाख बैरल ही बढ़ाया जाएगा. वहीं ग्लोबल मार्केट में तेल की बढ़ती मांग का असर भी क्रूड की कीमतों पर देखने को मिल रहा है.

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क्यों हावी है रूस 

बता दें कि ग्लोबल मार्केट में अकेले रूस 10 फीसदी हिस्सा अकेले रूस से आता है. रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. रूस रोजाना 1 करोड़ 10 लाख बैरल का उत्पादन करता है, जिसमें से 50 फीसदी हिस्सा वह दूसरे देशों को सप्लाई कर देता है. रूस इस सप्लाई का 50 फीसदी हिस्सा केवल यूरोप को देता है. जिस कारण से यूरोप की चिंता भी बढ़ी हुई है. यही वजह है कि तमाम प्रतिबंधों के बावजूद यूरोप सीधे तेल पर कोई डायरेक्ट फैसला नहीं ले रहा है.

पूर्व ऑयल सेक्रेटरी एस नारायण ने बताया कि अगर रूस से तेल की सप्लाई बाधित होती है, तो इसका सीधा असर कीमतों पर पड़ेगा. इसके चलते देश में महंगाई भी बढ़ेगी. 

मार्केट में है निगेटिव सेंटीमेंट

ओएनजीसी के पूर्व चेयरमैन आर एस शर्मा ने बताया कि अगर रूस से क्रूड की सप्लाई रूकती है, तो इसकी भरपाई करना संभव नहीं है. किसी और देश के पास इतना सरप्लस नहीं है, जो इसकी भरपाई कर सके. वहीं ओपेक प्लस के फैसले से भी मार्केट में निगेटिव सेंटीमेंट है. इन सबको देखते हुए अगर दोनों देशों के बीच कोई समझौता नहीं होता है, तो क्रूड की कीमतों के 150 डॉलर तक पहुंचने पर भी आश्चर्य नहीं होगी.

एस नारायण ने कहा कि अगर दोनों देशों के बीच कोई समझौता भी हो जाए तो भी अगले तीन-चार महीने 100 डॉलर के करीब ही क्रूड की कीमतें रहेंगी. रातोंरात तेल की कीमतों में किसी गिरावट की उम्मीद नहीं है.