राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले का साधुवाली गांव देशभर में अपनी अलग पहचान बना रहा है. गांव की अलग पहचान बनाने की वजह यहां उत्पादन होने वाली गाजर से है. साधुवाली के खेतों में पैदा होने वाली गाजर अपनी खास मिठास की वजह से देशभर में अलग ही पहचान कायम कर रही है.

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तकरीबन 7,000 की आबादी वाले इस गांव के वाशिंदों का मुख्य रोजगार खेती-बाड़ी है. लेकिन यहां के किसान खेती-बाड़ी में नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. पिछले कुछ समय से किसानों ने परंपरागत खेती के साथ गाजर के उत्पादन में दिलचस्पी दिखाई. और देखते ही देखते ही सभी किसानों ने गाजर की खेती की ओर अपना रुझान दिखाना शुरू कर दिया. यहां पैदा होने वाली गाजर अलग ही मिठास की मानी जाती है. इसकी वजह से अब देश के कई हिस्सों में यहां से गाजर जाने लगी है. किसान गाजर की पैकिंग करके देश के अलग-अलग हिस्सों में इसकी सप्लाई करते हैं. अब तो साधुवाली को गाजरवाला गांव भी कहा जाने लगा है. 

इस बार भी गाजर उत्पादक किसानों के चेहर पर खुशी देखी जा रही है. साधुवाली समेत आसपास के गांवों में तकरीबन 10,000 बीघा में गाजर की बंपर पैदावार हुई है. 

गाजर की खास मिठास के बारे में किसान बताते हैं कि यहां नहर का पानी भरपूर मिलता है. सर्दियों के कारण भूमि में नमी अधिक रहती है और ठंड से गाजर में मिठास व रंग, दोनों अच्छे आते हैं. मिट्टी में भी पर्याप्त सूक्ष्म तत्व मौजूद हैं.

गाजर वाशिंग मशीन

गाजर की खेती के साथ-साथ साधुवाली के किसानों ने गाजर धोने की मशीन भी ईजाद की है, जिसे गाजर वाशिंग मशीन कहते हैं. दरअसल, जब किसानों ने गाजर की खेती शुरू की तो उनके सामने गाजर का धोकर, साफकर उसकी पैकिंग की समस्या सामने आई. 

इस समस्या का समाधान भी खुद किसानों ने ही निकाला और गाजर वाशिंग मशीन का अविष्कार कर डाला. इस मशीन को एक इंजन के सहारे चलाया जाता है. मशीन से एक ही वक्त में कई क्विंटल गाजर धोई जा सकती है. गाजर धुलने के बाद चमक उठती है.

गांव के ही मांगीलाल किसान ने बताया कि गाजर वाशिंग मशीन उनके लिए काफी कारगर साबित हुई है. क्योंकि इससे पहले वे गाजर धोने के लिए काफी मशक्कत करते थे और उसमें वक्त भी ज्यादा लगता था. मशीन लगा देने से यहां पर प्रवासी श्रमिक भी आए हैं और उन्हें रोजगार मुहैया हुआ है.

 

सिस्टम से नाराजगी

गाजर उत्पादन के बाद किसानों के चेहरों पर खुशी तो है ही साथ ही सिस्टम से थोड़ी नाराजगी भी है. किसानों का कहना है कि वे उत्पादन के दम पर अपनी पहचान बना रहे हैं लेकिन, सरकार की तरफ से उन्हें कोई खास तवज्जों नहीं दी जा रही है. किसानों द्वारा नहर के किनारे अस्थाई मंडी बनाई गई है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें और व्यापारियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. उबड़-खाबड़ रास्ता और शाम होते ही अंधेरा हो जाना, यहां परेशानी का सबब बना हुआ है. 

किसानों की मांग है कि यदि सरकार इस बारे में थोड़ा ध्यान दे तो उन्हें राहत मिल सकती है. इसके अलावा जिस मशीन से गाजर की धुलाई होती है, यदि सरकार उस पर भी सब्सिडी की सुविधा कर दे तो उन्हें काफी हद तक फायदा होगा. 

बढ़ रहा गाजर बुआई का रकबा

साधुवली को देखते हुए आसपास के अन्य गांवों के किसानों ने भी गाजर की खेती करना शुरू कर दिया है. आलम ये है कि पूरा श्रीगंगानजर जिला गाजर की खेती के लिए अपनी अलग पहचान कायम कर रहा है. करीब 10 वर्ष पहले साधुवाली में ही 2-3 हजार बीघा में गाजर की खेती होती थी, लेकिन अब रकबा बढ़ रहा है. इस साल जिले में 10 हजार बीघा में गाजरों की बुआई की गई है.

साधुवाली एरिया में गंगनहर पर गाजरों की मंडी लगी रहती है और गाजर की बंपर फसल दिसंबर से 20 फरवरी तक आती है. लगभग 3 महीने तक रोजाना 6-7 हजार क्विंटल गाजरों की धुलाई के लिए श्रीगंगानगर के आसपास की नहरों पर करीब 70 मशीनें लगी हुई हैं. जिले के अलावा पंजाब के सीमावर्ती फाजिल्का एवं अबोहर तहसील के कुछ गांवों में भी गाजरों का अच्छा उत्पादन होने लगा है.  

(श्रीगंगानगर से हरनेक सिंह की रिपोर्ट)