कुछ समय पहले सेबी ने म्यूचुअल फंड के नियमों में बदलाव किया था. इन बदलावों का एक आम निवेशक पर खासा असर देखने को भी मिला. आलम ये है कि अबतक जो निवेशक चंद दिनों के लिए पैसा लिक्विड फंड में निवेश करते थे, वो अब ओवरनाइट फंड्स को चुन रहे हैं. पर क्या वाकई ओवरनाइट फंड्स निवेशकों के लिए सही चुनाव है, इस पर चर्चा कर रहे हैं क्वॉन्ट कैपिटल के उपाध्यक्ष विकास पुरी.

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विकास पुरी बताते हैं कि लिक्विड फंड्स के नियम बदले गए हैं. ये बदलाव लिक्विड म्यूचुअल फंड की सुरक्षा बढ़ाने के लिए किए गए हैं. लिक्विड म्यूचुअल फंड का 20 फीसदी हिस्सेदारी लिक्विड सिक्योरिटीज में होती है. सरकार ने सेक्टोरल कैप को 25% से घटाकर 20% कर दिया है. जिस कारण लिक्विड फंड शॉर्ट टर्म डिपोजिट में निवेश नहीं कर सकेंगे. शॉर्ट टर्म डिपोजिट, डेट और मनी मार्केट में निवेश पर रोक लगाई गई है. लिक्विड स्कीम के निवेशकों पर एग्जिट लोड लगेगा. म्यूचुअल फंड्स को NCDs (नॉन-कनवर्टिबल डिबेंचर्स) में निवेश करना होगा. 

 

लिक्विड फंड्स नियम बदलने से लिक्विड फंड्स पर अब एग्जिट लोड भी लगेगा. एग्जिट लोड सभी निवेशकों पर नहीं लगेगा. निवेश करने के 7 दिन के भीतर अपने पैसे को बाहर निकलते हैं तो निवेशक को एग्जिट लोड देना होगा. 

क्या हैं ओवरनाइट फंड्स?

अनिश्चितता के माहौल में ओवरनाइट म्यूचुअल फंड बेहतर विकल्प होते हैं ओवरनाइट म्यूचुअल फंड में मैच्योरिटी सिर्फ 1 दिन में होती है. 100% रकम CBLO मार्केट में निवेश की जाती है और CBLO मार्केट में निवेश से जोखिम बहुत कम हो जाता है.

निवेशकों की पसंद बने ओवरनाइट फंड्स-

- लिक्विड फंड्स में ज्यादा लिक्विडिटी है.

- NAV ग्रोथ में उतार-चढ़ाव होता है.

- लिक्विड फंड्स में 7 दिन से पहले एग्जिट लोड देना होगा. 

- निवेशक लिक्विड फंड्स से बाहर निकल सकते हैं.

- निवेशक ओवरनाइट फंड्स का रुख कर सकते हैं.

- लिस्टेड सिक्योरिटीज में निवेश होगा फायदेमंद.