अमेरिकी में सिलीकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक का शटर डाउन होने के बाद दुनियाभर के बैंकिंग सिस्टम की तंग हाल से पर्दा उठ गया है. अमेरिका में लगी ये आग यूरोप तक पहुंची और स्विट्जरलैंड का सबसे बड़ा बैंक क्रेडिट सुईस बिक गया है. स्विस नेशनल बैंक की मदद इसे UBS ने खरीदा. इसी तरह अमेरिका में भी छोटे बैंकों को सपोर्ट करने को लिए बड़े बैंक एक साथ आए. बैंकों से जुड़ी इन सारी घटनाओं के बीच चिंताएं सिर्फ सरकार की नहीं है, बल्कि बैंकों के ग्राहकों की भी है. क्योंकि बैंक में रकम तो वही जमा करते हैं...लेकिन अगर बैंक ही बंद हो जाए तो क्या? ऐसी स्थिति में बैंक रेगुलेटर डिपॉजिटर्स सामने आता है.   

US वित्त मंत्री के बयान ने बढ़ा दी थी टेंशन

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इतनी गूढ़ बातें इसलिए हो रही हैं क्योंकि अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन के एक बयान से अमेरिका में डिपॉजिटर्स की टेंशन बढ़ गई थी. उन्होंने अमेरिकी संसद में कहा था कि सभी US बैंक डिपॉजिटर्स को सुरक्षा देने की योजना पर विचार नहीं कर रहे. किसी भी यूनिवर्सल डिपॉजिट इंश्योरेंस स्कीम की योजना नहीं है. हालांकि, बैंकों को अन्य तरह की मदद जरूर दी जाएगी. वित्त मंत्री के इस बयान से जब सुर्खियां बनने लगी तो उन्होंने यू टर्न ले लिया.

वित्त मंत्री ने बदला बयान

जेनेट येलेन ने अपने नए बयान में कहा कि बैंकों को स्थिर करने के लिए ट्रेजरी आवश्यकता होने पर अतिरिक्त कार्रवाई करने के लिए तैयार है. सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) और सिग्नेचर बैंक में डिपॉजिटर्स को संघीय आपातकालीन रिफंड को फिर से तैनात किया जा सकता है. उन्होंने आगे कहा कि हमने जो कड़ी कार्रवाई की है वह सुनिश्चित करती है कि अमेरिकियों की जमा राशि सुरक्षित है. निश्चित रूप से, अगर जरूरत पड़ी तो हम अतिरिक्त कार्रवाई करने के लिए तैयार रहेंगे.

2008 के बाद पहली बार बैंकिंग हालत तंग

बता दें कि 2008 फाइनेंशियल क्राइसिस की बाद पहली बार अमेरिकी बैंकों का हालत तंग होती दिख रही है. इसमें सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक का बंद होना शामिल है. बैंकों का शटर डाउन होने की बड़ी वजह इंटरेस्ट रेट में तेजी से बढ़ोतरी रही. इसके अलावा लिक्विडिटी है. दोनों बैंकों से ग्राहकों ने बड़े पैमाने पर निकासी की. इससे बैंकों का बिजनेस ठप पड़ गया. 

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