IPO, FPO और OFS को कितना समझते हैं आप? जानें शेयर मार्केट में कौन कितना है अलग
IPO vs FPO vs OFS : आईपीओ का इश्यू प्राइस कंपनी तय करती है. आम निवेशक किसी कंपनी का आईपीओ आने पर सीधे उनके शेयर खरीद सकते हैं और शेयरहोल्डर बन सकते हैं.
एफपीओ में पहले से शेयर बाजार में लिस्टेडड कंपनियां फंड जुटाने के लिए अपने शेयर बेचने का ऑफर करती हैं. (ज़ी बिज़नेस)
एफपीओ में पहले से शेयर बाजार में लिस्टेडड कंपनियां फंड जुटाने के लिए अपने शेयर बेचने का ऑफर करती हैं. (ज़ी बिज़नेस)
IPO vs FPO vs OFS : जब आप शेयर मार्केट की चर्चा करते हैं तो कई बार आईपीओ (IPO), एफपीओ (FPO) और ओएफएस (OFS) जैसे टर्म की भी बात सुनी होगी. आप इन तीनों टर्म से कितना वाकिफ हैं? या आप इन तीनों में अंतर को कितना समझते हैं? आपके जेहन में आता होगा कि आखिर ये क्या होते हैं? मन में उठ रहे ऐसे ही सवालों पर हम यहां चर्चा करते हैं. एक बार जब आप इनका मतलब समझ जाएंगे, आपके लिए काफी आसान हो जाएगा.
आईपीओ
आईपीओ (IPO) का फुल फॉर्म है- इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी आरंभिक सार्वजनिक निर्गम. इसके तहत कोई भी कंपनी पहली बार अपना शेयर आम निवशकों को जारी करती हैं. यह तब होता है जब कोई कंपनी खुद को पब्लिक करने का फैसला कर लेती है. आईपीओ से पहले कंपनी के बेहद ही कम शेयर होल्डर होते हैं. इनमें कंपनी के संस्थापक, एंजेल इन्वेस्टर्स और वेंचर्स के पूंजीपति होते हैं. लेकिन आईपीओ के दौरान कंपनी अपना शेयर पब्लिक को बेचती है. आईपीओ का इश्यू प्राइस कंपनी तय करती है. आम निवेशक किसी कंपनी का आईपीओ आने पर सीधे उनके शेयर खरीद सकते हैं और शेयरहोल्डर बन सकते हैं. कुल मिलाकर कंपनियां मार्केट से पूंजी जुटाने के लिए आईपीओ लाती हैं.
ओएफएस
ओएफएस (OFS) का फुल फॉर्म होता है- ऑफर फॉर सेल (Offer For Sale). यह किसी भी लिस्टेड कंपनियों के लिए एक्सचेंज प्लेटफॉर्म के जरिये अपना शेयर बेचने का आसान तरीका है. यह व्यवस्था सबसे पहले साल 2012 में मार्केट रेगुलेटर सेबी ने बनाई थी, ताकि पब्लिक ट्रेडेड कंपनी के प्रमोटर के लिए अपने होल्डिंग्स में कटौती करने में आसानी हो. इस व्यवस्था को बाद में कई लिस्टेंड कंपनियों ने अपनाया. बाद में सरकार ने ओएफएस रूट को पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज में अपनी शेयरहोल्डिंग के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. ओएफएस सिर्फ शेयर बाजार में 200 कंपनियों के लिए उपलब्ध है, जो मार्केट कैप पर बेस्ड हैं. ओएफएस में निवेश करने के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट की जरूरत होगी.
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एफपीओ
एफपीओ (FPO) का फुल फॉर्म है - फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर (Follow-on Public Offer). इसमें पहले से शेयर बाजार में लिस्टेडड कंपनियां फंड जुटाने के लिए अपने शेयर बेचने का ऑफर करती हैं. कंपनी एक प्राइस बैंड तय करती है और FPO का प्रचार किया जाता है. बता दें, किसी भी कंपनी का पहला ऑफर आईपीओ कहलाता है. इसके बाद ही कंपनी लिस्टेड होती हैं. लिस्टेड होने के बाद शेयर बेचने का पब्लिक ऑफर एफपीओ कहलाता है. FPO का मुख्य मकसद एक्स्ट्रा कैपिटल जुटाना होता है.
06:36 PM IST