भारतीय शेयर बाजारों में बीते 6 दिनों से जारी ताबड़तोड़ बिकवाली पर शुक्रवार (27 अक्‍टूबर) को ब्रेक लगा.  इससे पहले बीते 6 कारोबारी सेशन में लगातार गिरावट रही. इन 6 दिनों में करीब 18 लाख करोड़ रुपये का मार्केट कैप साफ हो गया. बाजार के मूड की बात करें, तो ग्‍लोबल सेंटीमेंट्स पूरी तरह हावी हैं. चाहें यूएस ट्रेजरी यील्‍ड, इजरायल-हमास युद्ध का मसला हो गया डॉलर इंडेक्‍स में मजबूती और विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली, इन सभी फैक्‍टर्स के चलते घरेलू बाजारों में तेज गिरावट आई. ऐसे में यहां एक सवाल काफी अहम है कि बाजार के इस बिगड़े माहौल में कहां निवेश का अच्‍छा मौका बन रहा है. क्‍या लार्ज कैप लाइम लाइट में आ रहे हैं या स्‍मॉल कैप, मिड कैप शेयर फिर रिबाउंड होने की तैयारी में है. मार्केट एक्‍सपर्ट अजीत गोस्‍वामी से सिलसिलेवार समझते हैं... 

क्‍यों टूटा बाजार 

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US ट्रेजरी यील्‍ड का असर

यूएस ट्रेजरी यील्‍ड्स का असर दुनियाभर के शेयर बाजारों के साथ-साथ भारतीय बाजारों पर देखने को मिला. 10 साल की यूएस ट्रेजरी यील्‍ड करीब 5 फीसदी हो गई, जो कि साल 2007 के बाद टॉप है. यील्‍ड की ओर से निवेशकों का रुझान तेजी से बढ़ा है. इसके चलते भारतीय शेयर बाजारों में ताबड़तोड़ बिकवाली हुई. 

इजरायल-हमास युद्ध

इजरायल-हमास युद्ध के चलते ग्‍लोबल निवेशकों की चिंताएं बढ़ी हैं. ऐसा इसलिए क्‍योंकि इसका असर ग्‍लोबल ऑयल सप्‍लाई पर पड़ सकता है  और इससे आगे एनर्जी की कीमतों में उछाल आ सकता है. तेल की बढ़ती कीमतों के चलते महंगाई और ब्‍याज दरों को काबू में करने में दिक्‍कत आ सकती है. फाइनेंशियल मार्केट की नजर तेल की कीमतों पर है. 

बढ़ता डॉलर इंडेक्‍स

जब भी अमेरिकी डॉलर में मजबूती आती है, तो इसका असर भारत जैसे देशों पर होता है. क्‍योंकि यह इम्‍पोर्ट आधारित अर्थव्‍यवस्‍था है. डॉलर इंडेक्‍स 106 के अहम लेवल पर को पार कर चुका है. डॉलर की मजबूती से तुलतनात्‍मक रूप से कम रिटर्न आता है क्‍योंकि भारतीय बाजार कम आकर्षक हो जाते हैं. इसका नतीजा यह होता है कि विदेशी संस्‍थागत निवेशक (FIIs) बाजार से पैसा निकालने लगते हैं. 

क्रूड की बढ़ती महंगाई

महंगाई दर में उछाल से भारतीय बाजारों की चिंताएं बढ़ गइ है. यह सीधे तौर पर क्रूड ऑयल की महंगाई से जुड़ी है. क्रूड 88 डॉलर के लेवल को पार कर चुका है. अगर इसमें तेजी का ट्रेंड बना रहता है, इससे भारत में महंगाई बढ़ सकती है. भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी क्रूड आयात करता है. क्रूड में उछाल भारत में महंगाई और ओवरआल इकोनॉमी में के लिए एक खतरा है. 

FII की ताबड़तोड़ बिकवाली

यूएस बॉन्‍ड यील्‍ड में तेजी, मजबूत डॉलर और महंगा होते क्रूड के चलते भारतीय बाजारों का आउटलुक चुनौतीपूर्ण है. इन वजहों के चलते विदेशी संस्‍थागत निवेशक (FII) भारतीय बाजारों में ताबड़तोड़ बिकवाली कर रहे हैं. कैश मार्केट में अगस्‍त और सितंबर 2023 के दौरान FIIs ने 47,312 करोड़ रुपये की बिकवाली की. निवेशक इमर्जिंग बाजारों से अपना पैसा निकालकर गोल्‍ड, बॉन्‍ड और करेंसी जैसी आकर्षक एसेट्स में लगा रहे हैं.

कहां बना रहा है निवेश का मौका

मार्केट एक्‍सपर्ट अजीत गोस्‍वामी कहते हैं, शॉर्ट टर्म में बाजार में निगेटिव ट्रेड हैं. हल्‍की-फुल्‍की रिकवरी के बीच बाजार में सेलिंग प्रेशर बना रहा सकता है. हाल में हाई तेज गिरावट के बीच थोड़ा-थोड़ा कंसॉलिडेशन देखने को मिल सकता है. हालांकि, मौजूदा सेंटीमेंट्स लार्ज कैप स्‍टॉक्‍स के लिए पॉजिटिव आउटलुक है. जबकि मिड और स्‍मॉल कैप शेयरों को लेकर चिंताएं रह सकती हैं. जियोपॉलिटिकल टेंशन और वैल्‍युएशंस का इम्‍पैक्‍ट है. हालांकि ओवरआल अर्निग्‍स ग्रोथ स्थिर है.  

उनका कहना है, 2023 की दसूरी छमाही में भारतीय बाजार अपनी मजबूती बनाए रख सकते हैं. इसमें कई मैक्रोइकोनॉमिक फैक्‍टर्स सपोर्ट करेंगे. इसमें बढ़ती क्रेडिट एक्टिविटी, स्थिर महंगाई, एनर्जी कीमतों में नरमी, मजबूत इंडस्ट्रियल परफॉर्मेंस, मंदी की कम होती चिंता, रेट हाइक का ग्‍लोबल पिक और भारतीय कंपनियों की बेहतर होती फाइनेंशियल कंडीशन अहम फैक्‍टर होंगे.