ट्रंप की जीत ने पलट दिया पासा, अब भारतीय शेयर बाजार पकड़ेगा तेज रफ्तार, ग्लोबल ब्रोकरेज ने किया बड़ा ऐलान
CLSA U-turn on China: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की जीत के बाद ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए (CLSA) भारतीय शेयर बाजारों से निकलकर चीन में निवेश करने के अपने शुरुआती रणनीतिक बदलाव को पलट दिया है.
CLSA U-turn on China: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की जीत के बाद ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए (CLSA) भारतीय शेयर बाजारों से निकलकर चीन में निवेश करने के अपने शुरुआती रणनीतिक बदलाव को पलट दिया है. ब्रोकरेज फर्म ने अब भारत में अपने निवेश को बढ़ाने और चीन में निवेश कम करने का फैसला किया है. यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब चीन की अर्थव्यवस्था चुनौतियों का सामना कर रही है और भारत में निवेश की संभावनाएं बेहतर नजर आ रही हैं. ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म CLSA का यह फैसला भारतीय बाजारों के लिए एक अच्छा संकेत है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों के दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने भारतीय बाजारों से बड़ी निकासी की है, जिसका बाजार पर बुरा असर पड़ा है.
CLSA ने क्यों पलटा फैसला?
वैश्विक ब्रोकरेज कंपनी सीएलएसए ने ब्रोकरेज घराने ने चीन में निवेश घटाते हुए भारत में निवेश बढ़ाने का फैसला किया है. सीएलएसए ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अमेरिकी चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद चीनी बाजारों के सामने चुनौतियां आ सकती हैं, जिसके चलते उसने यह कदम उठाया है.
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CLSA ने चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (NPC) द्वारा घोषित इन्सेंटिव पॉलिसी को भी नाकाफी बताया है. ब्रोकरेज फर्म का यह भी मानना है कि अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी के साथ-साथ बढ़ती महंगाई ने चीन की मॉनेटरी पॉलिसी के लिए चुनौती बढ़ा दी है. इसके अलावा चीन के मार्केट में एसेट्स पर मिलने वाला रिस्क प्रीमियम भी घट गया है, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए यह बाजार कम आकर्षक हो गया है. कुल मिलाकर CLSA का मानना है कि चीन का मार्केट अब उतना प्रॉफिटेबल नहीं दिख रहा है.
भारत में फिर से निवेश बढ़ाने जा रहा CLSA
ब्रोकरेज ने कहा कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में ट्रेड वॉर (Trade War) बढ़ सकता है, जबकि इस समय चीन की बढ़ोतरी में निर्यात की हिस्सेदारी सबसे अधिक है. CLSA ने अक्टूबर की शुरुआत में भारत में अपना निवेश कुछ कम करने हुए, चीन में निवेश बढ़ाया था. ब्रोकरेज ने कहा कि अब वह इस प्रक्रिया को उलट रहा है, यानी भारत में निवेश फिर से बढ़ाने जा रहा है.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ट्रंप की प्रतिकूल व्यापार नीति से सबसे कम प्रभावित होने वाले क्षेत्रीय बाजारों में से एक है और मजबूत होते अमेरिकी डॉलर के दौर में जब तक एनर्जी की कीमतें स्थिर रहेंगी, यह विदेशी मुद्रा (FX) स्थिरता प्रदान कर सकता है. सीएलएसए ने कहा कि भारतीय इक्विटी के लिए मुख्य जोखिम यह है कि बाजार में भारी मात्रा में इश्यूएंस जारी किए जा रहे हैं. इसमें कहा गया है, कुल 12 महीने का इश्यूएंस मार्केट कैप का 1.5% है, जो ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बिंदु है.
रिकॉर्ड हाई से 10% नीचे मार्केट
बता दें कि विदेशी निवेशकों की निकासी, दूसरी तिमाही के कमजोर नतीजों और बढ़े हुए वैल्युएशन के बीच निफ्टी सितंबर में अपने रिकॉर्ड हाई से 10% से अधिक नीचे आ चुका है. बीएसई सेंसेक्स इस साल 27 सितंबर को 85,978.25 के अपने रिकॉर्ड हाई पर पहुंचा था. निफ्टी ने भी इसी दिन 26,277.35 के ऑल टाइम हाई स्तर को छुआ था. हालांकि, अक्टूबर के बाद से बाजार मंदी की गिरफ्त में आ गए. सेंसेक्स अपने ऑल टाइम हाई से 8,397.94 अंक या 9.76% नीचे है. निफ्टी भी रिकॉर्ड हाई से 2,744.65 अंक या 10.44% नीचे है.