FPIs डिस्क्लोजर पर घबराने की जरूरत नहीं, लो रिस्क और मॉडरेट रिस्क वाले FPIs पर कोई असर नहीं
सूत्रों के मुताबिक, डिस्क्लोजर नियम के अमल से FPI सेलिंग की ठोस वजह नहीं है. लो रिस्क और मॉडरेट रिस्क वाले FPIs पर कोई असर नहीं है.
मार्केट में एक तरह की अफवाह काम कर रही है कि हाई रिस्क वाले FPIs को सेबी के ग्रेन्युअलर डिस्क्लोजर नियमों के कंप्लायंस की मियाद करीब आ रही है. ऐसे में कुछ FPIs बिकवाली कर रहे हैं. लेकिन क्या वाकई में FPIs के लिए चिंता की बात है. सूत्रों के मुताबिक, डिस्क्लोजर नियम के अमल से FPI सेलिंग की ठोस वजह नहीं है. लो रिस्क और मॉडरेट रिस्क वाले FPIs पर कोई असर नहीं है.
सूत्रों के मुताबिक, डिस्क्लोजर नियम के अमल से FPI सेलिंग की ठोस वजह नहीं है. लो रिस्क और मॉडरेट रिस्क वाले FPIs पर कोई असर नहीं है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक हाई रिस्क की रकम अब काफी कम है. हाई रिस्क वाले FPIs के पास कंप्लाई करने के लिए 6 महीने का समय है. जनवरी में इस मामले पर कई बार समीक्षा की, नियमित रूप से कस्टोडियन से संपर्क किया. 31 जनवरी की मियाद के बाद भी 10 दिन का अतिरिक्त समय डिस्क्लोजर के लिए दिया गया है. नॉन प्रोमोटर कंपनियों में MPS के उल्लंघन की गुंजाइश नहीं इसलिए वहां FPI की बिक्री का दबाव नहीं है.
बता दें, 31 जनवरी तक हाई रिस्क FPIs को डिस्क्लोजर देना है. इस कम्पलांयस की डेडलाइन नजदीक आने से FPI सेलिंग कर रहे हैं. 1 नवंबर से 90 दिन की मियाद डिस्क्लोजर के लिए तय थी. सेबी का अनुमान था कि 2.6 लाख करोड़ रु की रकम हाई रिस्क में है. लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक अब रकम 2.6 लाख करोड़ से काफी कम है. विदेशी सरकारी फंड, विदेशी म्यूचुअल फंड, डाइवर्सिफाइड रेगुलेटेड पूल फंड जैसे को डिस्क्लोजर से छूट है.
किन हाई रिस्क FPIs पर लागू है नियम
- AUM का 50% से ज्यादा सिंगल ग्रुप/कंपनी में निवेश पर
- भारतीय बाजार में 25,000 करोड़ रु से अधिक निवेश
- 25,000 करोड़ रु से पार होने के 3 महीने में डिस्क्लोजर
- हाई रिस्क FPIs में वो जो सरकारी/ पब्लिक फंड नहीं
ज्यादा डिस्क्लोजर लेने की मंशा क्यों
कई FPIs का निवेश बरसों से स्थिर है. इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. मालिकाना हक की बारीकी से जानकारी देनी होगी ताकि रेगुलेटर को असली मालिक का पता चल सके. सेबी को डिस्क्लोजर में सबकी जानकारी देनी होगी. कम इकोनॉमिक इंटरेस्ट वालों की भी जानकारी मिलेगी. 1 या 2 फीसदी वालों की भी जानकारी लेने का अधिकार है. PMLA में कंपनियों, ट्रस्ट के लिए 10% की सीमा है. पार्टनरशिप वगैरह के लिए यह लिमिट 15% की है. ऐसा शक है कि कई बार छोटे-छोटे हिस्सों के जरिए कंट्रोल किया जाता है. रजिस्ट्रेशन के समय प्राइवेसी की शर्त भी खत्म होगी.