विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने नवंबर में भारतीय पूंजी बाजार में 12,260 करोड़ रुपये का निवेश किया है. यह 10 महीने का निवेश का सबसे उच्च स्तर है. कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और रुपये में तेजी इसकी वजह रही. इससे पहले के दो महीने (सितंबर और अक्तूबर) में निवेशकों ने पूंजी बाजार (शेयर एवं डेट) से शुद्ध रूप से करीब 60,000 करोड़ रुपये की निकासी की थी. जबकि जुलाई-अगस्त में उन्होंने कुल 7,300 करोड़ रुपये का निवेश किया था.

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डिपोजिटरी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर के दौरान एफपीआई ने शेयर बाजारों में 6,913 करोड़ रुपये और डेट मार्केट में 5,347 करोड़ रुपये डाले हैं. इस प्रकार पूंजी बाजार में उनका कुल निवेश 12,260 करोड़ रुपये हुआ है. यह जनवरी के बाद से विदेशी निवेशकों का सबसे ज्यादा निवेश है. जनवरी में एफपीआई ने 22,240 करोड़ रुपये का निवेश किया था.

जनवरी, मार्च, जुलाई और अगस्त को छोड़कर इस पूरे साल विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक शुद्ध बिकवाल रहे. इन चार महीनों में निवेशकों ने बाजार में कुल 32,000 करोड़ रुपये का निवेश किया. इससे पहले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने यह दो साल की सबसे बड़ी निकासी रही.

एफपीआई ने सितंबर, 2018 में पूंजी बाजार (शेयर और डेट) से 21,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की. यह सिलसिला अक्‍टूबर में भी जारी रहा और 38,900 करोड़ रुपये की निकासी हुई.

मॉर्निंगस्टार के वरिष्ठ विश्लेषक प्रबंधक (शोध) हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दर बढ़ाने, कच्चे तेल की कीमतें में तेजी, रुपये में गिरावट, चालू खाते के घाटे की खराब स्थिति, सरकार के राजकोषीय घाटे को तय लक्ष्य के भीतर रखने पर संशय आदि कारकों का देश की वृहद-आर्थिक परिवेश पर असर पड़ा. जिसके चलते विदेशी निवेशकों ने सितंबर और अक्तूबर में भारतीय बाजार से निकासी की.

हालांकि, कच्चे तेल में नरमी, रुपये में जोरदार तेजी और नकदी की स्थिति में सुधार से नवंबर में विदेशी निवेशक फिर से भारतीय पूंजी बाजार की ओर लौट आए हैं. विदेशी निवेशकों ने इस साल अब तक पूंजी बाजार से 88,000 करोड़ रुपये निकाले जिसमें शेयर बाजार से 35,000 करोड़ से अधिक और डेट मार्केट से करीब 53,000 करोड़ रुपये की निकासी शामिल है.