डॉलर के खिलाफ रुपये की गिरती कीमत के साथ घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के कारण देश के पूंजी बाजार से बड़ी मात्रा में विदेशी फंड निकलकर बाहर के देशों में जा रहा है. हेम सिक्युरिटीज की वरिष्ठ विश्लेषक आस्था जैन ने कहा, "पिछले नौ महीनों में 50,000 करोड़ रुपये की पूंजी निकल कर देश से बाहर जा चुकी है. इसमें रुपये और डॉलर के बिगड़ते अनुपात की प्रमुख भूमिका है. यह भारतीय पूंजी बाजार के लिए अच्छा संकेत नहीं है."

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उन्होंने कहा, "इससे शेयर बाजार पर भारी असर पड़ा है और अब सूचकांकों के नई ऊंचाइयों पर पहुंचने की उम्मीद नहीं दिख रही है." शेयर बाजारों के आंकड़ों से पता चलता है कि अक्टूबर से विदेशी फंड का तेजी से लौटना शुरू हुआ, जो पिछले 12 महीनों में सबसे अधिक तेजी से निकाली जा रही है. विदेशी निवेशक महज 13 ट्रेडिंग सत्रों में 19,500 करोड़ रुपये की पूंजी निकाल चुके हैं. 

पिछले दस सालों में केवल चार बार ऐसा हुआ है, जब किसी एक महीने में विदेशी निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजार से 19,000 करोड़ रुपये की रकम निकाली हो. विश्लेषकों का कहना है कि निवेशक उभरते बाजारों से पूंजी निकाल कर अमेरिकी सिक्युरिटी जैसे उच्च रिटर्न में अपनी पूंजी लगा रहे हैं. 

एचडीएफसी सिक्युरिटीज के प्रमुख दीपक जासानी ने कहा, "हमें उम्मीद नहीं है कि पूंजी निकालने की यह दर अभी रुकेगी. आने वाला समय और चिंताजनक रहने वाला है." पिछले महीने अमेरिकी फेडरल रिजर्व मुख्य ब्याज दरों में साल 2018 में तीसरी बार 0.25 फीसदी की बढोतरी की थी, जिससे भारत से उभरती अर्थव्यवस्थाओं से निवेशक पूंजी निकाल कर बेहतर रिटर्न की उम्मीद में अमेरिकी पूंजी बाजार में लगाने लगे हैं.

(इनपुट एजेंसी से)