मौसम में बदलाव के कारण फसलों पर कीटों का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. कीटों से फसल को बचाने के लिए किसानों को महंगे केमिकलों का इस्तेमाल करना पड़ता है. केमिकलों के इस्तेमाल से किसान की जेब पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही उत्पादन और वातावरण में जहरीले तत्व भी बढ़ते हैं. लेकिन महाराष्ट्र के किसानों ने इस समस्या से निपटने के लिए नया ही तरीका ईजाद किया है. यहां के कुछ किसान अपनी फसल को कीटों से बचाने के लिए देसी शराब का छिड़काव कर रहे हैं. यह तरीका फसल को कीटों से बचाने में असरदार तो साबित हो ही रहा है, साथ ही किसानों की जेब पर भी ज्यादा असर नहीं हो रहा है.

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मायानगरी मुंबई से 1000 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के गोदिया जिले के चारगांव के किसान प्रतीक ठाकुर की पिछले साल से 10 एकड़ की धान की खेती कीटों के कारण खराब हो गई थी. उसी के बाद प्रतीक इन कीटों की काट खोजने में जुट गए थे. प्रतीक कीड़ों की तोड़ खोज ही रहे थे तभी उन्हे मालूम हुआ कि मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में किसान चावल की खेती को बचाने के लिए देशी खाद और पानी में देसी शराब मिला रहे है और उससे उनको फायदा हुआ है. प्रतीक जिस इलाके में खेती करते है वो पर दो कीट मावा और तुरतुड़ा नाम पूरी फसल को खत्म कर देते है.

धान पर कीटों का हमला

जैसे ही धान के पौधे बढ़ना होने शुरू होते हैं, ये कीट उसी समय लग जाते हैं और फसल को खराब कर देते हैं. कीटों से फसल को बचने के लिए 16 लीटर पानी में 90 एमएल शराब मिलाई जाती है और फिर उसे फसलों पर स्प्रे कर दिया जाता है. प्रतीक का कहना है कि इसके छिड़काव के बाद फसलों पर किसी भी तरह के कीट या बीमारी के लगने की कोई बात सामने नहीं आई है. 

प्रतीक जैसे इलाके के तकरीबन 50 किसान इन दिनों चावल की खेती में देसी शराब का छिड़काव कर रहे है. ये किसान तकरीबन 2,000 हेक्टेयर भूमि के मालिक हैं. शराब के छिड़काव पर एक किसान को काफी कम लगाता भी आ रही है, ये भी एक बड़ा कारण है कि किसान देसी शराब का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक

चावल की खेती पर देसी शराब के छिड़काव की बात सामने आने के बाद कृषि जानाकारों का कहना हैं कि किसान जो शराब का छिड़काव कर रहे हैं वे इनती कम मात्रा में इस्तेमाल की जा रही हैं उन्हें नहीं लगता कि इससे सिर्फ कीटों को छोड़कर फसलों पर कोई असर होगा. वैसे वैज्ञानिकों का कहना है कि शराब कि जगह पर अगल नीम छाल का भी इस्तेमाल किया जाता तो उससे भी किसानों को फायदा होगा.

 (माधव चंदनकर/मुंबई)