Exclusive: निवेशकों का पैसा और सुरक्षित बनाएगा सेबी, सेकेंडरी मार्केट के लिए ASBA जैसे विकल्पों की तैयारी
मार्केट रेगुलेटर SEBI इस विकल्प पर भी विचार कर रहा है कि कोई रास्ता निकाला जाए, जिससे निवेशकों का सौदे के बदले पैसा सीधे क्लीयरिंग कॉरपोरेशन के पास ही चला जाए.
SEBI PLAN TO ENSURE CLIENT FUND SAFETY: कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के डिफाल्ट के बाद मार्केट रेगुलेटर सेबी लगातर इस कोशिश में है कि किस तरह निवेशकों के पैसे और शेयरों को सुरक्षित बनाया जाए. इसे लेकर पहले भी कई कदम उठाए गए हैं. जी बिजनेस को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, अब कुछ और नए विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक, सेबी इस विकल्प पर विचार कर रहा है कि शेयरों की तरह ही फंड भी निवेशक के खाते में ही रहे और ब्रोकर के खाते में ट्रांसफर न करना पड़े. सौदा होने के साथ ही निवेशक के खाते में सौदे के बराबर की रकम ब्लॉक हो जाए. यानी, एक तरह से जैसे IPO की अर्जी लगाने पर शेयर अलॉटमेंट के साथ रकम खाते में ब्लॉक हो जाती है, उसी तरह का कॉन्सेप्ट सेकेंडरी मार्केट के सौदों के लिए भी लाया जाए. इस मामले पर सेबी, बैंकों, NPCI (नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) और क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस के साथ चर्चा चल रही है. ऐसा करने के लिए तकनीकी बदलाव किस तरह के होंगे और क्या इसके लाभ हानि हो सकते हैं इस पर भी विचार किया जा रहा है.
सेबी इस विकल्प पर भी विचार कर रहा है कि कोई रास्ता निकाला जाए, जिससे निवेशकों का सौदे के बदले पैसा सीधे क्लीयरिंग कॉरपोरेशन के पास ही चला जाए. सभी पे इन और पे आउट क्लाइंट खाते से क्लीयरिंग को चले जाएं और ब्रोकर के खाते से पैसे को घुमाने की जरूरत न पड़े. क्योंकि, जब रकम ब्रोकर के खाते में जाएगी ही नहीं तो फिर दुरुपयोग की आशंकाएं वैसे ही दूर हो जाएंगी. IPO में ASBA (अप्लीकेशन सपोर्टेड बाय ब्लॉक्स अमाउंट) की तरह सेकेंडरी मार्केट में फंड ब्लॉक मैकेनिज्म पर विचार चल रहा है.
क्या कहते हैं मार्केट एक्सपर्ट?
मार्केट एक्सपर्ट और इनॉक वेंचर्स के MD और CEO विजय चोपड़ा का मानना है, “बाजार को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए ये अच्छा कदम होगा. इस कदम से बाजार में गंभीरता आएगी. जिनके पास काम करने की पूंजी है, वही रहेंगे जो गंभीर नहीं होंगे वो काम नहीं कर पाएंगे.''
चोपड़ा के मुताबिक, पहले बहुत सारे ब्रोकर क्लाइंट के पैसे का दुरुपयोग कर लेते थे. बहुत सारे ब्रोकर बंद भी इसीलिए हुए हैं. क्योंकि क्लाइंट के फंड से ही गड़बड़ियां करते थे. उनके पास अपनी पूंजी की दिक्कत होती थी. लेकिन ब्रोकरेज की कमाई इसी तरीके से हो जाती थी. साथ ही कई बार क्लाइंट के पैसे से निजी सौदे भी कर लेते थे.
बाजार के एक और जानकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ये व्यवस्था अच्छी होगी क्योंकि कुछ एक ब्रोकर अगर गड़बड़ी करते हैं, तो पूरी कम्युनिटी का नाम बदनाम होता है. ऐसे में जब गड़बड़ी करने का रास्ता ही नहीं बचेगा, तो फिर ये नौबत ही नहीं आएगी.''
कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग केस के बाद सख्त हुए नियम
दरअसल, जहां पर निवेशक का बैंक और डीमैट खाता एक ही बैंक और उसकी सब्सिडियरी ब्रोकिंग फर्म से है, उन्हें पैसे अलग से ट्रांसफर नहीं करना पड़ता. लेकिन जहां ब्रोकिंग फर्म और बैंक अलग हैं, वहां ग्राहकों को रकम अलग से ब्रोकर वाले खाते में ट्रांसफर करनी पड़ती है. जिससे क्लाइंट के फंड के दुरुपयोग की आशंका रहती है. हालांकि कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग में गड़बड़ी के बाद सेबी ने ब्रोकर के खाते वाले शेयरों को काफी सुरक्षित बना दिया है.
अब ग्राहक की मंजूरी के बाद ही उसके खाते से शेयर ट्रांसफर हो सकते हैं या गिरवी रखे जा सकते हैं. इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक प्लेज या री-प्लेज की व्यवस्था लागू की गई है. साथ ही पावर ऑफ अटॉर्नी की व्यवस्था को भी दुरुस्त किया गया है. ताकि पावर ऑफ अटॉर्नी का बेजा इस्तेमाल न हो सके. इसके लिए एक जुलाई से डीमैट डेबिट प्लेज इंस्ट्रक्शन की व्यवस्था लागू की जा रही है, जिसके बाद ब्रोकर क्लाइंट को पावर ऑफ अटॉर्नी के लिए मजबूर नहीं कर सकेंगे. लेकिन, मौजूदा पावर ऑफ अटॉर्नी की व्यवस्था भी ग्राहक की मर्जी तक जारी रहेगी.
क्या था कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग मामला
कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग पर आरोप था कि कंपनी ने निवेशकों के शेयरों का दुरुपयोग किया था. निवेशकों के शेयरों को बैंकों और वित्तीय संस्थानों के पास गिरवी रखकर लोन लिया था, जो गैरकानूनी था. बाद में सेबी के निर्देश पर जिन मामलों में कोई विवाद नहीं था उन निवेशकों के खातों में सारे शेयरों को लौटा दिया गया था. इसके बाद सेबी ने बड़े पैमाने पर नियमों में बदलाव किया था. इसी मामले को लेकर अब भी सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल में सुनवाई चल रही है.
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