अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में कच्‍चे तेल (Crude oil) की कीमतें लगातार घट रही हैं. तेल का उत्‍पादन करने वाले देश दाम घटने के कारण इसके प्रोडक्‍शन में लगातार कटौती कर रहे हैं. सोमवार को गजब तब हुआ जब मई डिलीवरी के लिए US बेंचमार्क वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) की कीमत पहली बार शून्य से नीचे गिरी थी. इसके बाद कंपनियों को तेल खरीदारों को इंसेटिव तक ऑफर करना पड़ा ताकि बिक्री शुरू हो. हालांकि भारत में इस्‍तेमाल होने वाले Brent Crude की कीमतें 25 डॉलर के आसपास चल रही हैं.

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जी बिजनेस के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी के मुताबिक तेल की कीमतों में गिरावट फायदेमंद या नुकसानदेह हैं. इसे 5 फैक्‍ट में समझा जा सकता है. पहला, कच्‍चा तेल (Brent Crude) अब कभी भी 40 डॉलर प्रति बैरल के रेट पर वापस नहीं आएगा. ऐसा सिर्फ कोरोना वायरस (Coronavirus) से Lockdown के चलते हुआ है. तेल खरीदार भी समझ गए हैं कि जितना जरूरत हो उतना ही क्रूड का स्‍टॉक करना चाहिए. सस्‍ते में ज्‍यादा खरीदना अच्‍छा कदम नहीं है.

दूसरा, भारत के लिए कच्‍चे तेल का सौदा फायदेमंद तब होता जब वह निचले स्‍तरों पर तेल की खरीद करता. अभी Brent Crude के दाम 25 डॉलर प्रति बैरल से नीचे नहीं हैं. हालांकि यह अब भी फायदेमंद है क्‍योंकि यह 60 डॉलर प्रति बैरल के रेट से घटकर इस स्‍तर पर आया है. 

अनिल सिंघवी के मुताबिक ग्‍लोबल मार्केट में होने वाली किसी भी घटना का असर सभी देशों पर पड़ता है. अगर इसमें तेज गिरावट आती है तो इससे बड़ी इकोनॉमी को झटका लगता है. सोमवार को दाम में गिरावट का कारण Demand-Supply का अंतर कम होना था.

अनिल सिंघवी के मुताबिक दुनियाभर की इकोनॉमी में मंदी का असर है और कच्‍चे तेल की सप्‍लाई ज्‍यादा है. इस गिरावट से यह भी साफ है कि अब कच्‍चे तेल में बड़ी तेजी लंबे समय के लिए टल गई है. इससे भारत के लिए क्रूड इम्‍पोर्ट बिल पर दबाव कम होगा.

जानकारों का तर्क है कि कोरोना के कहर से चरमराई आर्थिक गतिविधियों के कारण तेल की डिमांड में तकरीबन 35 फीसदी की कमी आई है. ऐसे में बाजार में Demand/Supply में बहरहाल संतुलन बनता नहीं दिख रहा है.

ओपेक और रूस के बीच तेल के उत्पादन में बड़ी कटौती का करार हुआ है जिससे बाजार को सपोर्ट मिल रहा है. ओपेक और रूस ने अगले दो महीने यानी मई और जून के दौरान तेल के उत्पादन में 97 लाख बैरल रोजाना कटौती करने का फैसला लिया है. 

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ऊर्जा विशेषज्ञों ने बताया कि यह करार दरअसल अमेरिका के हस्तक्षेप से हुआ है, इसलिए अमेरिका और अन्य देशों द्वारा भी उत्पादन कटौती की उम्मीद की जा रही है, जिससे वैश्विक आपूर्ति में तकरीबन 20 फीसदी तक की कमी आ सकती है.