OPEC+ के फैसले के बाद Crude लुढ़का, $72 तक आ सकता है भाव; एक्सपर्ट से जानिए Petrol-Diesel सस्ता होगा?
OPEC+ production cut decision Impact on India: एक्सपर्ट का मानना है कि यह कटौती अनुमान से काफी कम है. डिमांड कहीं से बढ़ नहीं रही है और सप्लाई कम्फर्टेबल है. ऐसे में क्रूड की कीमतों में आने वाले समय में और कमी आ सकती है.
OPEC+ production cut decision Impact on India: तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस (OPEC+) की ज्वाइंट मिनिस्ट्रियल कमेटी की मीटिंग में रोजाना 22 लाख बैरल स्वैच्छिक प्रोडक्शन कटौती पर सहमती बनी है. 2024 की पहली तिमाही के लिए उत्पादन कटौती का फैसला हुआ. इस फैसले के बाद क्रूड कीमतों में गिरावट बढ़ी है. WTI क्रूड का भाव $76 के नीचे और ब्रेंट क्रूड का भाव $81 के नीचे लुढ़क कर आ गया. एक्सपर्ट का मानना है कि यह कटौती अनुमान से काफी कम है. डिमांड कहीं से बढ़ नहीं रही है और सप्लाई कम्फर्टेबल है. ऐसे में क्रूड की कीमतों में आने वाले समय में और कमी आ सकती है. भारत के लिए अच्छी खबर है. ऐसे में बड़ा सवाल कि क्या आने वाले दिनों पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आ सकती है.
नए फैसले में सिर्फ 9 लाख बैरल की कटौती
OPEC+ की मीटिंग में रोजाना 22 लाख बैरल स्वैच्छिक उत्पादन कटौती पर सहमती बनी है. 2024 की पहली तिमाही के लिए उत्पादन कटौती का फैसला है. स्वैच्छिक मतलब उत्पादन कटौती सदस्य देशों पर निर्भर करेगी कि वो कितना प्रोडक्शन घटाएंगे. 22 लाख बैरल में से 13 लाख बैरल की कटौती पहले से हो रही है. सऊदी और रूस रोजाना 13 लाख बैरल उत्पादन घटा रहे हैं. इस तरह नए फैसले में सिर्फ 9 लाख बैरल की अतिरिक्त कटौती होगी. जबकि चर्चा रोजाना 20 लाख बैरल कटौती तक की हुई थी.
Crude: कहां तक गिरेगा भाव
ONGC के पूर्व चेयरमैन आरएस शर्मा का कहना है, ज्वाइंट मिनिर्स्टियल कमेटी की मीटिंग थी. अनुमान से कम हुई है. इसमें पहली बार हुआ है कटौती देशों पर छोड़ दिया गया है. पहले ओपेक कोटा तय करता था, अब वो डायल्यूट हो गया है. सेंटीमेंट्स के हिसाब से यह ओपेक प्लस देशों को काफी बड़ा धक्का है और हमारे देश के लिए यह खुशखबरी है.
उन्होंने कहा, साउथ अमेरिका से ब्राजील 1 जनवरी से ओपेक प्लस का पार्टनर होने वाला है. मीटिंग में यह भी फैसला हुआ है. गयाना एक नया वेनेजुएला बनने वाला है. वहां करीब 13 बिलियन बैरल की एक बड़ी डिस्कवरी हुई है. एक्सान प्रोडक्शन में लगा हुआ है. उसके चलते एक और सेंटीमेंट बना है कि प्रोडक्शन कटौती तो करनी है और वहां प्रोडक्शन बढ़ रहा है. ब्राजील ने भी कहा है कि वो दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑयल प्रोड्यूसर बनना चाहता है. इधर चीन से महामारी की खबरों से मंदी जैसे हालात बने हैं. वहां कंजम्पशन ज्यादा बढ़ने वाली नहीं है. इन सभी हालातों को मिलाजुला कर बात करें, तो सेंटीमेंट्स काफी कमजोर हैं. इससे साफ संकेत हैं कि कीमतें नीचे जाने वाली हैं. लेकिन हालात इतने डायनेमिक होते हैं, कल को क्या बदलाव ओ जाए, इन्वेंट्री लेवल पर कोई निगेटिव खबर आ जाए. फिलहाल यह मानना है कि अभी ब्रेंट और कम होगा और भाव 80 डॉलर से नीचे आने की पूरी संभावना है.
एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा का कहना है, तेल एक पॉलिटिकल कमोडिटी है. 2024 में अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव है, भारत में आम चुनाव है, ताइवान में इलेक्शन हैं, मैक्सिको, जो तेल का बड़ा उत्पादक है, वहां भी चुनाव है, इस फील्ड का एक बड़े प्लेयर इंडोनेशिया में भी चुनाव है. ऐसी स्थिति में ओपेक पर यह दबाव रहेगा कि तेल की कीमतें बहुत ज्यादा उपर नहीं जाए. क्योंकि अगर तेल 100 के पार जाता है, तो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हार जाएंगे. ताइवान में हालात बदल सकते हैं, जो अमेरिका के लिए सिरदर्द हो जाएगा. भारत में भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. ऐसे में क्रूड की कीमतें 72-80 डॉलर के बीच रह सकती हैं. ओपेक की कोशिश होगी कि कीमतें 80 डॉलर के नीचे न आने पाए. 80 डॉलर पर भारत और अमेरिका दोनों कम्फर्टेबल हैं.
पेट्रोल-डीजल होगा सस्ता?
आरएस शर्मा का कहना है, क्रूड की कीमतों में कमी आने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के दाम में कमी आने की उम्मीद नहीं है. अभी जो राजनीतिक हालात है, उस हिसाब से यह बड़ा मुद्दा होता है. स्टेट इलेक्शन हुए हैं और आगे जनरल इलेक्शन होने वाले हैं. महंगाई को काबू में रखा गया है. ऐसे में फिलहाल पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की उम्मीद नहीं है.
ओपेक की पकड़ कमजोर!
नरेंद्र तनेजा का कहना है, ओपेक आज की तारीख में 'डिवाइडेड हाउस' है. जो अफ्रीका के देश हैं, जो बड़े उत्पादक देश हैं. इनमें नाइजीरिया, अंगोला का मानना है कि कोटा तय होने से उनके देश की इकोनॉमी को नुकसान हो रहा है. उन्हें जो पिछली बार उत्पादन का कोटा दिया गया था, उससे ज्यादा उत्पादन की इजाजत दी जाए. अंगोला ने यहां तक कहा है कि अगर उनकी मांग पर ध्यान दिया गया, तो वो दोबारा विचार करेगा कि उसे ओपेक जैसी संस्था में रहना चाहिए या नहीं. कुल मिलाकर डिवाइडेड हाउस है.
उनका कहना है, हमें यह समझना होगा कि ओपेक खासकर सऊदी अरब, कुवैत और इराक क्या चाहते हैं. वो यह चाहते हैं कि तेल की कीमत को 90 डॉलर तक लेकर जाया जाए. सऊदी अरब का 2023 विजन है, वो अर्थशास्त्र यह मांग करता है कि तेल को 90 डॉलर तक लेकर जाया जाए. इराक में भी कंस्ट्रक्शन चल रहा है, उसे भी 90 डॉलर चाहिए. रूस को भी 90 डॉलर तेल चाहिए क्योंकि वे युद्ध में हैं. ये तीन बड़े उत्पादक देश 90 डॉलर प्रति बैरल तेल की कीमत चाहते हैं. लेकिन इस बार ये देश अपने प्रयास में सफल नहीं हुए.
उन्होंने कहा, ओपेक में बात हुई थी 2 मिलियन डॉलर अतिरिक्त प्रोडक्शन कटौती 2024 में किया जाए. जो अभी तक है, उसमें यह कटौती जोड़ी जाए. अगर वो इसमें सफल हो जाते, तो तेल की कीमत 100 डॉलर के पार चली जाती लेकिन उनको यह भी पता है कि डिमांड कहीं पर बढ़ नहीं रही है और सप्लाई साइड बेहतर स्थिति में है. दूसरी ओर वेनेजुएला और ईरान से तेल का उत्पादन बढ़ रहा है. वो अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी आ रहा है. ऐसे हालात में जब कोई बड़ा जियोपॉलिटिकल टेंशन नहीं है, डिमांड कहीं से बढ़ नहीं रही है और सप्लाई कम्फर्टेबल है. अगर आप आर्टिफिशियली प्रोडक्शन कटौती कर कीमत बढ़ाना चाहेंगे, तो यह हो नहीं पाएगा. ऐसे में क्रूड की कीमतों में आने वाले समय में और कमी आ सकती है.