पिछले कुछ सालों में मोबाइल का मार्केट तेजी से बढ़ा है. TRAI के आंकड़ों के अनुसार देश में करीब 115 करोड़ वायरलेस टेलीफोन सब्सक्राइबर्स हैं. पहले जहां मोबाइल इक्का-दुक्का लोगों के पास होते थे, आज के वक्त में हर हाथ में मोबाइल दिखता है. कई लोग तो ऐसे भी हैं जिनके पास दो-दो मोबाइल हैं. जब किसी का मोबाइल खराब हो जाता है तो अधिकतर लोग उसे रिपेयर कराने के बजाय नया मोबाइल ही खरीद लेते हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि नया मोबाइल खरीदना अधिकतर लोगों को फायदे का सौदा लगता है. पुराना मोबाइल भी कुछ कीमत पर एक्सचेंज हो जाता है. क्या आपने कभी सोचा है कि जो पुराना मोबाइल आपने एक्सचेंज किया है, उसका क्या होता है? जरा सोचिए अगर ये सारे मोबाइल कूड़े में पहुंच जाएं तो ई-वेस्ट (E-Waste) का कूड़े वाला पहाड़ बनते देर नहीं लगेगी.

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इस ई-वेस्ट को कम करने का काम कर रहा है दिल्ली का एक स्टार्टअप Zobox, जो पुराने मोबाइल को रीफर्बिश करता है. इसकी शुरुआत दिसंबर 2020 में दिल्ली के रहने वाले नीरज चोपड़ा ने की थी. हाल ही में नवीन गौड़ ने उन्हें को-फाउंडर के तौर पर ज्वाइन किया है. पुराने मोबाइल की खराबी ठीक कर के यह स्टार्टअप उसे दोबारा इस्तेमाल लायक बना देता है और फिर देश भर में तमाम रिटेलर्स के पास बेचने के लिए भेज देता है. ये मोबाइल नए मोबाइल की तुलना में 40-45 फीसदी सस्ते मिलते हैं. इससे एक तो ई-वेस्ट कम हो रहा है और दूसरा वह तबका भी मोबाइल ले सकता है, जो अब तक मोबाइल इसलिए नहीं ले पा रहा था, क्योंकि वह महंगे पड़ रहे थे. 

कहां से शुरू हुई ये कहानी?

नीरज चोपड़ा अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 19 साल की उम्र में साल 2000 के करीब हांगकांग चले गए और वहां पर एक बिजनेस शुरू किया. वह हांगकांग से इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम भारत भेजते थे. करीब 12 सालों तक उन्होंने इस बिजनेस का तगड़ा एक्सपीरियंस हासिल किया. इसी बीच 2012 में उनके बड़े भाई की मौत हो गई तो उन्हें अचानक से भारत वापस लौटना पड़ा. नीरज ने एक तो मोबाइल सेग्मेंट में काफी काम किया था और दूसरा उनके पास चीन के मार्केट की काफी समझ थी. ऐसे में वापस लौटने पर उन्होंने पावर बैंक बनाने का बिजनेस शुरू किया, जो उस वक्त काफी नया कॉन्सेप्ट था. 

नीरज जिन्हें पावर बैंक बेचते थे, वह उसे ऑनलाइन बेचते हैं. वहां से नीरज ने ई-कॉमर्स की जानकारी हासिल की. इसी तरह वह मार्केट को समझते रहे और तमाम चीजें सीखते रहे. इसी बीच उन्हें कुछ अच्छे कॉन्टैक्ट्स मिले, जिनकी मदद से उन्हें तमाम ई-कॉमर्स कंपनियों से मोबाइल बायबैक का मौका मिला. ये वही पुराने मोबाइल होते हैं, जिन्हें हम और आप सस्ती कीमत पर एक्सचेंज कर के नए मोबाइल खरीदते हैं. इन मोबाइल को हर कोई नहीं खरीद सकता, कुछ ही लोग इन्हें खरीद पाते हैं, क्योंकि यह लाखों की संख्या में एक साथ बिकते हैं.

फिर मोबाइल रीफर्बिश करने के बिजनेस में रखा कदम

नीरज के पास चीन में काम करने का एक अच्छा अनुभव था. पहले वह हांगकांग में इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़ा बिजनेस करते थे. वहां से भारत में अपने ग्राहकों को सामान सप्लाई करते थे. ऐसे में अब उनके लिए स्पेयर पार्ट्स और सप्लाई चेन एक पॉजिटिव प्वाइंट बन गया. उसके बाद नीरज ने पुराने मोबाइल को रीफर्बिश करने का बिजनेस शुरू किया. अभी तक वह कंपनी की शुरुआत नहीं कर सके थे, क्योंकि वह इस मार्केट को अच्छे से समझ रहे थे. 

उसी दौरान उन्होंने ग्राहकों को एजुकेट करने के लिए कुछ शो-रूम खोलने शुरू किए, लेकिन वह बहुत महंगे पड़ने लगे. फिर कुछ लोगों से बात हुई, जो फ्रेंचाइजी लेने के लिए तैयार हो गए. अभी नीरज ब्रांड लॉन्च करने की सोच ही रहे थे कि कोरोना ने दस्तक दे दी और लॉकडाउन लग गया. दिसंबर 2020 में नीरज ने Zobox Retails Pvt. Ltd. नाम से एक कंपनी रजिस्टर की. हालांकि, इसकी लॉन्चिंग जून 2021 में की गई. ब्रांड को लॉन्च करने के लिए नीरज ने गुजरात को चुना, क्योंकि वहां से उन्हें कई फ्रेंचाइजी मिले थे.

जब चुनौतियों से हुआ नीरज का आमना-सामना

नीरज ने फ्रेंचाइजी मॉडल को इसलिए चुना था, ताकि ग्राहकों को एजुकेट किया जा सके. हालांकि, कुछ ही महीनों में उन्हें समझ आ गया कि वह अपने रास्ते से अचानक भटक गए हैं. धीरे-धीरे वह 12 फ्रेंचाइजी स्टोर तक पहुंच चुके थे. देखने में ऐसा लग रहा था कि बिजनेस बढ़ता जा रहा है, लेकिन असल में ग्राहक एजुकेट नहीं हो रहे थे और सप्लाई चेन भी मुश्किल होती जा रही थी. कंपनी के पास बहुत सारा डेड स्टॉक होने लगा. मोबाइल जैसे-जैसे पुराना होता जाता है, उसकी वैल्यू गिरती जाती है. बहुत सारे मोबाइल लोग नहीं खरीदते थे, जो कंपनी के डेड स्टॉक में जमा होने लगे. नतीजा ये हुआ कि आखिरकार उन्हें फ्रेंचाइजी मॉडल को बंद करना पड़ा. 

ग्राहकों को एजुकेट करना क्यों है जरूरी?

ग्राहकों को एजुकेट करना बहुत जरूरी था, क्योंकि बाजार में मिलने वाले दूसरे सेकेंड हैंड मोबाइल के मुकाबले Zobox के मोबाइल कुछ महंगे होते हैं. यूं ही दुकानों पर मिलने वाले सेकेंड हैंड मोबाइल चोरी वाले हो सकते हैं, वह जीएसटी नहीं चुकाते, क्वालिटी पर ध्यान नहीं देते, गारंटी-वारंटी से भी बचते हैं. वहीं दूसरी ओर Zobox के मोबाइल पर वारंटी भी मिलती है और क्वालिटी चेक भी होते हैं, ताकि ग्राहकों का भरोसा जीता जा सके. अगर ग्राहक एजुकेट नहीं होंगे तो वह ये नहीं समझ पाएंगे कि Zobox के मोबाइल के लिए उन्हें कुछ अतिरिक्त पैसे क्यों चुकाने पड़ रहे हैं.

क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?

नीरज ने बिजनेस मॉडल में बदलाव करते हुए उसे बी2बी और बी2सी दोनों में साथ करना शुरू किया. बी2बी में मार्जिन कम था, लेकिन टर्नओवर अधिक था. रिटेल मार्केट को अभी भी वह सस्टेन नहीं कर पाए, जिसके बाद उन्होंने पूरा फोकस बी2बी मार्केट पर किया. उसके लिए ZOBIZ नाम का एक ऐप भी डेवलप किया, जिसके चलते Zobox डिजिटल तरीके से तमाम रिटेलर्स तक पहुंचने लगा. वहां से डिमांड भी ऑनलाइन आने लगी. इसके बाद उन्होंने बल्क में रिटेलर्स को मोबाइल बेचने शुरू किए. देखते ही देखते कंपनी का डेड स्टॉक जीरो हो गया और बिजनेस भी तेजी से बढ़ने लगा. 

क्या होती है मोबाइल की कीमत?

मौजूदा वक्त में कंपनी की कमाई का सिर्फ एक ही जरिया है, वह है मोबाइल फोन बेचने से मिला मार्जिन. मोबाइल फोन का जो मार्जिन है, वही कंपनी का रेवेन्यू है. वह रिटेलर्स को भी अच्छा मार्जिन देते हैं, क्योंकि बीच के तमाम होल-सेलर्स का मार्जिन भी बच रहा है. इससे उनका स्टॉक अब तेजी से निकल रहा है और फायदा भी हो रहा है. Zobox जिन मोबाइल को रीफर्बिश करता है, वह नए मोबाइल की कीमत की तुलना में 40-50 फीसदी तक सस्ते होते हैं. वहीं इन पर अलग-अलग मॉडल और कंडीशन के हिसाब से 1 से 6 महीने तक की वारंटी भी मिलती है.

बूटस्ट्रैप्ड है ये स्टार्टअप?

अभी तक Zobox एक बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप है, लेकिन आने वाले दिनों में नीरज फंडिंग उठाने की योजना बना रहे हैं. नीरज इस वक्त फंडिंग के लिए अच्छे निवेशक ढूंढ रहे हैं, जिनसे ना सिर्फ उन्हें फंड मिले, बल्कि मदद भी मिले जिससे उनका बिजनेस कई गुना बढ़ सके.

क्या हैं फ्यूचर प्लान्स?

नीरज बताते हैं कि अभी तो फ्रेंचाइजी मॉडल बंद कर दिया है, लेकिन जब भविष्य में बिजनेस बढ़ेगा और तेजी से रेवेन्यू जनरेट होने लगेगा तो दोबारा फ्रेंचाइजी देंगे. अब वह जानते हैं कि फ्रेंचाइजी कैसे लानी हैं और कैसे फायदा होगा. नीरज बताते हैं कि अभी तो वह सिर्फ मोबाइल रीफर्बिश कर रहे हैं, लेकिन आने वाले दिनों में वह लैपटॉप भी रीफर्बिश करने की प्लानिंग कर रहे हैं. इतना ही नहीं, जल्द ही वह सीएसआर में भी कदम रखने की योजना बना रहे हैं. वह मोबाइल की रीफर्बिश कर के ई-वेस्ट तो घटा ही रहे हैं, लेकिन अब वह रीफर्बिश मोबाइल की सेल पर कुछ पेड़ भी लगाने की योजना पर काम कर रहे हैं. यानी पर्यावरण से ई-वेस्ट घटाना और पर्यावरण को ज्यादा बेहतर बनाना Zobox का अहम उद्देश्य बन गया है.