ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट (Flipkart) और टाटा समूह की कंपनी बिगबास्केट (BigBasket) के खिलाफ तमिलनाडु में एक शिकायत दर्ज कराई गई है. यह शिकायत राज्य चुनाव आयुक्त बी कोठी निर्मलसामी के समक्ष दर्ज कराई है. शिकायत में चेन्नई उच्च न्यायालय के वकील के नरसिम्हन ने कहा है कि राज्य सरकार की तरफ से चुनाव (Election) के दिन 19 अप्रैल को छुट्टी होने के बावजूद, फ्लिपकार्ट और बिगबास्केट ऑर्डर डिलीवरी की गारंटी दे रही हैं.

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नरसिम्हन ने कहा कि सरकारी आदेश के अनुसार चुनावी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए 19 अप्रैल को ‘नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेन्ट एक्ट 1881’ की धारा 25 के तहत आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक अवकाश (Public Holiday) घोषित किया गया है. फ्लिपकार्ट और बिग बास्केट जैसे ऑनलाइन डिलिवरी प्लेटफॉर्म 19 अप्रैल को डिलिवरी सेवाओं की गारंटी दे रही हैं, जो डिलिवरी कर्मियों के अधिकारों का उल्लंघन है. 

क्या छुट्टी के दिन नहीं होती प्रोडक्ट डिलीवरी?

अब यहां सवाल ये उठता है कि क्या सार्वजनिक छुट्टी के दिन हर किसी को छुट्टी दे दी जाती है?क्या जरूरी सामान की डिलीवरी भी रोक दी जाएगी? एक बड़ा सवाल ये भी है कि अगर कंपनी छुट्टी नहीं देती है तो क्या इसमें कुछ गलत है? इन्हीं तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए जी बिजनेस ने बात की साइबर कानून विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता से. आइए जानते हैं उनका क्या कहना है.

विराग गुप्ता कहते हैं- 'मतदान के कानूनी अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए वोटिंग के दिन छुट्टी देने का नियम है. अगर कोई कंपनी या अधिकारी ऐसा करने से मना करे तो उसके खिलाफ चुनाव आयोग और जिला चुनाव अधिकारी के सम्मुख शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. मतदान वाले दिन जरूरी सेवाएं चलती रहें, इसका भी ख्याल रखना जरूरी है. इसके लिए उन कंपनियों को शिफ्ट के अनुसार लोगों को काम कराने के साथ मतदान के अधिकार को सुनिश्चित करना चाहिए. ऐसे मामलों में स्थानीय लोग जिनका नाम वोटर लिस्ट में है, उन्हें छुट्टी जरूर मिलनी चाहिए.

कंपनियों की तरफ से की जाने वाली प्रैक्टिस पर टिप्पणी करते हुए विराग बोले कि इस मामले में ई-कॉमर्स कम्पनियां तीन तरीके से कानून के दायरे से बचने का प्रयास करती हैं.

पहला- ई-कॉमर्स कम्पनियों के अधिकांश कर्मचारी गिग वर्कर्स यानि ठेके पर हैं. उन लोगों को कम्पनी से काम के अनुसार पैसा मिलता है, इसलिए बड़ी कंपनियां इन ठेके के कर्मचारियों के कानूनी अधिकारों का बेखौफ उल्लंघन करती हैं. 

दूसरा- कोरोना और लॉकडाउन के दौरान जरूरी सामान की सप्लाई के नाम पर ई-कॉमर्स कम्पनियों ने लॉकडाउन से छूट की मांग की थी. मतदान वाले दिन सिर्फ आवश्यक सेवाओं के लिए ही छुट्टी देने से इंकार किया जा सकता है, लेकिन इसकी आड़ में ई-कॉमर्स कम्पनियां अपने पूरे कारोबार को चलाने की कोशिश करती हैं.

तीसरा- अगर कोई व्यक्ति मतदान के अधिकार के नाम पर छुट्टी लेने की मांग करें तो फिर कम्पनियां उसे अपने पैरोल से हटा देंगी. कर्मचारियों को इन बड़ी कंपनियों के यहां पर श्रम कानूनों के तहत सुरक्षा नहीं मिली है जिसकी वजह से उनके कानूनी अधिकारों का मतदान वाले दिन उल्लंघन होता है.

फ्लिपकार्ट का क्या है कहना?

न्यूज एजेंसी पीटीआई ने जब फ्लिपकार्ट से संपर्क किया तो उसने कहा कि वह केवल पात्र कर्मचारियों को सवैतनिक छुट्टियां दे रही है. फ्लिपकार्ट के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘फ्लिपकार्ट समूह में हम मतदान दिवस के संबंध में अधिकारियों की तरफ से दिए गए सभी निर्देशों और दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं और सभी पात्र कर्मचारियों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए सवैतनिक अवकाश दे रहे हैं. इसके अलावा, हमने जागरूकता बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं और कर्मचारियों को मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.’’