आए दिन किसी ना किसी कंपनी में छंटनी की खबरें सुनने को मिलती हैं. हाल ही में गूगल ने बहुत सारे कर्मचारियों को निकाला है. ओला से भी खबर आ रही है कि वह आने वाले दिनों में 10-15 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है. बायजू ने तो पिछले कुछ सालों में हजारों की संख्या में कर्मचारी निकाल दिए और सभी को निकाले जाने के पीछे की वजह बताई गई बिजनेस रीस्ट्रक्टरिंग. अब सवाल ये है कि आखिर ये बिजनेस रीस्ट्रक्टरिंग होती क्या है, जिसके चलते एक झटके में सैकड़ों लोग बेरोजगार हो जाते हैं. आइए इसे समझते हैं.

क्या है बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग?

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जब कभी बिजनेस में ऐसा वक्त आता है कि उसका नुकसान बढ़ने लगता है या यूं कहें कि मुनाफा घटने लगता है तो बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग की जाती है. इसका आसान सा मतलब है- बिजनेस के स्ट्रक्चर में बदलाव करना. इससे कंपनी अपने बिजनेस को फिर से मुनाफे में ले जाने की कोशिश करती है. कंपनी के फाइनेंशियल और ऑपरेशनल स्ट्रक्चर में कुछ बदलाव किए जाते हैं, जिससे कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी, एफिशिएंसी और कैश फ्लो को बेहतर किया जा सके.

इसके तहत कंपनी मुख्य रूप से अपनी लागत को घटाने पर विचार करती है. इसके लिए कंपनी अपने कुछ विभाग बंद कर सकती है, कुछ शुरू कर सकती है या आंशिक रूप से विभागों में कुछ पदों को हटा सकती है. इसका नतीजा ये होता है कि उन हटाए गए पदों पर काम करने वाले लोगों पर नौकरी का संकट आ जाता है.

कई बार तो कंपनी अपने बिजनेस को रीस्ट्रक्चर करने के कई असेट भी बेच देती है. अगर बिजनेस बहुत शहरों में फैला है, कई बार कुछ ऑफिस बंद किए जाते हैं. बायजू के मामले में तो ये देखने को मिला भी, जब उसने पूरे देश के तमाम ऑफिस खाली कर दिए और सिर्फ हेड ऑफिस अपने पास रखा. इससे रेंट पर होने वाला भारी-भरकम खर्च कम हो जाता है.

क्या बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग का मतलब छंटनी है?

वैसे तो बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग का मतलब छंटनी नहीं कहा जा सकता, लेकिन जब भी कोई कंपनी बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग करती है तो वह छंटनी भी करती है. ऐसा इसलिए क्योंकि बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग की जररूत तभी पड़ती है, जब बिजनेस अच्छा परफॉर्म नहीं कर रहा होता है. ऐसे में बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग का असर बहुत सारे कर्मचारियों पर पड़ता है.

पिछले कुछ सालों में बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग हुई पॉपुलर

कोविड के दौरान और उसके बाद बहुत सारे स्टार्टअप शुरू हुए. कोरोना काल के बाद इन स्टार्टअप्स को फंडिंग भी तेजी से मिली और बहुत सारे यूनिकॉर्न बन गए. हालांकि, पिछले करीब 2 सालों से स्टार्टअप्स की दुनिया में फंडिंग विंटर देखने को मिल रहा है. दो सालों से तमाम स्टार्टअप्स को फंडिंग हासिल करने में दिक्कत हो रही है. ऐसे में उन स्टार्टअप्स के लिए अपने बिजनेस को रीस्ट्रक्चर करना जरूरी हो गया है, जिनका बिजनेस बहुत हद तक फंडिंग पर निर्भर था.

कॉस्ट कटिंग के लिए लोगों की छंटनी करने की बात कहना कंपनियों को थोड़ा सही नहीं लगता, तो उन्होंने बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग कहना शुरू कर दिया. अब कंपनी को भले ही सिर्फ छंटनी करनी होती है, लेकिन उसे बिजनेस रीस्ट्रक्चरिंग ही कहा जाने लगा है. हालांकि, ये बात तय है कि जब भी बिजनेस रीस्ट्रक्चर होगा, तब-तब छंटनी जरूर होगी.