आज के वक्त में स्टार्टअप (Startup) ईकोसिस्टम तेजी से बढ़ रहा है. अब तो सरकार भी स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की स्कीमें चला रही है. लेकिन क्या आपको 90 के दशक में स्टार्टअप्स के बारे में लोगों को पता ही नहीं था. उस वक्त तो लोग सिर्फ बिजनेस को समझते थे और उसे भी गिने-चुने लोग ही कर पाते थे. उस दौर में आईआईटी से पढ़े एक शख्स ने स्टार्टअप शुरू किया, जिनका नाम है डॉ. महेश गुप्ता.

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ये बात है साल 1999 की, जब आईआईटी कानपुर से पढ़े महेश गुप्ता ने बिजनेस करने का फैसला किया. जिस रिवर्स ऑस्मोसिस को हम स्कूल में हमेशा पढ़ते रहे, उसी का इस्तेमाल कर के उन्होंने वॉटर प्यूरिफायर बनाया. उन्होंने अपने इस बिजनेस को नाम दिया केंट (Kent), जो आज के वक्त दुनिया के 30 देशों तक पहुंच चुका है और 1200 करोड़ रुपये का टर्नओवर करता है. उनकी कंपनी में अभी करीब 3500 कर्मचारी काम करते हैं. वहीं इनकी लगभग 1000 फ्रेंचाइजी भी हैं, जिनमें हर एक में 3-4 लोग काम करते हैं. यानी कुल मिलाकर 6-7 हजार लोग केंट की वजह से रोजगार पा सके हैं.

इंडियन ऑयल में की नौकरी

केंट के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. महेश गुप्ता बताते हैं कि आईआईटी से पढ़ाई करने से बाद उन्होंने पहली नौकरी की इंडियन ऑयल में. इंस्टिट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, देहरादून से उन्हें मास्टर्स करने का मौका मिला और पेट्रोलियम प्रोडक्ट के बारे में उन्होंने बहुत कुछ सीखा. नौकरी के दौरान उन्होंने इंडियन ऑयल के तमाम बड़े क्लाइंट्स को ये सिखाया कि तेल कैसे बचाया जा सकता है. साल 1973 में एक ऐसा वक्त आया था, जब तेल के दाम 3 गुना हो गए थे. उसके बाद से लोगों को ये बताया जाने लगा कि तेल कैसे बचाया जाए, ताकि इसकी बर्बादी ना हो. महेश गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने 10 दिन तक कोटा के एटॉमिक पावर स्टेशन में भी रहकर सर्वे किया है.

घर के बैकयार्ड से शुरू हुई बिजनेस की कहानी

महेश गुप्ता की नौकरी तो अच्छी चल रही थी, लेकिन उनके दिमाग में हर रोज कई सारे आइडिया आते थे और उन सबके वह इंडियन ऑयल में अप्लाई नहीं कर पाते थे. ऐसे में उन्होंने सोचा कि बिजनेस शुरू किया जाए और नौकरी छोड़ दी. बिजनेस की कहानी उनके घर के बैकयार्ड से ही शुरू हुई. बिजनेस शुरू करने से पहले उनकी अपने घरवालों से लड़ाई भी हुई, उन्हें डांट भी पड़ी, क्योंकि वह अच्छा खासा करियर छोड़ रहे थे. आखिरकार सबको मनाकर वह बिजनेस करने लगे और उस वक्त का एक खास स्टार्टअप शुरू किया.

तेल चेक करने के इक्विपमेंट्स से की शुरुआत

जब उन्होंने बिजनेस शुरू किया तो उस वक्त वह तेल चेक करने के इक्विपमेंट बनाते थे. महेश बताते हैं कि उन्होंने ही भारत का पहला ऑयल फ्लो मीटर बनाया, जिसे उस वक्त में कोई नहीं बनाता था. जब लोगों ने उस ऑयल फ्लो मीटर को चेक किया तो उसकी अहमियत समझ आई, जिसके बाद लोग तेल की खपत को चेक करने लगे.

बच्चों को हुआ पीलिया, तो बनाया वॉटर प्यूरिफायर

उस दौरान महेश गुप्ता दिल्ली में रहते थे, जबकि उनका ऑफिस नोएडा में था. वह नोएडा शिफ्ट होना चाहते थे. उस दौरान पानी बहुत खराब था, जिसकी वजह से उनके बच्चों को पीलिया भी हो गया था. महेश गुप्ता बताते हैं कि साफ पानी के लिए प्यूरिफायर उन्हें नहीं मिला तो उन्होंने इसके तमाम सामान इंपोर्ट किए और खुद के लिए एक प्यूरिफायर बनाया. ये करने के दौरान उन्हें वॉटर प्यूरिफायर का स्कोप दिखा और उन्होंने इसका बिजनेस शुरू कर दिया.

जब महेश गुप्ता ने वॉटर प्यूरिफायर बनाना शुरू किया था, उस वक्त वह अधिकतर चीजें इंपोर्ट किया करते थे. धीरे-धीरे वह इसके पार्ट भारत में ही बनाने लगे और आज के वक्त में वह इसके 95 फीसदी पार्ट भारत में ही बनाते हैं. महेश गुप्ता बताते हैं कि भारत में अभी भी इसका बहुत ज्यादा स्कोप है, क्योंकि महज 6-7 फीसदी लोग ही इसका इस्तेमाल करते हैं. वह कहते हैं कि वॉशिंग मशीन का भी 25-30 फीसदी आबादी इस्तेमाल करती है, लेकिन वॉटर प्यूरिफायर पर लोग पैसे नहीं खर्च करते. 

दीवार पर टांगने वाला पहला ट्रांसपैरेंट प्यूरिफायर

उस दौर में वॉटर प्यूरिफायर अमेरिकन और यूरोपियन स्टैंडर्ड पर बनते थे, जो काउंटर के नीचे लगा करते थे. वहीं भारत में लोग पानी को अमृत मानते हैं और वॉटर प्यूरिफायर सिंक के नीचे नहीं लगाना चाहते. ऐसे में उन्होंने ऐसा प्यूरिफायर बनाया, जो दीवार पर टांगा जा सके. साथ ही उन्होंने प्यूरिफायर को ट्रांसपैरेंट बनाया, ताकि लोग देख सकें कि अंदर की प्रोसेस कैसे चल रही है, जिससे भरोसा बढ़ सके. वॉटर प्यूरिफिकेशन में उसके मिनरल्स पानी से निकल जाते थे. ऐसे में महेश गुप्ता ने एक ऐसी प्रोसेस बनाई, जिससे मिनरल्स पानी में बचे रहें. बता दें कि इसके लिए उन्हें 2006 में पेटेंट भी मिला था.

ड्रीम गर्ल को ही क्यों बनाया ब्रांड अंबेसडर?

शुरुआत में कंपनी पोर्टेबल प्यूरिफायर देकर सेल्समैन को लोगों के घरों में भेजती थी. वह लोगों को वॉटर प्यूरिफायर का डेमो देते थे और जिन लोगों को वह पसंद आता था, वह उन्हें खरीदते थे. हालांकि, यह पूरे देश में घर-घर जाकर कर पाना नामुमकिन था. ऐसे में जरूरत थी ब्रांड बिल्डिंग की. महेश गुप्ता चाहते थे कि कोई ऐसा चेहरा हो जो होम लेडी के हिसाब से हो, मेच्योर हो और साथ ही ज्यादा मंहगा भी ना पड़े. ऐसे में काफी चर्चा के बाद ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी का नाम फाइनल हुआ. 

जब हेमा मालिनी से बात की गई तो उन्हें पहली बार में ही ब्रांड अंबेसडर बनने से ये कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें तो इस प्रोडक्ट की कोई जानकारी ही नहीं. इस पर महेश गुप्ता ने एक वॉटर प्यूरिफायर उनके घर में ही लगा दिया, जिसे कुछ दिन इस्तेमाल करने के बाद हेमा मालिनी ब्रांड अंबेसडर बनने के लिए तैयार हो गईं. उस वक्त पैसे बहुत कम थे, इसलिए कंपनी ने हेमा मालिनी का प्रोडक्ट के साथ फोटो खींचकर उसे अखबारों में छपवाया. जब अच्छी प्रतिक्रिया मिली तो एक साल बाद उन्होंने टीवी कमर्शियल शूट किया और विज्ञापन चलाए.

कई सारे इनोवेश किए हैं महेश गुप्ता ने

वॉटर प्यूरिफायर में महेश गुप्ता ने कई सारे इनोवेशन किए हैं. उन्होंने एक ऐसा प्यूरिफायर बनाया है, जो पानी को बिल्कुल बर्बाद नहीं करता है. दरअसल, आम प्यूरिफायर से 20-25 फीसदी तक पानी ही इस्तेमाल होता है, बाकी का पानी सिंक में बह जाता है. वहीं दूसरी ओर इस खास प्यूरिफायर का पानी बिल्कुल बर्बाद नहीं होता. इससे करीब 50 फीसदी पानी तो प्यूरिफाई हो जाता है और बचा हुआ 50 फीसदी पानी वापस आपके घर के टैंक में पहुंचा दिया जाता है. एक ऐसा भी वॉटर प्यूरिफायर कंपनी ने बनाया है, जो घड़े की तरह काम करता है.

महेश गुप्ता ने एक ओजोन प्रोसेस वाला प्रोडक्ट भी बनाया है. इस प्रोडक्ट के जरिए आप सब्जियों और फलों की चीजों से इंसेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड को दूर कर सकते हैं. आपको बस सब्जियों और फलों को पानी में डालकर रखना होगा और उसमें इस प्रोडक्ट के जरिए ओजोन गैस भेजी जाती है. इससे फल-सब्जियों की सारे संक्रमण दूर हो जाते हैं. वहीं इस प्रोसेस से गुजरने के बाद सब्जियां आम फल-सब्जी की तुलना में अधिक दिनों तक फ्रिज में सही रहती हैं.

पहले तेल बचाया, फिर पानी प्यूरिफाई किया और लोगों की हेल्थ बचाई, उसके बाद पानी की बर्बादी बचाई, लोगों को संक्रमित फल-सब्जियों से बचाया और अब महेश गुप्ता ने बिजली बचाने का बीड़ा उठाया है. उन्होंने अपना एक नया ब्रांड लॉन्च किया है, जिसका नाम है कूल (Kuhl). इसके तहत वह 65 फीसदी बिजली बचाने वाले पंखे बना रहे हैं. महेश गुप्ता कहते हैं कि आम पंखे 70 वॉट की बिजली लेते हैं, लेकिन उनके इस ब्रांड के तहत पंखे सिर्फ 28 वॉट की बिजली लेते हैं. यह इतनी बिजली बचत कराते हैं कि अगर पूरे देश के सारे पंखे बदल दिए जाएं तो 500 मेगावाट के 500 प्लांट बचाए जा सकते हैं और साथ ही 2 लाख करोड़ रुपये की बचत भी होगी.