'स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी' वेब सीरीज तो आपको याद ही होगी, जिसमें हर्षद मेहता के स्कैम (Harshad Mehta Scam) की कहानी दिखाई गई थी. हर्षद मेहता ने करीब 5 हजार करोड़ का स्कैम किया था, जिसके बारे में जानने के बाद सबके होश उड़ गए. इसे बनाने वाले हंसल मेहता अब ला रहे हैं एक और वेब सीरीज, जिसका नाम है 'स्कैम 2003-द तेलगी स्टोरी'. इसमें उन्होंने अब्दुल करीम तेलगी (Abdul Karim Telgi) की कहानी दिखाई है. तेलगी का स्कैम हर्षद मेहता से करीब 6 गुना ज्यादा बड़ा था. इस स्कैम की सबसे खास बात ये है कि इसका खुलासा होने के बाद सरकार को इस स्कैम के तहत छापे गए सारे फर्जी स्टाम्प को लीगल ठहराना पड़ा. आखिर सरकार की ऐसी भी क्या मजबूरी हो गई? Startup Scam की सीरीज में हम अब तक 3 कहानियां आपको बता चुके हैं, चौथी कहानी में आइए जानते हैं कैसे तेलगी ने किया 30 हजार करोड़ रुपये का फ्रॉड.

बचपन में ही उठानी पड़ी परिवार की जिम्मेदारी

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अब्दुल करीम तेलगी ने स्टाम्प पेपर का स्कैम किया था. उसने इस स्कैम से इतने पैसे कमाए, जिसका आज भी सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. अब्दुल की कहानी कर्नाटक से शुरू हुई, जहां एक 4-क्लास रेलवे कर्मचारी के घर तेलगी का जन्म दिया. परिवार में 8 बच्चे थे और पिता की बचपन में ही मौत हो गई. इसके बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी तेलगी के कंधों पर आ गई. पिता रेलवे में थे तो वहां कुछ पहचान भी थी, जिसकी मदद से तेलगी ने रेलवे स्टेशन पर ही फल-सब्जी बेचना शुरू किया और परिवार पाला.

यहां से शुरू किया फर्जीवाड़े का खेल

जब ये बड़ा हुआ तो उसने देखा कि बहुत सारे लोग नौकरी के लिए गल्फ देश जाते हैं. तेलगी भी गल्फ चला गया और 7 साल तक वहां काम किया. उसके बाद 1990 के करीब वह भारत वापस लौटा और यहां नकली पासपोर्ट और वीजा बनाकर लोगों को गल्फ भेजने लगा. इस फर्जीवाड़े से तेलगी खूब कमा रहा था, लेकिन एक दिन उसकी पोल खुल गई और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद तेलगी को जेल की सजा हुई. जेल में तेलगी की मुलाकात एक शख्स से हुई, जिसका नाम था रतन सोनी. उसने तेलगी को बताया कि स्टाम्प पेपर कितने काम की चीज है और इससे कितना बड़ा फर्जीवाड़ा कर सकते हैं.

तेलगी को जेल से मिला अरबों कमाने का आइडिया

जेल से तेलगी को एक ऐसा आइडिया मिला, जिसने उस पर पैसों की बारिश ही कर दी. बाहर निकलते ही उसने तेलगी ने स्टाम्प पेपर फ्रॉड को अंजाम देने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी. उसके बाद उसे पता चला कि जिस नासिक के रेलवे स्टेशन पर वह फल-सब्जी बेचा करता था, वहीं पर एक नासिक प्रिंटिंग प्रेस है, जहां पर स्टाम्प छापे जाते हैं. तेलगी ने किसी तरह वहां के लोगों के पहचान बढ़ाई और पुरानी मशीन को नीलामी में खरीद लिया. उन्हें खरीद कर रिपेयर करवाया और फर्जी स्टाम्प छापने शुरू कर दिए.

300 से भी ज्यादा लोग रखे थे स्टाम्प बेचने के लिए

अब बारी थी इन स्टाम्प पेपर्स को देश भर में फैलाने की. इसके लिए तेलगी ने करीब 300 एमबीए हायर किए. उनका काम ये था कि वह जगह-जगह जाकर इन स्टाम्प को बेचते थे. यह स्टाम्प कॉरपोरेट, तहसीलों और शेयर बाजार तक में इन स्टाम्प को बेचा गया. इन स्टाम्प को बेचते वक्त तगड़ा डिस्काउंट दिया जाता था, जिसके चलते लोग तुरंत उन्हें खरीदते थे. देश के करीब 70 शहरों तक तेलगी ने अपना नेटवर्क फैला लिया था. 10 साल तक उसने ढेर सारे स्टाम्प छापकर बेचे और करोड़ों-अरबों रुपये कमाए. उसके बाद कितनी अथाह दौलत थी, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 90 के दशक में इसने एक डांस बार में जाकर उसने करीब 93 लाख रुपये एक डांसर के ऊपर लुटा दिए थे. इसके बाद से ही वह अचानक से सबकी नजरों में आ गया और उसकी बातें होने लगीं. 

साल 2000 में हुआ गिरफ्तार, लेकिन जेल से ही चलाता रहा धंधा

साल 2000 में बेंगलुरु पुलिस को एक टिप मिली कि फर्जी स्टाम्प पेपर ट्रक में भरकर कहीं भेजे जा रहे हैं. पुलिस ने जब छापा मारा तो उन्हें बहुत सारे फर्जी स्टाम्प पेपर मिले. जांच के बाद कई नाम सामने आए, जिसमें से एक नाम था तेलगी का. जब सबको पकड़ने की कोशिशें शुरू हुईं तो तेलगी फरार हो गया. इसी बीच एक बार अजमेर की दरगाह में जब तेलगी गया, तो उसके बारे में पुलिस को पहले ही पता चल गया. वहां पहुंचकर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. जब इस मामले की जांच हुई, तो हर दिन इसकी रकम बढ़ती ही चली गई. तेलगी भी पुलिस को इधर-उधर की बातों में घुमाता रहा. उसे जेल में भी सारी सहूलियत मिलती थी, इसलिए वह जेल से भी अपना धंधा चलाता रहा. बताया जाता है कि 1992 से लेकर 2002 तक करीब 30 हजार करोड़ रुपये का स्टाम्प घोटाला किया गया.

नारको टेस्ट में लिए चौंकाने वाले नाम

इसके बाद तेलगी का नारको टेस्ट भी हुआ, जिसमें उसने कई पुलिस वालों और नेताओं के नाम लिए. दिल्ली के बड़े नेताओं के भी नाम लिए. उसके बाद यह केस एसआईटी से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया. हालांकि, किसी के खिलाफ सबूत नहीं मिलने के चलते उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सिर्फ तेलगी के साथ के कुछ लोगों पर ही कार्रवाई हुई. इस केस में एक हेड कॉन्सटेबल का नाम भी आया, जो हर महीने 9000 रुपये कमाता था,  उस पर छापा मारा तो 100 करोड़ की प्रॉपर्टी निकली. एक अन्य पुलिस वाले के खिलाफ जांच हुई तो उसकी 200 करोड़ की प्रॉपर्टी निकली. कहा जाने लगा था कि अब्दुल करीम तेलगी लोगों को रिश्वत नहीं देता था, बल्कि बड़े-बड़े नेताओं और पुलिसवालों को सैलरी पर रखता था. 

कोर्ट ने दी इतिहास की सबसे बड़ी सजा

आज तक ये नहीं पता चला है कि तेलगी की प्रिंटिंग प्रेस कहां पर थी, जहां पर ये सारे स्टाम्प पेपर छापे जाते थे. 2007 में कोर्ट ने इस मामले को लेकर पर सजा सुनाई. तेलगी के कई साथियों को 6-6 साल की सजा हुई और तेलगी को 30 साल जेल की सजा हुई और 202 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया. अदालत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी पर इतना बड़ा जुर्माना लगाया गया हो. तेलगी की मौत जेल में ही 2017 में हुई, जिस पर कई सवाल भी उठे और साजिश किए जाने के इल्जाम भी लगे. बताया जाता है कि जब तेलगी को गिरफ्तार किया गया, तो उसके बाद मेडिकल टेस्ट से पता चला कि उसे एड्स और डायबिटीज था. हालांकि, तेलगी के वकीलों ने पुलिस प्रशासन पर आरोप लगाया कि तेलगी को एड्स संक्रमित इंजेक्शन लगाया गया था. तेलगी के शरीर के कई अंग फेल होने की वजह से उसकी 2017 में मौत हो गई. इस केस में सबसे बड़ी हैरानी इस बात की है कि इतने साल जांच हुई, लेकिन ये नहीं पता कि प्रिंटिंग प्रेस में किससे तेलगी का नाता था. किसी बड़े नेता या पुलिस अफसर को कोई सजा नहीं हुई.

सरकार ने ठहराया इस स्कैम को लीगल!

देखा जाए तो इस स्कैम को लीगल नहीं ठहराया गया, लेकिन इस स्कैम के तहत जितने भी फर्जी स्टाम्प बेचे गए, उन्हें लीगल ठहराया गया. अब सवाल ये उठता है कि आखिर सरकार की ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि फर्जी स्टाम्प को लीगल ठहराना पड़ा. दरअसल, देश में जितने भी लीगल काम या एग्रीमेंट होते हैं, उनके लिए स्टाम्प का इस्तेमाल होता है. 1992 से लेकर 2002 तक देश में अधिकतर स्टाम्प तेलगी के फर्जी स्टाम्प ही थे. ऐसे में अगर उन्हें गैर-कानूनी ठहरा दिया जाता तो उस दौरान हुई सारी शादियां, सारे कॉम्ट्रैक्ट, सारे जमीन-जायदाद के एग्रीमेंट, इंश्योरेंस सब कुछ गैर-कानूनी हो जाता. ऐसे में एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती. यही वजह है कि सरकार को इस स्कैम के तहत बेचे गए फर्जी स्टाम्प को लीगल ठहराना पड़ा.

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