Shark Tank India-3: ₹1250 में 1% इक्विटी.. 100 घंटे.. शार्क टैंक में हुई एक अनोखी डील, अमन गुप्ता बोले- '200 पिच देख ली.. तेरे जैसे बंदे नहीं देखे'
शार्क टैंक इंडिया के तीसरे सीजन (Shark Tank India-3) में एक ऐसा स्टार्टअप (Startup) आया, जिसने प्रदूषणस से निपटने का ऐसा सॉल्यूशन निकाला है, जिससे एक-दो नहीं, बल्कि कई सारे फायदे होंगे.
आज के वक्त में भारत में पराली जलाने की वजह से होने वाला प्रदूषण (Pollution) एक बड़ी समस्या बन चुका है. ठंड के दिनों में स्मॉग इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि हर तरफ धुआं-धुआं सा दिखने लगता है. कई सालों से तमाम सरकारों से लेकर तमाम संस्थाएं इससे निपटने का तरीका ढूंढ रही हैं. कई प्रोजेक्ट पर काम भी किया जा रहा है. इसी बीच शार्क टैंक इंडिया के तीसरे सीजन (Shark Tank India-3) में एक ऐसा स्टार्टअप (Startup) आया, जिसने इससे निपटने का ऐसा सॉल्यूशन निकाला है, जिससे एक-दो नहीं, बल्कि कई सारे फायदे होंगे. यहां बात हो रही है धरक्षा ईको-सॉल्यूशन्स (Dharaksha Ecosolutions) की, जो पराली जलने से होने वाले प्रदूषण को रोकने का काम कर रहा है और इस पराली से एक इनोवेटिव प्रोडक्ट बना रहा है.
धरक्षा की शुरुआत दिल्ली में रहने वाले अर्पित धूपर ने गुरुग्राम में रहने वाले अपने दोस्त आनंद बोध के साथ मिलकर की है. अर्पित और आनंद दोनों के बीच करीब 15 साल पुरानी दोस्ती है. मैकेनिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान दोनों साथ ही रहा करते थे. इसके बाद अर्पित ने आईआईटी दिल्ली से 'डिजाइन ऑफ मशीन एलिमेंट' का कोर्स किया. वहीं आनंद बोध ने साइकोलॉजी की पढ़ाई की है. दोनों ही दोस्तों की उम्र अभी करीब 31 साल है. अर्पित कहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर के आस-पास के इलाकों में हर साल 3-4 करोड़ टन पराली जला दी जाती है. इतना धुआं जितना 12 करोड़ गाड़ियां 1 साल में करेंगी. दुनिया के टॉप 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 15 भारत में हैं.
ग्रेजुएशन करने के बाद अर्पित को इस बात का अहसास हुआ कि वह दुनिया के उन टॉप 2-3 फीसदी लोगों में से हैं, जिन्हें सब कुछ मिला है. उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें अच्छी एजुकेशन भी मिली है. ऐसे में अर्पित के मन में ये बात आई कि उन्हें इस सोसाएटी को कुछ लौटाना है. वह कभी ये नहीं चाहते थे कि ढेर सारे पैसे कमाकर कुछ दान दे दें, बल्कि वह ये चाहते थे कि किसी और तरीके से समाज का भला किया जाए. वह अपने एजुकेशन से जुड़ा हुआ ही कुछ कर के समाज को कुछ देना चाहते थे और इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने धरक्षा की शुरुआत की.
भतीजे ने बनाया भूरे रंग का आसमान
एक बार अर्पित का छोटा सा भतीजा पेंटिंग कर रहा था. उस पेंटिंग में बच्चे ने आसमान का रंग भूरा बनाया. अर्पित ने ये देखा तो उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि नीला आसमान तो उसने कभी देखा ही नहीं था, क्योंकि प्रदूषण इतना ज्यादा है. तब अर्पित को लगा कि इसका कुछ सॉल्यूशन निकालना चाहिए. वह चाहते थे कि यूएस-यूरोप की तरह यहां पर भी आसमान नीला दिखे. इसके लिए 2019 में उन्होंने इस पर रिसर्च शुरू की कि आखिर कैसे पराली को जलने से रोका जाए. इसके बाद उन्होंने अपने दोस्त आनंद के साथ मिलकर बायो फैब्रिकेशन टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया. करीब 2 साल रिसर्च की और फिर नवंबर 2020 में धरक्षा ईको-सॉल्यूशन्स की शुरुआत की. धरक्षा का मतलब धरा यानी धरती की रक्षा से है.
क्या है कंपनी का बिजनेस?
धरक्षा ईको-सॉल्यूशन के तहत अर्पित और उनके दोस्त ने लैब में एक मशरूम स्ट्रेन डेवलप किया है. वह किसानों से पराली इकट्ठा करते हैं और उस पर मशरूम स्ट्रेन उगाया जाता है. इसके बाद जब मशरूम की रूट्स डेवलप हो जाती हैं तो उसे एक सांचे में डाल दिया जाता है. इसे जिन भी मोल्ड यानी सांचे में डाला जाता है, वैसा ही प्रोडक्ट बना जाता है. इस स्टार्टअप का मकसद है थर्माकोल को रिप्लेस करना. इनके प्रोडक्ट थर्माकोल जैसे पैकेजिंग मटीरियल हैं, जिनके जरिए वह फिलहाल इलेक्ट्रॉनिक्स और ग्लास इंडस्ट्री में सामान की टूट-फूट को कम करने की कोशिश कर रहे हैं.
अर्पित थर्माकोल से होने वाले प्रदूषण को भी रोक रहे हैं. आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि प्लास्टिक तो फिर भी 500 साल तक पड़ा रहता है, लेकिन थर्माकोल उससे भी 4 गुना खतरनाक है, जो 2000 सालों तक जस का तस बना रहता है. यानी दुनिया में आज तक जो पहला थर्माकोल बना था, वह आज भी कहीं ना कहीं पड़ा हुआ होगा. वहीं दूसरी ओर धरक्षा का प्रोडक्ट जमीन में 60 दिन में बायोडीग्रेड हो जाता है.
इन प्रोडक्ट पर एक हाइड्रोफोबिक आउटर लेयर होती है, जिसके चलते उन पर पानी का असर नहीं होता है. यानी इससे आपका प्रोडक्ट सुरक्षित रहता है. जैसे कमल के पत्ते पर पानी पड़ता है तो वह चिपकता नहीं, बल्कि गिर जाता है, हाइड्रोफोबिक लेयर भी कुछ ऐसा ही काम करती है. इन प्रोडक्ट्स की सेल्फ लाइफ करीब दो साल की होती है.
प्लास्टिक से कितना महंगा?
धरक्षा के प्रोडक्ट्स थर्माकोल को रिप्लेस तो कर रहे हैं, लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि इनकी कीमत प्लास्टिक की तुलना में कितनी है. अर्पित बताते हैं कि यह अभी थर्माकोल के मुकाबले 2-3 गुना तक महंगा है. हालांकि, अगर थर्माकोल से तुलना करें तो धरक्षा के प्रोडक्ट उसके मुकाबले कहीं बेहतर हैं. इसमें प्रोडक्ट की टूट-फूट भी बहुत कम होती है. साथ ही प्रोडक्ट के हिसाब से इसमें कस्टमाइजेशन भी आसान है. फाउंडर्स का दावा है कि आने वाले वक्त में इसकी कीमत पेपर से मैच हो जाएगी. वहीं 3-4 साल में इसकी कॉस्ट थर्माकोल के बराबर भी आ सकती है.
ऑफर सुनकर शार्क हुए हैरान
अर्पित और आनंद ने तमाम जज को कई बार हैरान किया. सबसे पहले तो वह इसी बात से हैरान हो गए कि वह अपनी कंपनी की एक फीसदी इक्विटी महज 1250 रुपये में देने के लिए तैयार हो गए. यह शेयर फेस वैल्यू पर देने का ऑफर दिया. साथ ही उन्होंने शार्क्स के 100 घंटे मांगे. कंपनी ने जनवरी 2022 में 22 करोड़ रुपये की वैल्युएशन पर 4 करोड़ रुपये जुटाए थे. अब कंपनी दूसरा राउंड कर रही है, जो करीब 100 करोड़ रुपये की वैल्युएशन पर रहेगा.
आखिरकार ये डील एक अलग तरह से फाइनल हुई. इसके तहत धरक्षा को कुल 10 घंटे अगले 3 महीनों में मिलेंगे यानी हर शार्क के 2 घंटे. उसके बाद जो भी क्लेम किए वह सही हैं और डेट यानी कर्ज जुटा लेते हैं तो उनकी डिमांड के बाकी घंटे भी मिल जाएंगे. इसके बाद जो भी अगला राउंड होगा, उसमें शार्क को निवेश के लिए 20 फीसदी डिस्काउंट मिलेगा. धरक्षा को शार्क टैंक में ऑल-5 शार्क डील मिली, जिसमें अमन गुप्ता, अनुपम मित्तल, विनीता सिंह, रितेश अग्रवाल और पीयूष बंसल शामिल रहे. अमन गुप्ता तो इन फाउंडर्स से इतना इंप्रेस हो गए कि बोल पड़े- 'भाई तेरा कॉन्फिडेंस तो सॉलिड है, क्या बंदा है यार तू, मैंने ऐसे बंदे नहीं देखे, मैं शार्क टैंक पर 200 पिच देख चुका है, तेरे जैसे बंदे नहीं देखे.'