अगर आपसे कोई पूछे कि मक्खन (Butter) किस चीज से बनता है तो आप आप तुरंत कहेंगे- 'दूध से'. लेकिन कैलिफोर्निया के एक स्टार्टअप (Startup) ने लोगों का सोचने का नजरिया ही बदल दिया है. यह स्टार्टअप हवा से मक्खन बना रहा है. जी हां, हवा से. थोड़ा और डीटेल में जाएं तो कार्बन डाई ऑक्साइड यानी CO2 से. यह स्टार्टअप हवा से ऐसा मक्खन बना रहा है, जो बिल्कुल असली मक्खन जैसा टेस्ट करता है. यानी अब मक्खन खाने के लिए ना तो कोई गाय-भैंस पालने की जरूरत है ना ही उसके दूध की.

कैसे काम करता है ये स्टार्टअप?

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इस स्टार्टअप का नाम है Savor, जिसमें माइक्रोसॉफ्ट के अरबपति बिल गेट्स ने भी पैसे लगाए हैं. यह स्टार्टअप डेयरी प्रोडक्ट के ऐसे विकल्प बना रहा है, जो डेयरी मुक्त हों. द गार्डियन में छपी खबर के अनुसार यह स्टार्टअप एक थर्मोकैमिकल प्रोसेस का इस्तेमाल करते हुए आइसक्रीम, चीज़ और दूध के विकल्प बनाना चाहता है. थर्मोकैमिकल प्रोसेस से फैट मॉलीक्यूल्स बनाए जाते हैं, जिसमें कार्बन डाई ऑक्साइड, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की चेन बनाई जाती हैं. कंपनी ने एनिमल फ्री बटर बनाए जाने की घोषणा कर दी है.

पर्यावरण की रक्षा, ग्रीन हाउस गैस घटेगी

इस स्टार्टअप का मानना है कि कि अगर मीट और डेयरी प्रोडक्ट से निर्भरता हट जाए तो इससे पर्यावरण पर काफी अच्छा असर देखने को मिल सकता है. गाय-भैंस पालन से बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैस निकलती हैं. स्टार्टअप का दावा है कि उनके मक्खन में गाय-भैंस के दूध से बने मक्खल की तुलना में कम कार्बन है. अगर प्रति कैलोरी के हिसाब से देखें तो इस स्टार्टअप के मक्खन में 0.8 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड है. वहीं अगर असली (बिना नमक वाले) मक्खन की बात करें तो उसमें प्रति कैलोरी 2.4 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड होता है.

असली मक्खन जैसा है हवा से बने मक्खन का स्वाद

सेवर की सीईओ Kathleen Alexander कहती हैं- 'अभी हम कमर्शियल लेवल पर काम नहीं कर रहे हैं और रेगुलेटरी अप्रूवल लेने पर काम कर रहे हैं, ताकि हम अपने मक्खन को बेच सकें. हम उम्मीद कर रहे हैं कि 2025 तक हम किसी भी तरह की सेल्स नहीं कर सकेंगे.' इस स्टार्टअप का कहना है कि आज के वक्त में मीट और डेयरी के विकल्प तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, लेकिन वह फ्लेवर के मामले में कमतर हैं. सेवर का कहना है कि इसके मक्खन का टेस्ट बिल्कुल असली मक्खन जैसा है.

क्या कहना है बिल गेट्स का?

शुरुआत में तो आपको लैब फैट और तेल बनाना अजीब लग सकता है. लेकिन उसका कार्बन फुटप्रिंट घटाने में एक बड़ा योगदान है. टेक्नोलॉजी और प्रोसेस का इस्तेमाल कर के आप पर्यावरण को बचाने के लक्ष्य में हासिल करने के करीब होते जाते हैं. इस प्रोसेस में कोई ग्रीनहाउस गैस नहीं निकलती है. इसमें किसी फार्म की जरूरत नहीं, ना ही हजारों लीटर पानी की जरूरत है, जैसा कि परंपरागत एग्रीकल्चर में होता है. और सबसे अहम, यह बिल्कुल असली जैसा टेस्ट करता है, क्योंकि कैमिकल के हिसाब से यह बिल्कुल वैसा है.