धान की कटाई के बाद खेतों में पड़ी पराली के राष्ट्रीय समस्या बनकर सामने आती है. दिल्ली समेत आसपास के राज्यों के आसमान में घिरते घुएं के बाद और सैटेलाइट से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में जलते खेतों की तस्वीरें हर बार एक नई बहस को जन्म देती हैं. पराली और प्रदूषण एकदूसरे के पूरक बन गए हैं. सख्त कानून बनाने के बाद भी पराली जलाने की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है, क्योंकि इसे जलाना किसान के लिए मजबूरी है. लेकिन अब इस समस्या का समाधान खोज लिया गया है. 

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पराली से बिजली बनाई जा रही है. और नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) ने पराली से बिजली का उत्पादन शुरू कर दिया है. दादरी (गाजियाबाद) स्थित एनटीपीसी की एक यूनिट में पराली से बिजली बनाई जा रही है. 

एनटीपीसी के मुताबिक, धान की पराली और अन्य कृषि अवशेषों से बनी पेलेट्स से बिजली की निर्माण किया जा रहा है. हालांकि अभी पाराली समेत अन्य कृषि अवशेष की कम आपूर्ति होने के कारण बड़े स्तर पर बिजली का निर्माण नहीं हो पा रहा है. लेकिन आने वाले दिनों में पराली की पेलेट्स की आपूर्ति की समस्या को दूर कर लिया जाएगा. एनटीपीसी दादरी में सात फीसदी तक कोयला के साथ बायोमास पैलेट्स मिलाना सफल रहा है। इससे पावर प्लांट की सुरक्षा और क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा. 

एनटीपीसी से मिली जानकारी के मुताबिक, देशभर में फैले एनटीपीसी के 21 ताप बिजली घरों में पराली और अन्य कृषि अवशेषों से बने पेलेट्ल से बिजली बनाने की योजना बनाई है. इन सभी पावर प्लांट्स की खपत क्षमता सालाना 19400 टन है. इस समय हर साल करीब 154 मिलियन टन कृषि अवशेष पैदा होता है. यदि इसका इस्तेमाल एनटीपीसी में किया जाता है तो इससे 30 हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी, जो डेढ़ लाख मेगावाट क्षमता के सोलर पैनल से होने वाले बिजली उत्पादन के बराबर है. इससे लगभग एक लाख करोड़ का बाज़ार खड़ा हो सकता है. पेलेट्स की आपूर्ति के लिए एनटीपीसी ने निविदा आमंत्रित की हैं. स्टार्टअप और अन्य उद्यमी www.ntpctender.com पर पंजीकरण कराकर फॉर्म डाउनलोड कर सकते हैं.

किसान भी बना रहे हैं बिजली

हालांकि एनटीपीसी ने तो बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन शुरू किया है, लेकिन कई स्थानों पर काफी समय से पराली से बिजली बनाने का काम हो रहा है. पंजाब के अबोहर में तो पराली से बिजली उत्पादन किया जा रहा है. अबोहर से करीब 25 किलोमीटर दूर गद्दाडोब गांव में एक फैक्टरी करीब पांच हजार किसानों की पराली खरीदकर बिजली बनाने का काम किया जा रहा है. फैक्टरी के 20 किलोमीटर के दायरे में किसान पराली में आग नहीं लगाकार उसे फैक्टरी को बेचते हैं. दि डेवलपमेंट इंजीनियर्स के स्वामी बीएस जांगड़ा ने बताया कि 5 साल से उनकी फैक्टरी आसपास के किसानों की पराली खरीदकर बिजली बनाने का काम कर रही है. इससे बिजली का उत्पादन तो हो ही रहा है. साथ ही पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या से भी मुक्ति मिल रही है और किसानों की आमदनी हो रही है, वह अलग है.

उन्होंने बताया कि पराली के द्वारा सालाना 6 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है, जिसे  बिजली बोर्ड को 6.30 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बेच दिया जाता है.